गागर में सागर
ब्रह्म-मुहूर्त वेला, एकाकी-मन, गहन निःशब्दता सर्वत्र, और एक सुचिंतन समय
इसमें बैठा हूँ तूलिका- कागज संग, कुछ विचित्र कृति संभाव्यता का है प्रयत्न।
कोई अंतः-बाह्य प्रेरणा अद्भुत रचाती, काल-खंड कलाकृति कालजयी भवत
एक अति शब्द-प्राचूर्य, कुछ शब्द-उक्ति भूमंडल पर करते व्यापकता प्रस्तुत।
कोई तो प्रजा- शब्दकोश में वृद्धि करता, चाहे प्रचलित को ही कर दे अपभ्रंश
सतत प्रयासरत निज वाणी- कूक हेतु, व स्थिति अनुसार हो जाता भी प्रसारण।
कुछ प्रहरी विश्व-निर्वाहार्थ दिशा-निर्धारण के, सब बीहड़-कंटक हटा पथ सुगमन
कोई शब्द-गठन करते होंगे, अनुपम रचना बन संपूर्ण विश्व की चहेती जाए बन।
एक ध्यानरत सकल हिमालय-चित्रण 'कुमार-संभव' की 'उमा-उत्पत्ति' में हो जाए
या कुछ श्लोकों से मेघदूतम-काव्य, पूर्ण मेघ-यात्रा अति-माधुर्य संग प्रस्तुत करें।
किन मन-प्रणेताओं का है विस्मयी चित्रणार्थ मनन, समय निकाल प्रस्तुति भी श्रेष्ठ
कौन प्ररेणा आ जगाती तंद्रा-निद्रा से, अद्वितीय हेतु निर्देशित मनोदशा करो सज्ज।
एक धैर्य-विश्वास, श्रद्धा दान, इस नश्वर-देह व कालिक-चेतना से कुछ अनश्वर उदय
जब भी नर वर्तमान शक्ति-साधनों से ऊर्ध्व है, तो हो जाता सर्वकालिक ब्रह्मांडमय।
कौन वस्तु-चित्रण, समय-घटना, दृष्टांत चित्त-धारण करता, व स्व-शब्दों में कह देता
कहाँ से वह महावाक्य- जन्म जो परमवीर साहस दे, सर्वमान्य-सीमाऐं नर फाँदता।
सकल ब्रह्मांड का गमन-मनन का साहस कर लेता, चाहे बहु जीवन-काल समर्पित
गव्हर उदधि-तल जाकर मोती-रत्न लाने की भी योजना, प्रश्न कि विचार कहाँ उदित।
कौन वीर पुंस अति भोर जागृत हो, राष्ट्र-निर्माण हेतु समर्पित कुछ चिंतन करे महद
निज संसाधन पूर्ण प्रयोग कर, व्यर्थ तज सार में ही चित्त, विराट निवेशार्थ करे प्रयत्न।
किसकी बीहड़-मरुभू में भी विकास-परियोजना, सामान्य नर तो उधर मुख न करता
बड़े सोशल मंच ट्विटर-फेसबुक-लिंक्डइन, इंस्टाग्राम आदि के मूर्तरूपण की सोचता।
संक्षिप्त भी एक अतिशय से ही संभव, सागर को गागर में समाना भी है एक सुकला
अधिकांशतः तो है अंतः-उदित ही, फिर छाँटना, सर्वोत्तम-चिंतन तो बाद में हो जाता।
परम-संभव मनन आवश्यक, माना यह टेढ़े-मेढ़े, उबाऊ-थकाते पथों से होकर जाता
कभी महा-प्रेरणा संयोग तो विरला भी है सुलभ, निज-उपलब्धियों पर चकित होगा।
इस भोर का श्रेयष प्रयोग संभव माना विपुल प्रेरणा अदर्शित, पर है आत्मान्वेषण संग
