दीप्ति - दर्शन
उद्विग्नता से तो न अति भला, मात्र ऊर्जा अपक्षय ही, जबकि अनेक कार्य करने।
नाम जीवन मात्र इसकी यापन-कला सीखने का, सदा यह-वह लगी रहती चिंता
यदि कुछ सहज मनन कैसे क्या कुछ किया संभव, और सुलझें उलझी गुत्थियाँ।
किंचित दीप्ति-दर्शन भी, भिन्न विकल्प मनोदित, कुछ समाधान है जाता अटक
सब आयाम ढ़कने से ही बात पूरी बनती, एक-२ करके अनेक काम जाते बन।
स्वयं बहु आयामों से गुजरा, नित्य कर्म-अपेक्षाऐं समक्ष ही, हौले से भी निबटना
माना कुछ अनुभव किंतु कैसे बहु-प्रयोग करते एक व्यापक लाभ सोच सकता।
सब अपेक्षाऐं तो पूर्ण न शक्य, पर मन-वचन-कर्म से कुछ असहाय-मदद संभव
अन्य-निर्भरता उद्देश्य न, व्यापक हितार्थ योग्य, शासन-सम्मत बनाना आवश्यक।
अब नित्येव कुछ अन्वेषणा, अंततः योग्यता-मान करते तुम्हें किया पदासीन उच्च
सफल परियोजना-निष्पादन दायित्व, संगियों को दिशा-निर्देश दिए जाने उचित।
सकल कवायदें आत्म-प्रबंधन से शुरू, तब संबंधितों को कथन-झझकोरना-प्रेरणा
स्पष्ट अनुभव कि बड़े जग-खेल में, स्व वक्ष के ऊपर से ही गुजरती बहु विफलता।
इस खेल में तुम लघु-क्रीड़क, किंतु तव गति से ही पश्चग-कारवाँ बढ़ता आगे शायद
अहम भूमिका मौका मिला, दृष्टि तुमपर, प्रधानाध्यापक सम दंड चलाने से का रोल।
एक सेना सी में हो बाहर घोर समर है, किंचित तंद्रा का अर्थ बहुत बड़ा सा जोख़िम
अब सेनापति हो तो सब रण-कौशल, युक्ति-प्रबंधन सुनिश्चितता दायित्व, व निर्वहन।
बहु पुस्तकें मनन-पठन कि जन सफल परियोजना-निष्पादन में सहायता करते बड़ी
योग्यतानुसार ही कार्य लब्ध, अब आ गए तो समक्ष का समन्वय-कर्त्तव्य भी निज ही।
माना स्वयं भी एक शृंखला में अन्य-निर्भर, कोई बड़ा संबल भी ढूँढ़ना पड़ता तथापि
छुपने से तो कोई हल न, समस्या से सीधा भिड़ना होता, यथाशीघ्र हो समाधान भी।
अब नव-स्थल के इस नवगृह-निवास शुरू, रहने-खाने-सोने हेतु बनाना पड़ेगा अनुरूप
स्वच्छता-उपाय, नाश्ता-चाय आदि का प्रबंधन, ताकि देह-मन का स्वास्थ्य रहे उचित।
विषय पूर्व स्वयं समझने पड़ते तभी दूजों से बात कर सकते, यह सब माँगे ऊर्जा-समय
कोई भी बहाना न चले, फिर एक जगह स्थिर सा हो पूर्णबल संग उसे बना देना सफल।
पवन कुमार,
३ नवंबर, २०२३ शुक्रवार समय ११:२६ बजे रात्रि
(मेरी ब्रह्मपुर डायरी दि० २८ जून, २०२३ समय ८:२६ बजे प्रातः)