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Saturday, 25 April 2015

क्षेत्र-उपयुक्तता

क्षेत्र-उपयुक्तता 


श्रेयष-उपयुक्तता, हर क्षेत्र में अनिवार्य है नितान्त

कहाँ-किसका-क्यों-कैसे प्रयोग हो, प्रश्न विशाल॥

 

प्रयोजनार्थ कैसे बनें निपुण, उपयोगिता-वृद्धि क्षेत्र

जो उचित है सदा ही वाँछित, प्रयास हेतु उसी सब।

समुचित-उपयुक्त हेतु ही, युक्तियाँ सब बनाई जाती

थोथा झाड़ दिया जाता, अन्न-दानों निमित्त ही कृषि॥

 

कैसे व्यर्थता कम हो, ताकि उत्पादकता-क्षमता बढ़े

समृद्धि-विकास, उत्थान-वृद्धि का पथ चिन्हित करे।

दिव्य-दृष्टि ऐसी पाई जाऐ, जो लक्ष्य पर एकाटक हो

ढूँढ़े जाए कैसे वे योद्धा, जो रण-कुशल व समर्थ हों॥

 

हर आयाम में 'सर्वश्रेष्ठ युक्ति', जिसकी है ख़ोज नित

सर्व विद्यालय-प्रशिक्षण केंद्र, उसी हेतु कृत-संकल्प।

उपयुक्त-प्रशिक्षित उपलब्ध, विभिन्न जग-आयाम हेतु

मानव-क्रिया संग्रहित करना और उद्देश्य-मुखी सेतु॥

 

क्या विशेषज्ञता-दर्शन, कदाचित सर्वोत्तम बनना एक

बहुत आवश्यक जग यापन के, हेतु विभिन्न कार्य-क्षेत्र।

सब नरों में हुनर का बढ़ाव, विश्व को बनाएगा सुरमय

लक्ष्य परस्पर-पूरक बना, विविधता बस कार्य वितरण॥

 

सबकी निज अभिरुचि-शैली, एक-दूजे से पृथक करती

अपनी दिशा पारंगत होना चाहते, वह भी माना भली ही।

पर सोकर, प्रमाद में जन्म गँवाना तो न अति समझदारी

महद संकल्प समर्पण ही, पुरुष-जीवन की है कसौटी॥

 

कैसे ढूँढ़ते उपयुक्त पात्र, उन हेतु है मारा-मारी सर्वत्र

सब योग्य मित्र चाहें, नव-प्रशिक्षुओं को योग्यों में बदल।

माना कुछ प्रशिक्षित भी हों, तो भी है दक्षता-आवश्यक

 सतत तैयारी-वृद्धि, बड़ी भूमिका में भागीदारी सुनिश्चित॥

 

कार्य में कुशलता-प्रवीणता, आत्मार्थ सम्मान है दिलाती

पर हेतु कार्य करना पड़ता, मुफ्त में श्लाघा न मिलती।

चेष्टा वृद्धि, न्यूनतम सततता, उस विधा में निखार लाती

 सीखना सूक्ष्म दाँव-पेंच, जग-निर्वाह न इतना सरल भी॥

 

क्या हो सीखने का ढ़ंग, नहीं चलानी है धूल में ही लाठी

 पूछ लो सहकर्मी-प्रज्ञानियों से, कौन सी शैली है सुग्रहणी?

माना एक काल सब अनाड़ी, पर चेष्टा कुछ देती है सिखा

 एक उपयुक्तता-मार्ग है खुलता, उच्च-विचार करें प्रतीक्षा॥

 

विशेषज्ञ अपने क्षेत्र के धनी, अपने कर्म हैं बखूबी जानते

कहाँ-कैसे-क्या करना है, उचित पथ में ही ऊर्जा लगाते।

सूर्य-स्वभाव ऊष्मा-प्रकाश देना, रोशनाई चंद्र से शीतल

निर्मल पुष्कर-जल आनंद दे, मुस्काते कुमुदिनी-कमल॥

 

आम्र वृक्ष पर ही आम लगेंगे, कंटीली बदरी तो बेर देगी

पीपल-वट से गहन छाया, सूक्ष्म बीज से संभावना बड़ी।

चंदन द्रुम से सुगंधि, दुर्लभ- बहुमूल्य कुछ ही पा सकते

हर वन में तो न पनपते, गुण कारण बड़ी माँग हैं रखते॥

 

हर भुजंग तो मणि नहीं रखता, हर गज मुक्तक न बाँटता

हर चलने वाला ज्ञानी न होता, हर वृक्ष तो छाया नहीं देता।

हर शिक्षक नहीं है पारंगत, नचिकेता न होता विद्यार्थी हर

प्रत्येक न है न्यूटन-आइंस्टीन, तो भी प्रयत्न बनना कुछ॥

 

माना कुछ ही श्रेष्ठ, तो भी जगत-निर्वाह दायित्व सबका

स्व का योग्यतर-निर्माण, उपयुक्तता में वृद्धि है कराता।

जीवन समृद्ध बनाना गुणों में, स्व को तो देगा ही साहस

यह कायनात भी बेहतर बनेगी, अतः मिल करें प्रयास॥

 

किंचित संवाद स्व-स्थापन, महद लक्ष्य मस्तिष्क में बनें

उपयुक्तता सुनिश्चित करें, हर ओर विकास पुष्प महकें॥

 

धन्यवाद॥



पवन कुमार,
25 अप्रैल, 2015 समय 20:15 सायं 
(मेरी डायरी दि ० 19 मार्च, 2015 समय 10:29 प्रातः से )


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