श्रम-विचार
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हम किन हेतु काम करते निज या अन्यों के, या व्यर्थ तनों को रहें थका
गधा-बैल-ऊँट-अश्व सारी वय स्वामी-भार ढ़ोते, बदले में पुण्य कितना?
क्या श्रम का जग में कुछ आदर, भवन बनते ही मजदूर दिए जाते हटा
फैक्ट्री में मजदूर दिन-रात खटता, क्षतिपूर्ति भी न होती बाद दुर्घटना।
कितने श्रमिकों को है पूर्ण-भृत्ति ही प्राप्त, वाँछित सुविधाऐं तो अज्ञात
सब तो न अनेक धनी बन जाते, श्रमिक-जीवन में न विशेष परिवर्तन।
विश्व में सर्व-जन लोग काम कर रहे, अब किस हेतु यह तो पूर्ण न ज्ञान
मजदूर-श्रम से पूंजीपति लाभ में, पर अंततः प्रजा-प्रयोग ही उत्पाद।
हम कार्यालय में काम करते, खीज भी जाते दिन-रात्रि मात्र करते काम
पर प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष असर विशाल जगार्थ ही, हम न सोच पाते शायद।
बोझ ढ़ोने को क्या कहें खटना या वृहद जन-सेवा, एक प्रश्न है विशाल
क्या भर्ता में श्रमिक-भावना मान, उसका जीवन-सुघड़ता का प्रयास?
क्या सोचते कर्मी व कुटुंब हेतु, कि वहीं से श्रमिकों की नई खेप मिलेगी
अतः कोशिश पूर्ति टूटने न पाए, इतना ही दो कि कठिनता से पेट-पूर्ति।
इतना बड़ा तंत्र अनेक कर्मी भरती कर रखें, अपने-२ कामों में लगे सब
कितना माल-मसाला-सामग्री भी चाहिए, पूर्ण उत्पाद इनसे ही निर्मित।
नर में उत्पादकता परिवर्तन का हुनर चाहिए, आवश्यकता अधिक वहाँ
जीवन में सर्वस्व तो न प्राप्त सबको, कुछ नर हासिए पर रखे जाते माना।
अब लाभ में धनी के बच्चों को उत्तम शिक्षा, अच्छे तौर-तरीके रहें सीख
निर्धन प्रायः अशिक्षित, गँवारू शैली, सभ्य-जग के तरीके हैं अदर्शित।
यावत न नर को मूलभूत सुविधाऐं, संतति-भविष्य हेतु न अधिक विचार
कुछ संस्थाओं की शोषितों प्रति सहानुभूति, जीवन-प्रकाश का प्रयास।
पूँजीवाद-शोषण का पुरा-संबंध, पर साम्यवाद से आम नर प्रति तंत्र बाध्य
कुछ trickling effects भी आऐं, तथापि सर्व-धन चंद हाथों में चला जाता।
पर क्या डर से काम करना ही बंद कर दे, कि सब जाएगा धनियों के पास
उचित पर उदर-आत्मा तृप्ति भी जरूरी, अतः कर्म करो, लाभार्थ प्रयास।
पवन कुमार,
३ मार्च, २०१९ समय 00: १९ मध्य-रात्रि
(मेरी डायरी दि० १६ फरवरी, २०१८ समय ९:२१ बजे से)
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