लॉक डाउन रिक्तता-विमर्श
-------------------------------
एक घोर रिक्तता मन को संतापित कर रही, चाहकर भी सामान्य न संभव
अंतः पूर्णतया शून्य प्रतीत चाहे मुखरित न हो, हृदय में शूल सी चुभती पर।
कौन कपाल के ऊपरी मध्य भाग पर पीड़ा जमाता, हृदय में आभास हलचल
सब मिलकर सताते मैं नितांत निरीह, कुछ पढ़ने में स्वयं को कर लेता व्यस्त।
घर पर हूँ बिलकुल खाली, अल्प-भाषण भी सोच रखा, मात्र काम की बातें अतः
पर व्रत था स्व-शुद्धि का, पड़ाव कहाँ है सब कुछ अज्ञात, अपने से हूँ कोसों दूर।
भारत सरकार द्वारा २३ मार्च, २० २० से नागरिकों को गृह-आवास के आदेश दत्त,
कोरोना एक मुख्य महामारी की शक्ल ले रही, अतः सब कार्यालय-कारोबार बंद।
पहले बचपन में जब स्कूल में थे, तो गरमी में डेढ़-दो महीने की छुट्टी हो जाती थी
तब दूजे के घर चले जाते थे, बातें कर लेते, इकट्ठे घूम आए, खेल लिए, समय बीता
अब आदेश से बाहर निर्गम नहीं, शहर में किसी के यहाँ आना-जाना भी न होता।
अभी जिंदगी एक सेवानिवृत सी बन गई, कुछ ज्यादा सामाजिक संबंध या मित्र भी न
यहाँ कौन किसके यहाँ आता-जाता, कभी मोबाईल या मैसेज पर ही बातें होती बस।
कितना बदल गया मनुज का जीवन, इतना अकेला, अन्यों से मात्र औपचारिकता ही
सब अपने घरों में घोर अकेले, संपर्क-साधन भी न इच्छा, न कोई अतएव रूचि ही।
यहाँ शहरों में घर-दड़बों में सब दुबके, सारे रिश्तें-मित्रता बस नाममात्र ही रह गए
कुछ बस व्हाट्सप्प पर ही चिपके रहते, किसी ने कहीं से भेज दिया नकल करके।
और काम न बस उधार का ज्ञान बाँटना, कुछ मूल-सर्जन नहीं बस बीच का माध्यम
माना जग पूर्व के अन्य समय से अधिक युजित, पर क्या मधुर संबंधों में परिवर्तन।
क्यूँ मेरे साथ ही या और भी ऐसी स्थिति से गुजर रहें, एक परम-विरक्ति सा है भाव
वार्तालाप की अनिच्छा, न कोई उमंग-उत्साह-लक्ष्य, जैसे प्लेट में पारा दिया डाल।
अस्तित्व नितांत अज्ञात बस सकुचा से गए, अल्प-भाषण, भाव-भंगिमा ही प्रदर्शन
यौवन का चुलबुलापन, अपनी बात मनवाने की जिद्द, सभी रस शून्य से हैं लगभग।
पास ही फर्श पर लेटी पालतू लूना के बारे में सोचता, ये जीव भी कितने अकेले हैं
रखा तो पर उसका सामाजिक जीवन न, बस खाना-जल दिया, बाहर घुमा लाए।
कभी समय तो थोड़ी बात कर ली, उसने दिनभर बैठने-सोने की डाल ली आदत
बस बैठे देखती, प्रतीक्षा सी, कोई इच्छा न, जैसा मालिक ने चाहा किया व्यवहार।
हम वस्तुतः अकेलेपन में क्या करते, कहते दिमाग तो शैतान पर अभी संज्ञा-शून्य
मात्र खाली समय काटने को कुछ उपक्रम ढूँढ़ना सा, अन्य प्रकार का उद्योग न।
न कुछ काम, बस खाना-सोना ही, प्राण-वहनार्थ स्वाभाविक क्रियाऐं मन-देह में हाँ
कोई अनुसंधान भी न, कुछ उत्तम कविताई भी न, निरर्थक क्यों प्राण बहा जा रहा।
चित्त क्यूँ दूजे को सुने, निज सुर भी न गूँज रहे, इस रिक्तता में कैसे हो जीवन पूरित
विश्राम-स्थिति तो ठीक पर यदि परिश्रम से श्रांत उपरांत हो, तभी ज्यादा है सार्थक।
निज को पहचान देना ही एक परम चुनौती, पर मुश्किल अतएव भाव भी उदित न
किसी से आत्म-व्यथा कह भी न सकता, यूँ लगता कि जीवन शून्यता में जा रहा है।
कुछ निर्जीव सा हूँ या सजीव, मूढ़ या चेतन, स्वप्निल या वास्तविक, मूर्त या निराकार
क्या यह जीवन-मर्म, इस शून्यता से ग्रसित हो अनेकों ने घर-बार दिए त्याग-बिसार।
एक सत्य-अन्वेषण में ही पूरा खप गए, खीजों से झूझते, जीवन-मर्म ज्ञान की चेष्टा-रत
ऐसे ही महानर महावीर की आज जयंती, पर लॉक-डाउन से सब लोक-उत्सव बंद।
भारत यायावर की महावीर प्रसाद द्विवेदी के संकलन से पढ़ा 'जीनियस' विषय में
कहते हैं ऐसे लोगों में एक घोर रिक्तता होती, चाहे वे बाह्य से सामान्य ही दिखते।
इससे निबटने हेतु वे सर्वस्व झोंक देते, पर कुछ अनुपम उपहार संसार को दे जाते
शेक्सपीयर-कालिदास, तुलसी-व्यास-बुद्ध, न्यूटन-आइंस्टीन से ऐसी श्रेणी में आते।
