नयनाभिराम वसंत का दर्शन है,
सर्वत्र सुवासित ही वातावरण
ऋतुराज हमारी सामर्थ्य
बढ़ाता, रुचिकर है उसका आगमन॥
शिशिर-ग्रीष्म मध्य ऋतु-परिवर्तन
से है मद्धम जलवायु रचित
वरदान नवांकुरों को देता,
धन-धान्य से वसुंधरा है बहु-पूरित।
सब प्राणी-पादप प्रफुल्लित
हैं, सबके उरों में उमंग ही जगाता
हरीतिमा चहुँ ओर
बहु-विस्तृत, प्रसून* पकने का काल होता॥
अब अनिल अत्यंत सुहावनी है,
मन काया को खूब प्रसन्न करे
वातावरण में एक अद्भुत
गुरुत्व सा, सबको आकर्षित करे।
जहाँ भी जाओ अनेक रंग
बिखरें, सबका मन हर्षित हो जाता
सूक्ष्म-विशाल पादप-गण में,
एक विस्मयी तारुण्य है दिखता॥
माना बीज शिशिर-रोपित, पर
प्रादुर्भाव यौवन वसंत ही लाता
तब नव-पल्लव विविध वर्णी
होते, और कली को पुष्प बनाता।
प्रकृति अति रमणीय होती,
अपनी इस ऋतु पर खूब इठलाऐ
तरु झूमते हैं, मस्ती में
लहरते, आनंदित से हो सबको पुकारें॥
पीत सरसों दूर-२ तक विस्तृत,
अत्युत्तम चारु दर्शन है कराती
पकती गेहूँ-बाली सुवर्ण सी
प्रतीत, सुवास संग मन पुलकाती।
खेतों में चने-पालक,
मेथी-बथुए-चुलाई का सौंदर्य देखते बनता
भिंडी-पुष्प तो अतीव मोहक
हैं, बस कुछ ठहर बनता देखना॥
माना सर्दी से शुरू,
गाजर-मूली, गोभी-शलजम सब उपलब्ध
ईख कुछ काट लिया गया सर्दी
में, अभी कुछ खेत खड़े लहर।
फसल पकती, काटन-तैयारी है,
कुछ समृद्ध होंगे कृषक जन
सब बाट जोह रहे इसके दर्शन
की, आखिर महीना भी मस्त॥
सकल वृक्षगण-सौंदर्य को
देखो, सब कुसुम-फलों से लदे पड़े
सब शहतूत काले-सफ़ेद
फल-आच्छादित, प्रचुर मात्रा में बनें।
बेरी पेड़-झाड़ियों पर पके
छोटे-बड़े फल, नीचे हैं स्वयं-पतित
नीम-अंकुर बौर बनने लगता,
श्वेत पुष्प-गुच्छों से जाते वृक्ष भर॥
नींबू-संतरे, आम-अनार,
सेब-अंगूर सब प्रजा को हैं उपलब्ध
व्यवसायिक गतिविधि वर्धित,
आजीविका देता है विक्रय-क्रय।
सुखद समय है दूर यात्रा करने
का, तन स्वस्थ-सुदृढ़-सुंदर होते
जो खाते आसानी से पचता, युवा
क्रीड़ा-स्थल व्यायाम करते हैं॥
‘मस्त महीना है
फाल्गुन का,'
तन-मन में अनेक लालसा जगाता
‘बूढ़ी लुगाई भी मस्ताई
फाल्गुन में',
कामिनियों में हिलोरें मारता।
पिता पुत्र को 'फाल्गुन
में तने घी दे दूँगा, छोरों गैला करियो आल'
एक अनुपम शक्ति स्व में
इंगित होती है, युवा हो जाते बलवान॥
ग्राम्य-युवतियाँ रात्रियों
में फाग खेलती, गीत गाती व नृत्य करती
प्रेमातुर पुरुष प्रतीक्षा
करते, भुनभुनाते - कसमासते मन में ही।
हर हृदय में एक कवि प्रवेशित
सा, सबसे कुछ मन -रचवा लेता
जितने प्राणी उतने कवि-
गवैये, प्रत्येक स्व में कालीदास बनता॥
गेंदें-चमेली, डहेलिया-गुलेर,
बागुनविली-गुलाब, केतकी हैं महकते
ट्यूलिप-कुमुदिनी,
अमलतास-पलाश सब तरु-पादप रमण भरते।
उपवन में जाओ तो सुखद ज्ञात
होगा, सत्य वसंत अति है मधुरमय
