'अंकुश' शब्द अभी मन में आया, सोचा कि इस पर हो कुछ मनन
जिंदगी में बहु-विक्षोभ, रोध जरूरी, मनुज उन्नति हेतु हो संयमित।
अनुशिष्ट, संयम, अंकुश, पूर्वापाय, प्रशिक्षण, डाँट-फटकार, साधना
ये शब्द पर्यायवाची से, प्रयोग हर दिन, पर सत्य परिवर्तन ही सार।
ये शब्द पर्यायवाची से, प्रयोग हर दिन, पर सत्य परिवर्तन ही सार।
मन में हैं अनेक तरंगें उठती, पर बह जाना समझदार कदम क्या
जीवनोत्थान चेतना-साधन से ही, स्वरूप सँवरे, सर्व - प्राथमिकता।
'अंकुश' शब्द आशय को थोड़ी गहराई से समझने का चलें करें यत्न
यदि बच्चे कुपथ पर अग्रसर तो समझा-बुझा, डाँटकर लाए मार्ग पर।
शिक्षक कर्त्तव्य शिष्य का विद्या-ग्राहीकरण, मन-देह समर्पित ज्ञान में
कार्यालयाधीश कर्त्तव्य ऑफिस ठीक नियमानुसार-गुणवत्ता से चले।
शासन-पुलिस कर्त्तव्य प्रजा को शांतिपूर्ण-उन्नत प्राण हेतु देना परिवेश
यदि उपद्रवी सामंजस्यता भंग करें, रोध कभी दंड-प्रयोग भी उचित।
पर क्या सर्वोत्तम युक्ति सुशासन की, सर्वलोक की हो गरिमा सुरक्षित
समता भाव, बृहत-दृष्टिकोण, जग-सूक्ष्मताऐं समझ हो व्यवहार-शील।
एक सीमा बंधन ही है है अंकुश, मर्यादा पालन अपना क्षेत्र बताए
स्व-विचार परीक्षण भी आवश्यक, जरूरी न लोग सर्व स्वीकारेंगे।
नर भिन्न कुल-समाज-स्थलों में सदैव, सुविधा से संविधान निर्माण
नियम-भिन्नता स्वतः ही, कुछ सक्षम भी हैं समेकित-दर्शन सक्षम।
एक की अनुचित प्रवृत्ति, पर दंड या कुल-प्रतिष्ठा बढ़ने से करें रुद्ध
लोगों को माँ-बाप याद, अपमानजनक स्थिति पैदा न हो करते यत्न।
अपने घर में भी तो बहन-बेटी हैं, सबके आदर से अपना बना रहेगा
परस्पर सम्मान, पड़ोसी से संयमित रिश्ता, कई कष्टों से है बचाता।
अंकुश-अनुशासन का अर्थ न कोई बलात, अपितु मन से सुप्रतिबद्ध
आदि-प्रशिक्षण चाहे ही कष्टमय, फिर शनै सामान्य होने लगता सब।
विवाह-पूर्व अत्युद्दंड युवा भी पाणिग्रहण पाश बाद जिम्मेवार हो लिए
उम्र संग लोग गंभीर हो जाते, जीवन व्यर्थ ही न बीतने देना चाहिए।
मनीषी तो सदा हुए, होते रहेंगे, आदर्श जीवन-संहिता करें प्रस्तुत
चाहे हों अनेक विसंगतियाँ, पर लोकमत कि प्रयोग से तो ही सुख।
कुछ न्यूनतम निर्मल भाव तो विश्वव्यापी, माना परिवर्तन भी शाश्वत
पर लोग प्रचलित रूढ़ि-पाशित, उन्हीं में जीवन के करते हैं प्रयोग।
यदि एक उदरपिशाच हो स्थूलकायी बना, ऊपर से व्यायाम न कुछ
परिणाम सर्व-विदित रुग्णता ही, कई नकारात्मक प्रभाव देंगे कष्ट।
यदि कुछ अंकुश है उचित जीवनशैली का, निश्चित ही सुभीता भव
न्यूनतम समन्वय वाँछित सु निर्वाहार्थ, कंटक हैं पसरे, चलो संभल।
मौन-व्रत कि मुख से न अनर्गल, श्रवण सीखूँ, ज्ञात हो मूकों का भी दर्द
मुस्लिम लोग एक मास रोजा रखते, गरीबों की भूख की आती समझ।
मुस्लिम लोग एक मास रोजा रखते, गरीबों की भूख की आती समझ।
दरिद्र-नारायण एक वृहद आयाम, असहाय - सहायक को कहते ईश्वर
स्वार्थ त्याग अनेक हितकार्य में व्यस्त-समर्पित, मन को मिलता शुकून।
शहर में दंगा, प्रशासन ने समय से रोक दिया, बहु-जानमाल हानि से रक्षा
यदि उत्तम संस्कारित तो अधिक जिम्मेवार, सर्वहित में निज भी दर्शना।
कोई इस जग से विलग नितांत भी न, सब सुखी तो मुझे स्वतः ही लाभ
निजी स्वार्थों से ऊपर उठो, सबकी पीड़ा कम हो ऐसा करो सब प्रयास।
लोक-समाज-सभ्यता-देशों पर अंकुश, सीमा में रहो वरन हानि अधिक
मनुज न पूर्ण स्वछंद-स्वतंत्र, कुचक्रों से सर्व-विनाश सोच सकता किंचित।
पर ज्ञान कि मारा जाऊँगा, सचेत कि अधिक बुरा न हो, लोग लेंगे पकड़
परस्पर सहन बड़ी बात, एक-दूजे से गुँथे, समर्पण से हो व्यवहार उत्तम।
अनुशासित हो नर व्याधियों से बचा रहता, पुरस्कार में लोक-सम्मान
स्व का वृहद-चिंतन पथ ज्ञान, स्वशासन काष्टाओं को देता अग्रचरण।
जीवन में अनेक कष्ट हैं आते, पर व्रत-परहेज से बीमारियाँ रहती दूर
योग भी एक शैली, संपर्क-दृष्टि-यापन-दर्शन-व्यवहार सिद्धांत - बुद्ध।
जीवन में निर्मल-स्पंदन चाहिए, उन्नति हेतु व्यर्थ-व्यवधानों से बचना
सीमित ऊर्जा सुप्रयोग, उत्तम नियम वरण, अन्य-अंकुश न हो वर्जना।
पवन कुमार,
२९ मार्च, २०२० शनिवार, समय ७:३१ बजे सांय
(मेरी महेंद्रगढ़ डायरी १० अप्रैल, २०१८ समय ८:२४ बजे प्रातः)