कुछ नए रंग की बात हो,
जिंदगी खुशहाल हो
झूमें, गाऐं, नाचें सारे, मन
में तान सुरीली हो॥
सबका हो मन पुलकित, मस्त बसंत-बहारों
में
एक दूजे को चाहे मन से, कोई
ना बेहाली हो।
रंग-गुलाल अबीर यूँ फैले,
तन-मन सराबोर हों
और अपनी मस्ती में, सबसे
हँसी -ठिठोली हो॥
सर्वत्र आनंद-स्नेह-रस का,
मधुमय साम्राज्य हो
भारत अपना रहे सम्पन्न,
नित्य यहाँ दीवाली हो।
मन बड़ा दूजे को समझे,
अति-व्यापक सोच हो
निज कर्त्तव्य-बोध, सबने मन
में ऐसी ठानी हो॥
नागरिक सुभागीदार बनें, सदा
समर्पण राष्ट्र हेतु
सब अपने हैं मैं सबका,
निर्मल भाव फ़ैलाने हों।
हो सुभीता मन-दृष्टिकोण, सब
पक्षों से न्याय करें
जाँचे-परखे निर्णय पूर्व,
विवेक संग तब जाना हो॥
अच्छा लेखन-अध्ययन, सुघड़ता
में मन तल्लीन रहें
बढ़ाकर निज को जग में, सबको
राह दिखानी हो।
अपेक्षाओं का आदर करें, और
सबसे सहयोग करें
मन-भाव समझ कर ही, कुछ कहने
की बारी हो॥
मस्ती-भाव रहे मन में,
पुलकित औरों को भी करें
न रुकना हो आलम, बस आगे बढ़ने
की ठानी हो।
चले-चलो तुम निज धुन में, न
हो कोई ही अहंकार
ज्ञान-चक्षु खुलें मन के,
परम में जुगत लगानी हो॥
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