इस शून्यता के क्या अर्थ, मौका कुछ विचित्र-कर्म का या मात्र ढ़ेले सम शिथिलित
क्यों न यह ऊर्जा में परिवर्तित, अपने भी जीवन में कुछ होने लगे सार्थक संभव।
जीवन में कई विफलताओं से सामना प्रतिदिवस, तो क्या डरकर जीना ही दे छोड़
हाँ विरक्ति-भाव उपचार कोई महद लक्ष्य ग्रहण, यश हेतु यहाँ काम करता कौन।
आज अमिताव घोष की पुस्तक 'In An Antique Land' कुछ २ घंटे पूर्व समाप्त की
यह Egypt यानि मिश्र विषय में, लेखक अलेक्सेंड्रिया विद्यापीठ अध्ययनार्थ गया था।
लतीफा व नेशवे दो मार्गों निकट गाँव में कुछ वर्ष रहा, फैला किसानों से दोस्ती हुई
वहाँ वह सब छोटे-बड़ों, लड़कियों-औरतों से बात कर लेता, जैसे उनमें से ही है एक।
लेखक मध्य १२ वीं शताब्दी के एक अन्य बड़े चरित्र बेन यिजु को भी बीच में लाता
अति जिज्ञासु, कुछ पुराने पुस्तकालय पेपर के बदौलत पूरी कथानक रच डालता।
सुलभ तो है न इतने चरित्र - स्थानों को परस्पर जोड़ना, जैसे वह उनका अंश मात्र
मिश्र व भारत मध्य तात्कालिक व्यापार-संबंधों, लोक जीवन विषय में भी चर्चा है,
यमन के एडन व भारत के मंगलोर का जिक्र, कई चरित्र कृति में आते, रखते बाँधे।
बेन इफ़्रीक़िया यानि वर्तमान ट्यूनिसिआ का एक यहूदी है, मिश्र मार्ग से एडन आया
वहाँ उसका मार्गदर्शक व संबंधी मदमूम था, बाद में ११३०-३१ में मंगलोर आ गया।
वहाँ १८-१९ वर्ष रहा, एक नायर दासी को मुक्ति दिलाकर शादी की, बच्चे किए पैदा
वह अति समृद्ध था, हिन्द महासागर में उसका व्यापार मंगलोर-एडन मध्य था होता।
बाद में उसके भाई गृहदेश से इटली भागे, वह काल यहूदियों को मुस्लिम बनाने का था
यिजु बेटी की शादी भतीजे शरूर से करना चाहता, अतः मंगलोर छोड़ एडन आ गया।
उपरांत वह मिश्र भी गया जहाँ उसका भतीजा भी आ पहुँचा, और बच्चों का हुआ विवाह
बाद जीवन में वह बड़ा कंगाल हो गया, अपने भारतीय कर्मगार बोग्मा से भी है माँगता।
पुस्तक में बहुत कुछ ज्ञान है मिश्र के विषय में, विशषकर ग्राम्य-जीवन की काफी ज्ञान
लेखक व ग्रामीणों में इतनी आत्मीयता है कि शुरू-आवास बाद भी पुनः मिला जाकर।
शेख मूसा, नबील, जाबिर, बुसाइना, झोगलाडल से चरित्र इस कृति द्वारा अमर दिए कर
यह महानता-चिन्ह ही कि कैसे लोगों से मिलनसार हो, मनोदशा समझता उन जैसा बन।
लाल सागर सोमालिया-ईट्रिया-सूडान-मिश्र, व दूसरी ओर सऊदी अरब-यमन के मध्य है
यह हिंद महासागर की पतली सी पट्टी, व्यापार का एक मुख्य साधन पुरा काल से ही है।
अब यह मध्य सागर से स्वेज़ नहर द्वारा जुड़ गया, पूरी अफ़्रीका गिर्द घूमने की दूरी बची
इससे ही लोग मक्का-मदीना हज़ करने जाते हैं, पुरातन से ही क्षेत्र समुद्री मार्गों से जुड़े।
लेखक मंगलोर के बारे में बताता, एक पुरानी बंदरगाह अरबी देशों संग व्यापार केंद्र था
भारत से दाल चीनी-मिर्च मसाले बहुतायत में बाहर जाते थे, व्यापारी बड़ा माल बनाते थे।
कुछ लोग निस्संदेह बड़े अमीर थे, धंधे का हुनर समझ आ गया तो रंग तो चोखे होने ही थे
पर भिन्न लोगों की अपनी-२ खूबियाँ हैं, हमें आदर करना चाहिए, प्रतिभा निखरनी चाहिए।
इस कृति की चर्चा का एक कारण यह भी है, ऐसे लेखकों का जीवन में एक लक्ष्य होता
उनको सदैव भूख कुछ नव ज्ञान ग्रहण-लेखन की होती, विश्व को तो फिर लाभ ही होता।
मैंने अमिताव की 'द गिलास पैलेस, द सी ऑफ़ पोप्पीज, द हंगरी टाइड' कृतियाँ पढ़ी हैं
शेल्फ में दो 'द रिवर ऑफ स्मोक' व 'द कलकत्ता क्रोमोसोम' रखी हैं, समय रहते पढ़ूँगा।
अतः खुद को रिक्त मत समझो, उद्देश्य ढूँढ़ो, जुट जाओ, सिद्ध सम इसे सोने में बदलो
भूख पैदा करो हार न मानो, दुर्बलताओं से लड़ना सीखो, सफलता अवश्यमेव मिलेगी।
पवन कुमार,
२ अप्रैल, २०२१, गुड फ्राइडे, समय ७:३४ बजे प्रातः
(मेरी डायरी ६ अप्रैल, २०२० समय ७:१५ सायं से)
No comments:
Post a Comment