महेंद्रगढ़ सेवा-काल
चलो महेंद्रगढ़ की यादों में खोते, कल तो यहाँ से समेटना है बोरी-बिस्तर
पर जीवन शाश्वत आज यहाँ से निवास, कल कहीं छोड़ा, अन्य प्रस्थान।
इस स्थल ने कई दबाव दिए, मैंने सहना सीखा, अवरों को ढ़ाढ़स दिया
विलोम परिस्थिति में साहस धरा, बहादुरी से अपना पक्ष कहना सीखा।
एक तंत्र को संवेदनशील बनाया, शक्ति को बड़ी शक्ति दिखानी सीखी
सब ऊँच-नीच जाँच कर निज क्षीणता स्वीकारी, जुटाना सीखी शक्ति।
समय है विराट गुरु, यहाँ शिक्षकों मध्य ही रहा, समझने सीखे मनोविचार
संभावित ग्राह्य-अपेक्षाओं का निर्वहन, शुद्ध निर्णय लेना निज पक्ष सहित।
सहज रहना, सब सु-दुर्दिनों में समभाव, कैसे सीमित संसाधनों में गुजारा
साथी-कर्मी समझाऐं, एक ही रसोई का खाना, अधीनस्थों का ध्यान रखा।
एजेंसियों को समझाया, कई भाँति लोगों से संपर्क, शैली सीखने की यत्न
विशेषज्ञों से संपर्क-चर्चा, कार्यों में सोच-रोपण, सुधरवाना वास्तु-डिजाईन।
पूर्व अलक्षित परियोजनाओं पर काम, महीनता-विचार संतोषजनक प्रस्तुति
नव विचार अनुकरण, निज कार्यों पर गर्व, अस्मिता बचाकर चलना अपनी।
आत्म-अवलोकन निकट से, मनन लेखन-वाणी द्वारा सीखा करना व्यक्त
सोच-वर्धन प्रयास, आत्म-मुग्धता त्याग सत्य धरातल पर जमाए चरण।
विनयी बन सुनना सीखा, आलोचना सही, स्वावलंबन का किया साहस
यश-अपयश की उलझन से निर्गम, कर्म-श्रम पर ध्यान व स्व-साधन।
नियुक्ति तो योजना-कार्यान्वयन को थी पर उलझ गया, बढ़ें क्लेश-शक
किंतु पार पाया, सु-स्थापन किया, कृत्यों से श्लाघा मिली, पिघली बर्फ।
व्यवहार-कुशल पुरुष सम उच्च लक्ष्य चीन्हा, निराश हो न लिया आसन
हतोत्साहितों को धैर्य दत्त, विनम्र हो वरिष्ठ सुने, कर्कश-मुख हुए मृदुल।
मनन कि अनावश्यक संकटों से रक्षा हो, कई संभावित कष्ट पूर्व ही रुद्ध
प्रगति कार्य सुधारार्थ टोका-टाकी, स्टाफ संवेदनशील न कि शिथिलित।
कष्ट न आए पूर्वेव उपचार हो, आग बाद जल फेंकने से भी न बहुत हित
संभलो, तुम्हीं जीवन के चालक-संचालक हो, अनुरक्षण दायित्व भी निज।
इंटरनेट मीडिया यहाँ खूब देखा, पर प्रयोग अन्य ज्ञानवर्धनार्थ भी किया
पर सार्वभौमिक एकचित्त ब्रह्मलीन, सर्वस्व अंतः अनुभूति की कामना।
कलम-डायरी संगिनी, लिखना सिखाया, संपादन भी, भाषा सुधार हुआ
एक सकारात्मक सोच ली, संकोच त्याग, मर्यादा ध्यान, सीखा साधना।
दिल्ली से यहाँ और फिर दिल्ली आगमन, ट्रेन-कारों द्वारा ही रहा सफ़र
विश्व-विद्यालय हॉस्टल निवास, तीन मकान बदले, होटल की भी शरण।
जयपुर काल मध्य कई यात्राऐं, कभी दिल्ली फिर महेंद्रगढ़ आदि में ही
जोधपुर-उदयपुर-जैसलमेर-माउंट आबू-बीकानेर-अलवर आदि भ्रमण।
कई लखनऊ यात्राऐं फिर चंडीगढ़ की, वरिष्ठों का आदेश तो जाना अवश्य
नागपुर-दमन-अहमदाबाद-वडोदरा की कार्य-यात्राऐं, विश्व-दर्शन अवसर।
LTC से चेन्नई-कन्याकुमारी-कोच्चि-मुन्नार-कोझिकोड की यात्रा सपरिवार
UGC-विश्वविद्यालय की गोष्ठियों में भागी, अन्यों की शैली का हुआ ज्ञान।
प्रातः कुर्सी में बैठ नित्य पठन व लेखन, अनेक विचार अंतः से बहिर्गमन
कई डायरी भरी, स्कैन भी, टाइप-शोधन कर कुछ ब्लॉगर पर प्रकाशित।
प्राचीन काव्यों मेघसंदेश-ऋतुसंहार-कुमारसंभव का रूपांतर यहीं संभव
'महाकवि कालिदास विरचित' नाम से पुस्तक भी छपी, पाठक ले रहें रस।
बाणभट्ट की 'कादंबरी' का अनुवाद भी है, ब्लॉगर पर है, छपेगी भी पुस्तक
विद्वान रचनाकारों से संपर्क एक परम सौभाग्य, अनुकंपा से हूँ अनुगृहित।
यहीं देह कुछ स्थूल हुआ पर सुधरा, पदगति बढ़ी, कुछ १२००० नित्य कदम
७४ किलो वजन था जो घटकर ६८ किलो रह गया, अतः आरोग्य उत्कर्ष।
कई बार हारा पर हिम्मत से खड़ा हुआ, जीवन से तो सदा रहती शिकायतें
किंतु निज व विभाग का सम्मान बढ़ाया, लोग प्रतिबद्धता न नकार सकते।
यहीं सब तरह का स्टाफ देखा, मनोद्वेग समझे, उनकी देखी प्रतिक्रिया
कभी प्यार तो रोष-अद्विग्नता भी प्रकट, अमुक पक्ष उनके कोण से देखा।
पर अशिष्टता की तो न अनुमति, टीम सम उचित परिवेश बनाने का यत्न
सफलता तो तुलनात्मक, मनोयोग-लक्ष्य-ऊर्जा-प्रयास ही सु-आकलन।
ऐ प्रिय आत्मा-वासित महेंद्रगढ़ ! दीर्घ छः वर्षकाल तेरा सान्निध्य हुआ
तुझ प्रशांत से बड़ा कुछ सीखा, चिर-ऋणी हूँगा, तूने बख़्शी कई कृपा।
ओ मेरे प्रदेश हरियाणा के अंश, यहाँ के निवासी मेरे गृह-सदस्य सम हैं
तेरी शक्ति पाकर भविष्य भी समुचित निर्वाह कर सकूँ, यही प्रार्थना है।
पवन कुमार,
१७ मार्च, २०२१ समय ४ :२० बजे प्रातः
(मेरी अंतिम महेंद्रगढ़ डायरी दि० ३ सितंबर, २०२० समय ७:३१ बजे प्रातः से)