सहकार - भावना
एक सर्वविदित उक्ति प्रज्ञा-उदित हो, हमारे अस्तित्व में निरत सहयोग बहु अवस्थित
सब संगी, अवर-वरिष्ठ संग चलें, प्रेरणा-प्रयास निपुणता-कर्मठता में करेगी परिणत।
एक विस्फरित विज्ञ चक्षु दूजे संग मिल चौड़ा दृष्टिपटल बनाए, बहु वस्तुस्थिति-ज्ञान दे
एक हाथ क्षीण पर दूजे से मिल बड़ा बोझ उठा लेता, परस्पर कुछ काम भी बाँट रखे।
यदि पूरा देह-भार एक ही पाँव पर तो थकेगा, दोनों चलकर सुदूर देश-यात्रा पूरी करें
अपंगता से क्षमता निश्चितेव घटती, पूर्णता से निश्चिंतता सी, चाहे हम सम्मान न करते।
शिष्य की सदा गुरु-जरूरत, शिशु को जनक का संग-दुलार, जीवन-दायक
सब प्राणीगण परस्पर सहयोग से ही प्रगतिरत हैं, बाँटे ज्ञान से सतत ही हैं लाभान्वित।
एक वानर दल वीथि-किनारे जंगल या पार्क में है, लोग खाना-फल आदि रख देते वहाँ
वे भी स्व कला-दृश्यों से जन-मन बहलाते, बाल-कपि की तो अति-सुंदर अटखेलियाँ।
बड़े नगर-चतुष्टों पर लोग पक्षी-गिलहरी आदि हेतु अनाज-दालें, मक्की-दानें रख देते
झुंडों में उनकी जरूरत अनुरूप उदरपूर्ति, निश्चिंतता सी, नीड़ जाकर गीत गुड़गुड़ाते।
कई स्त्रियाँ प्रातः ही चींटी-बिलों समीप आटा-अन्न रख देती, उनका भी हो प्राण सुलभ
कई साधु खग-कुत्ते-बिल्ली-गिलहरी हेतु पार्क-गली पास या छतों पर जलपात्र देते भर।
संकट में दरिद्रों की भोजन-वस्त्र-औषधि-पुस्तकों द्वारा चाहे अल्प ही, मदद की जाती
धन-साहस-प्रेरणा से उन्हें कुदशा-दलदल का निर्गम-युक्ति हर स्थल देखी जा सकती।
अनेक छात्रवृत्तियाँ निम्न-आय अभिभावक-होनहारों हेतु दत्त, जीवन होता परिष्कृत ही
ये अस्पताल-विद्यालय, अनाथाश्रम-धर्मशाला, लंगर, जलकूप-वृक्ष सब सहयोगार्थ ही।
कुछ लोग नदी-तीर मीन-मगरों हेतु खाना रख देते, रुग्ण वन्य जीवों का होता ईलाज भी
हम घरों में पालतु कुत्ते-बिल्ली-पक्षी आदि रहते हैं, जो एक सदस्य भाँति सम्मानित ही।
कई सामाजिक-सुरक्षा उपाय शासन-सहृदयों द्वारा, बहु विश्व-संस्थाऐं जन-हितार्थ निरत
भावार्थ आपसी-सहायता का, वरिष्ठ-अवरों का भी आशीष-धन्यवाद सुवचनों से सुकून।
अतः नर अगर्वित ही रहे, सब काल-चक्र पाश में, इसकी दशा बदलती, जरूरत सबकी
कोई सदा बली न, जीवन बहु-आयामी है, बहु स्थल निम्नबल ही, अतः विनम्रता जरूरी।
शुभ जीवन-कलाऐं सीखें, सिद्धि सकारात्मक दृष्टिकोण माँगे, सर्वहित में अपना भी भला
समृद्धि से तो भला ही है, चरित्र ऐसा हो सब सहकार करना चाहें, निज दिखे निष्पक्षता।
पवन कुमार,
२३ अक्टूबर, २०२३ सोमवार समय २२: ५८ रात्रि
(मेरी चेन्नई डायरी ११ मार्च, २०२३ मंगलवार से)
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