चेष्टा से ही संपूर्ण कार्य परिणत, अनुरूप परिस्थिति मात्र सहाय।
देश-काल में एक समय अनेक जन्म, आवागमन का ताँता सतत
सबका तो निज समय व्यतीत, पर क्या उच्च स्तर से भी संपर्क ?
मानसिक-भौतिक की उच्च श्रेणी से निष्णात घड़ित विद्वान-समृद्ध
उन्नत स्तर तो कुछ ही जन्म से, उनमें से अत्यल्प ही पाते सँभल।
संपन्न-राजकुल जन्मा बालक, पूर्वज-योग्यता प्राप्त हो न आवश्यक
प्रायः अपघटित कभी वृद्धि भी, निज प्रयास-परिस्थिति भाग अहम।
कालिदास के रघुवंश में दिलीप-रघु, दशरथ-राम की गुरुता दर्शित
पश्चाद वाले शनै सुख-ऐश्वर्य में मस्त, व महान वंश हो गया विनिष्ट।
उच्च महत्त्वाकांक्षी कुशल-चेष्टालू ही चाहिए, महत्त्वपूर्ण है प्रतिपल
मुफ्त में न यश-श्लाघा प्राप्त, यदि भी तो अप्राकृतिक बस अनर्थ।
योग्य तो बनो एक पद-स्तर के, हो मन में कुछ स्व-आश्वासन भाव
हाँ अनेक कृत्रिम आत्म-मुग्ध, लघु मूढ़-कूप में ही लगाते छलाँग।
किससे है निज तुलना, एक स्तर देखोगे तो ही पाटन-दूरी ज्ञात
कितनी ऊर्जा-वृद्धि वाँछित, चरम-स्तर चूमने का लक्ष्य महान।
अधुना काल में अनेक विज्ञान-अविष्कार, संचार-क्षेत्र अति-प्रगति
वीडियो-दूरदर्शन, सोशल-मीडिया, अचरज-करतब सतत कई।
कलाकार अति परिश्रम करते, उच्च अवस्था तो स्वतः ही न प्राप्त
अडिग यावत न वाँछित फलन, पूर्ण झोंके बिना तो न कोई बात।
खेल-प्रतिभाऐं कठोर अभ्यास-परिश्रमी, अनुशासित लाभार्थ कुछ
व्यर्थ तज ध्येय में रूचि, ऊर्जा-संघनन से सहसा विक्रम-पौरुष।
क्यों मद्धम अवस्था में ही मुदित, जब खुले अनेक प्रगति-आयाम
त्याग अति निद्रा-तंद्रा, घातक निम्न-प्रवृत्ति, तब अति-दूर छलाँग।
किसी दिशा बढ़ लो स्वरूचि अनुरूप, भाँति-२ के कुसुम-विस्मय
अपने को कुछ प्राप्त ही, व्यर्थ सुस्ती छूटे व मिलें विकास आयाम।
अवसर मम चेष्टा का ही स्वरूप, चलेंगे तो चक्षु दूर तक दर्शन
अवसर मम चेष्टा का ही स्वरूप, चलेंगे तो चक्षु दूर तक दर्शन
मन में नवीन विचार, कई संभावनाओं का नृत्य-गायन प्रस्तुत।
यदि कुछ जँच जाता, अग्र बढ़कर होता उस हेतु प्रयास आरंभ
प्रगाढ़ इच्छा - बंद कपाट भी खुलें, लहरों से भीत तीर ही तिष्ठ।
अपरिचित से तो सत्य-डर, शनै-२ आयाम सीख लो तो सौहार्द
यह यथोचित प्रशिक्षिण, परिचय से पूर्ववत विस्मय लगे सहज।
भय तो कुछ पलों का ही, उस पार ही तो खुलता विकास पथ
प्रथम पग तो किंचित कष्टकारी, अभ्यस्तता से सुहानी पवन।
अनेक व्यवधान, मन-अरुचि, आवश्यक कृत्य, और अन्य कभी
शीघ्र निबट, मन सहज, कुछ विश्राम से गुणवत्ता-क्षमता वृद्धि।
लक्ष्यार्थ जुट जाओ, थोड़ा-२ बढ़ने से ही है महद दूरी जाती पट
पूर्ण-स्पंदिन न अकस्मात, कई शनै-प्रक्रियाओं का ही है फल।
सर्वपल न एक सम, मन जम जाता कभी चाहकर भी न प्रबल
मन-देह नैसर्गिक प्रक्रिया, दैनंदिन क्षमताओं में वृद्धि-अपघट।