चलो कुछ मनन प्रारंभ करते हैं, मनुज-प्रकृति का क्या संभव बड़ा सान्निध्य व चित्रण।
जीवन में सब तो एक भाँति या दिशा प्रगति न करते, सब अपने भिन्न आयाम हैं ढूँढ़ते
कहने-सुनने का प्रश्न ही न, सब स्वार्थ विचारते, किंतु सत्य में जागृत कुछ अल्प ही हैं।
यहाँ जगत में किनसे बड़ी अपेक्षा की जा सकती, क्या वे सुख-दुःख में हैं हमारे संग
हाँ कुछ पुरुषों को वाचालता की आदत पड़ जाती है, उससे तो काम न चलता पर।
हमें सुप्रशिक्षित- संयम, उत्साह चाहिए, सकारात्मकता संग नव-विकास प्रस्तुत करें
सत्य जीवन-उद्देश्य है वृहद जनमन-आंदोलन करना भी, वे सकलार्थ सर्वोत्तम सोचें।
यहाँ शिक्षा-प्रशिक्षण, ज्ञानदान-प्रेरणा अति सार-शब्द हैं, अधिकांश सुप्त को जगा दे
उन्हें वर्तमान लघुवृत्त से निकास सोचना ही होगा, एक वास्तुकार सा होए सुचित्रण।
निस्संदेह उस नर से मित्रता अनिवार्य, सुप्त जीवनों में खुली नेत्रों से बड़े स्वप्न जगाए
अग्रचरण-आदि का साहस-सामर्थ्य दे, मनुज दिशा तय अपने से और बड़े की करे।
इस जग में सब तरह की राजनीति, लोग परस्पर मार रहें, राष्ट-संप्रभुता पर आक्रमण
निकटस्थ नहीं पसंद, एक अनावश्यक तनाव पाले रखते, जबकि सहयोग भी संभव।
मानता कि सब बाह्य-विकास ही नहीं सत्योत्थान, पूर्ण स्वास्थ्य हो तन-मन-धन सर्वस्व
अतः सर्वांग सँवारना आत्म-जिम्मेवारी, पर सीमाऐं निज से आगे हों मानवतार्थ सकल।
मनुष्य के अंतः से सर्वोत्तम उदय-युक्तियाँ अन्वेषण चाहूँ, वहीं से शायद कुछ हो सुपथ
बंद कपाट तो खुलने ही चाहिए, एक स्वच्छ पवन-झोंका आकर विभोर कर दे समस्त।
पर प्रश्न है वह क्षण कब आएगा, कमसकम अद्यतन-स्थिति तक के हम होंगे सर्वोत्तम
सतत सुधार रहे प्रक्रियारत, लोहा गरम, जब उपयुक्त चोट तो यकायक प्रस्तुति श्रेष्ठ।
क्या कुछ दृढ़ मनन-चिंतन-विचार इस क्षुद्र जीव में भी, स्वयं-विषयों में कितना गंभीर
क्या स्वार्थ संभावना आज-अभी चिन्हित है करेगा, उपलब्ध ऊर्जा संग बढ़ाएगा अग्र।
प्रारब्ध सत्यमेव तो व्यर्थ न रखना चाहे, प्रयास कराती, चाहे दिशा-पवित्रता न हो ज्ञान
तथापि बृहदार्थ समर्पित होना, आज न तो कल समस्त संचरण से होना है आत्मसात।
यहाँ सचेतता अत्यावश्यक, मन तो बनाओ, एक गंतव्य-सूची बनाकर प्रयोग की सोचो
अनेक उपस्थित विस्मय प्रतीक्षा में हैं, सकारात्मक-विनम्रभाव से विद्यार्थी सी चेष्टा हो।
पवन कुमार,
(मेरी डायरी ४ नवंबर, २०२२ समय ४:१२ बजे ब्रह्म-मुहूर्त प्रातः से)
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