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Saturday, 5 July 2014

कुछ हिल्लोरें

कुछ हिल्लोरें 


कुछ नए रंग की बात हो, जिंदगी खुशहाल हो

झूमें, गाऐं, नाचें सारे, मन में तान सुरीली हो॥

 

सबका हो मन पुलकित, मस्त बसंत-बहारों में

एक दूजे को चाहे मन से, कोई ना बेहाली हो।

रंग-गुलाल अबीर यूँ फैले, तन-मन सराबोर हों

और अपनी मस्ती में, सबसे हँसी -ठिठोली हो॥

 

सर्वत्र आनंद-स्नेह-रस का, मधुमय साम्राज्य हो

भारत अपना रहे सम्पन्न, नित्य यहाँ दीवाली हो।

मन बड़ा दूजे को समझे, अति-व्यापक सोच हो

निज कर्त्तव्य-बोध, सबने मन में ऐसी ठानी हो॥

 

नागरिक सुभागीदार बनें, सदा समर्पण राष्ट्र हेतु

सब अपने हैं मैं सबका, निर्मल भाव फ़ैलाने हों।

हो सुभीता मन-दृष्टिकोण, सब पक्षों से न्याय करें

जाँचे-परखे निर्णय पूर्व, विवेक संग तब जाना हो॥

 

अच्छा लेखन-अध्ययन, सुघड़ता में मन तल्लीन रहें

बढ़ाकर निज को जग में, सबको राह दिखानी हो।

अपेक्षाओं का आदर करें, और सबसे सहयोग करें

मन-भाव समझ कर ही, कुछ कहने की बारी हो॥

 

मस्ती-भाव रहे मन में, पुलकित औरों को भी करें

न रुकना हो आलम, बस आगे बढ़ने की ठानी हो।

चले-चलो तुम निज धुन में, न हो कोई ही अहंकार

ज्ञान-चक्षु खुलें मन के, परम में जुगत लगानी हो॥

 

पवन कुमार,
 5 जुलाई, 2014 समय 21:36 रात्रि 
(मेरी डायरी दि० 23 मार्च, 2014  समय 11:20 पूर्वाह्न से)

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