ककहरा-आलाप
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ऐ ज़िंदगी गले लगा, वक़्त के ककहरे सिखा, अभी बहता सा मात्र
जग-रेलमपेल में व्यस्त, नितांत अजान, मुस्कान के दे कुछ पल।
यह लेखन ऐसे दौर से विलगाव हेतु ही, बुद्धि प्रयोग से ज्ञानार्जन
एक स्वयंभू सी आत्म-सृष्टि, इस गुप्त सामग्री कर रहा प्रकट।
अमूल्य निधि भवन में दबी, स्वामी कंगाल, दयनीय-असहनीय
कैसे होऊँ उऋण, बड़ी मार खा ली, बल लगा परिवर्तन -यत्न।
दशा कस्तूरी-मृग सी, सब स्रोत अंतर्लुप्त, बाह्य गवेषण विभ्रमित
संपूर्ण बुद्धि-अनुभूति, वेदादि वाणी से रंजन हेतु गा लोरियाँ कुछ।
अंतर्तान सुना, भाव बाहर ला, कुछ मृदुल गूंज दे जो बिखेरे पूर्णता
गुरु-संपर्क, सौम्यता से परिचय, अंतर्विरोध हटा, क्रांत-द्रष्टा बना।
उत्साह-निर्भयता मनवासित, कर्त्तव्यमुखी, कुछ गायन विधा सिखा
उन्नत-पथ, ज्ञान-गुहा प्रकाशन, शुचिता अभिमुख, दीक्षित योगविद्या।
तंद्रा तज चेतना-संसर्ग, निरुद्देश्यी प्रतिद्वंद्विता हटा सुचिंतन प्रतिष्ठित
दिव्यदृष्टि सी सिद्धि, एकाग्रता की रिद्धि, मन से हटा अवसाद सर्व।
सर्व भू प्राणी - कृतार्थ प्रेरित, स्मृति - पटल प्रखर, कर बुद्धि निर्मल
तन-मन शिथिलता-रुग्णता-कलुषता हटा, धन की स्वच्छता पवित्र।
प्रजा-वत्सल, सकल विज्ञान-ज्ञाता, विश्व -कल्याण का तू प्रणेता बना
मूढ़-दूरी हो श्रेष्ठ शिक्षार्थी मित्र, विचक्षण से संपर्क, अविश्वास निवार।
शंकराचार्य सा अद्वैत दर्शन, राम-मर्यादा, बुद्ध-ध्यान, गांधी सी समझ
महावीर-तप, शिव-सत्य, प्राणी-स्नेह पूरित, त्रुटि-त्राण, दूर-दृष्टि प्रखर।
सिद्धि-पथ समझ, अनुशासित जीवन, प्राणी-स्नेह, यम-नियम में ध्यान
स्वाहा सब प्रपंच, भ्रांति ध्वस्त, प्रतिबद्धता-कर्तव्य, कर्म-ज्ञान निपुण।
श्रेयस आयाम अपनाने से तरूँ, कबीर सम नाम जपने लग जाऊँ
स्वगान लीन हो, बावरी मीरा सा कृष्ण-रंग में पूर्ण बिखर जाऊँ।
कतरनें जुड़ें सब, एक पुत्तिका सा करूँ नर्तन, बहले सबका मन
हो सब पुरुषार्थ मनन, दे शुद्ध अन्न, बुद्धि प्रखर-उज्ज्वल दे कर।
एक उत्सव-मुदित भाव, गन्तव्य लाभ, नियुक्तियाँ-साकार बना
६४ कला -कृष्ण, अनुकृति पूर्ण पुरुष, कर्म-निर्वाह निपुणता।
विश्व- रहस्य समझ, शांति-कर्म दक्ष, सुयोग्य योजनाकार सम
कला -कौशल ज्ञान, वाग्देवी-वर लाभ, लेखनी-भाव निष्णात।
अंतर्वाक्य - स्वर, आदि से अनादि भ्रमण, पूर्ण भूगोल घूर्णन
विभिन्न संस्कृति -दर्शन, विद्वान-वार्ता में सम्मिलन का हुनर।
ब्रह्मांड ज्ञान कर-हथेली, सब विरोध-क्लेश-कोलाहल-भय तज
सब मूर्खता त्याग हो शुचिता-मित्रता, विषमता फिर समतल।
प्रज्ञावान बना, सुरुचिर वाद्य-नाद मन, विरक्ति संवादों से व्यर्थ
वार्तालाप - सफल, श्रेष्ठ व्यक्तित्व समृद्ध, भोर में उषा-दर्शन।
अभिभावक-शैली में सम्मिलित, सज्जन-बंधु सहायता में प्रेरित
मित्रों की आस, शत्रु मुख उदास, अंततः शत्रुता कर दे रिक्त।
निर्मूल विकार सब, उचित निकट समझ, हितार्थ अभिरुचि सर्वत्र
सुसाहित्य प्रस्तुति, कालजयी कृति, विश्रुत सम्मान, निवार दुर्जन।
एक मनस्वी-कर्मयोगी सी शैली, पूर्ण ज्ञान एक अकाल पुरुख सा
अहिंसक-करुणावान, सर्व-स्नेही परिचय, सुसंस्कार निकट बसा।
वैज्ञानिक-अन्वेषण, रहस्य उद्घाटन, तकनीक-संयंत्र अनुसंधान
चरमतम स्तर का ज्ञान-वर्धन साहस, पूर्णतया विरक्ति- अभिमान।
विनयशील, प्राणपथ प्रशस्त, पूर्ण कर्म-समर्पण से श्रेयस उदाहरण
सहक्रिया-सुपरिवेश निर्माण, सर्वांगीण विकास हो सब चेष्टा-उभार।
सुशब्द उदय, व्यवस्थित सुंदर भाव, कुण्डिलिनी सी शक्ति-जागृत
बहु अवसर-संभावनाऐं अनंत, दुष्चेष्टा निरोध हो प्रशांत सा चित।
एक पुण्यी -चेतना, सुयत्न-कर्मठता, समृद्धि-प्रणेता, व्याधि -त्राता
सुयुक्ति-अभिनव, सहायक-दिवस, सौम्य-वाणी, सर्वजन हों संग।
यही एक आशा है।
पवन कुमार,
१३ सितंबर, २०२२ समय ०७:४७ बजे प्रातः
(मेरी डायरी ३ अगस्त, २०२१ मंगलवार, ६:४३ बजे प्रातः से )
Baljeet S Roperia : Really great sir 👍👍🙏🏻🙏🏻
ReplyDeleteRajesh Jindal, Advocate : Fantastic. Aap bahut hi acchhaa liktae hain.
ReplyDeleteP.C. Gyasia: Very nice, and heart touching written...
ReplyDeleteAnand Dhiman : बहुत ही सुंदर I क्या बात है ।।
ReplyDeleteSanjay Arora : Wah Wah Bahut Khoob. Heartwarming
ReplyDeleteS.S. Chauhan : Wah bahut khoob,🙏🙏
ReplyDeleteMangat Ram Jain : Sir
ReplyDeleteKo Namaskar.