पर इसकी चमक तो अंग-प्रत्यंग
में निहित, अतः सदैव है सुखद॥
सर्वत्र ही बहार है
सिरिस-फाइकस, मौलसिरी-अशोक, पीपल में
सिल्वर-ओक, अर्जुन, बकायन,
कीकर, ताड़-पापड़ी-शीशम में।
गुलमोहर, बरगद, पिलखन,
अमरुद, नींबू, चंपा, झाड़ियों, ताड़ में
कटहल, सफेदे-ओक, गूलर-लसोडे,
खजूर, कढ़ी-पत्ते व बाँस में॥
वनस्पति सब प्रफुल्लित हैं,
माना उनको भी कष्ट दे रही थी सरदी
सब धड़कनें सामान्य हो जाती
हैं, प्रकाश-संश्लेषण मात्रा बढ़ती।
अधिक ऑक्सीजन की उपलब्धता,
और जलापूर्ति पर्याप्त उपलब्ध
विभिन्न अंकुरों की सुवास
मिलकर, बनाए है एक अनुपम संगम॥
हर नर-नारी में काम
प्रवृद्धि है, उनकी काया को अलसाऐ कुछ
ऋतु बदली है, लोग बाहर निकल
रहे, कुछ सावधानी आवश्यक।
फाल्गुन में ही होली आती,
समस्त भारतवर्ष में है आनन्द-उत्सव
माघ व वैशाख इसके संगी, पर
असली आनंददायी है फाग-चैत॥
आते कई पर्व नव-रात्रे,
माता-आरती, राम-नवमी, महावीर जयंती
सब इनमें आनंदित ही होते,
पूजा-अनुष्ठान करते, मिलकर भक्ति।
वैशाखी आने वाली ही, फसल
कटेंगी, मेले लगेंगे, नाच-गाने होंगे
ढ़ोल-नगाड़े बजेंगे धमकेंगे,
सब पुलकित हो संग तब खूब नाचेंगे॥
वसंतोत्स्व-गोष्ठियाँ होंगी,
ग़ज़ल बनेंगी, जमेंगे गज़ल-कवि सम्मेलन
कुछ तो धमाल होंगे, पुस्तक
मेले लगेंगे, वर्षांत पर पुराने खाते बंद।
कुछ युवा हृदय कवि बनेंगे,
सोलह कलाओं से होगा मन-परिचित
कोई शैक्सपीयर, बायरन, कालीदास, तो कोई बनेगा ही
वर्ड्सवर्थ॥
वसंत-पंचमी को सरस्वती पूजा
होती, कला-देवी देती है अनुकम्पा
पुरातन का स्थान नवीन हैं
लेते, व सहायक बनते स्रष्टि की रचना।
सदैव हर एक प्राणी- पादप में
जन्म, एवं युवा बनने की है पारम्पर्य
प्रत्येक को सर्वोत्तम का
अवसर प्रस्तुत, और हेतु महद परिवर्तन॥
विकास तो सकारात्मक- दिशा
होता, सहायता करे है उसमें वसंत
समस्त क्रियाऐं नव- निर्माण
को इंगित होती, अतः स्तुत्य है स्वतः।
सर्वत्र ही मानवेतर
प्राणी-जगत में, वसंत अपनी प्रफुल्लता है भरता
कोयल कूँ-कूँ, चिड़ियाँ
चीं-चीं, शुक टें-टें से पुलकित खूब करता॥
गाय- भैंसे प्रसन्नता से
रम्भाती, उमंग-अवस्था ही करे हैं प्रदर्शित
खग-वृंद का प्रातः-सायं
कलरव, विशेष शोर-गुल करते हैं प्रस्तुत।
वसन्त तो हर रग-२ में है, आओ
अनुभव तो करें, नव-निर्माण करें
प्रकृति के इस महोत्स्व में,
अपनी भागीदारी भी सुनिश्चित कर लें॥
अब ज्ञान-प्रवाह तो स्वयमेव
ही बढ़ेगा, रचना चेष्टा सृजनात्मक है
आविर्भाव है नव-चिंतन,
सर्व-विकास का, उत्साह प्राणी मात्र में।
यदि पादप-विज्ञान समझने में
कठिन, तो वसंत की दृष्टि से देखें
हों सबके मन हर्षित, पुष्प
महकें व नव भविष्य की तैयारी करें॥
प्रसून* : फल
पवन कुमार,
( मेरी डायरी 25 मार्च, 2015 समय 11:07 प्रातः से )
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