फिर भी प्राण चलित, अगर मन में प्रगाढ़ इच्छा है तो गतिमान
जब दिशा लक्ष्य-इंगित तो क्यूँ डरना, पूरा न तो कुछ ही प्राप्त।
चंद्र-मंगल आदि ग्रह चुंबन हेतु तो जरूरी फाँदना ही होगा गुरुत्व
'निकास गति' से अधिक जरूरी, पुनः गुरुत्वाकर्षण से पतन वरन।
कई विद्या-यंत्र-प्रक्रियाऐं सीखनी पड़ेगी, खगोलज्ञ करते अति-श्रम
नासा, इसरो, रशियन स्पेस एजेंसी आदि, प्रयोगों से हैं होते सफल।
जन्म पर अदने से, पालन-पोषण-शिक्षण-स्वाध्याय से कुछ योग्य
परिष्करण एक सतत प्रक्रिया, जीवन संवारना है अपना दायित्व।
लोहा तप्त रखना ही होगा, अवसर मिलते चोट, उपकरण फिर
यंत्र सक्षम, पैदल से साईकिल, कार-वायुयान गतिमान अधिक।
निश्चित ही भौतिक-मानसिक क्षमता-वर्धन से उच्च स्तर तक पहुँच
जग में विशाल संख्या-प्रचलन, अल्प का ही उनसे आत्मसात पर।
तन-कोशिका, मस्तिष्क-सूत्रयुग्म, केश-श्वास, प्रायः अगणित नक्षत्र
पर सामान्य मन न सोचता, वह तो अल्प परिवेश में ही मस्त-व्यस्त।
पर महद-कर्मी दैनंदिन कार्यशैली में ही उद्देश्य हेतु पूर्ण समर्पित
प्रेरणाओं का पीछे से सहारा, सुप्रबंधन प्रक्रियाओं का संग नित।
कुछ शीघ्र ही अति-विकसित, जो असंख्य आजीवन भी असमर्थ
कुछ तंत्र-विज्ञान जरूर इसके पीछे, किसी मंत्र से अग्र संवर्धित।
अनेक चिंतक-प्रेरक-सज्जनों का प्रोत्साहन, पर सब श्रोता तो असम
प्रवृत्ति 'खाया व मलरूप त्यागा', सुपाचन से न उपयोग हर अवयव।
प्रचलित विचार-धाराओं व पूर्वाग्रहों से ऊपर उठ, नव-नियम स्थापन
विश्व उनके पदचिन्ह चलता, उनका उद्देश्य मुख्यतया स्वहेतु ही पर।
न्यूटन-आर्किमिडिज-एडिसन-आइंस्टीन-गैलीलियो-डार्विन से अनेक
सुकरात-बुद्ध-कृष्ण-कबीर-हजरत-जीसस-लेनिन से हैं युग प्रवर्त्तक।
व्यास-कालि, शेक्सपीयर- टेनीसन, टॉलस्टॉय-डांटे से कवि-लेखक
सिकंदर-चंगेज, अशोक-अकबर, सोलोमन-नेपोलियन से योद्धा-नृप।
पेले-ध्यानचंद, तेंदुलकर-फ्लेप्स, मुहम्मद अली-बोल्ट सी प्रतिभा-खेल
विदुर-चाणक्य, मैकियावली, 'आर्ट ऑफ़ वॉर' के सुन तजू कूटनीतिज्ञ।
ब्रूसली से स्फूर्त, बीरबल-चार्ली चैपलिन से विदूषक, निपुण जैफरसन
प्लेटो-सिसिरो, अंबेडकर से विधिज्ञ, अर्थशास्त्री मार्क्स-आडम स्मिथ।
अनेको-अनेक नाम उज्ज्वलित हैं विश्व में, जितने चाहो उतने लो खोज
महामानव इस धरा पर सब ओर छितरित, आदर्शों की कोई कमी न।
बिल गेट्स-वारेन बुफे-अंबानी, इलोन-मस्क, जुकेरबर्ग व स्टीव जॉब्स
कैसे अल्प से इतने अधिक अग्र-वर्धित, कल्पना से ही खड़े जाते रोम।
आज चिंतन-विषय स्व-वृद्धि, सब उन भाँति न तो स्व-रूचि अनुसार ही
जीवन न मिलगा दुबारा, जो पूर्ण-उपयोग, कुछ ऊँचाई चूमो तुम भी।
पवन कुमार,
२१ नवंबर, २०१९ समय १८:३५ सायं
(मेरी डायरी दि० २७ नवंबर, २०१६ समय १२:३० अपराह्न से)