दिवस-तैयारी
चलो आओ, हम इन भोर के कुछ सुपलों का सत्संग ले लें
आज अपनी दिवस यात्रा से पूर्व तैयारी का ही सबक ले लें।
अरुणोदय तो कुछ समय बाद ही, पूर्व दिशा से होगा दर्शित
अभी उषाकाल में चंद्र कटार जैसा, सर के ऊपर रहा दिख।
सितारें तो शनै-२ एक-२ करके, नभ से ओझल से हो रहे हैं
भानु का प्रकाश जैसे सबको, अपने आगोश में ही लेगा ले।
निशा में शशांक माना हर रोज नहीं, रात्रि का ईश है तो भी
चांदी सी अनुपम चाँदनी बिखेरता, जी स्वयं में है अमूल्य ही।
बहुत नर, जीव-जंतु हेतु रात्रि बनती गतिमय व जीवन-स्पंदन
जीवन-विकास में सहायक, प्राकृतिक उपहार है देता अनेक।
सूर्य तो हमारा नक्षत्र है, व हम जीवित इसकी कांति-ऊष्मा से
सारे विकास-चक्र की यह धूरी, और पृथ्वी के लिए वरदान है।
दिवस-स्वामी तो है ही, चन्द्रमा भी प्रकाश से चमकता इसके
अनंत उपकार हैं इसके हमारे ऊपर, जो हम द्वारा अदेय हैं।
अनेक प्राकृतिक उपहारों से ही, हम अब तक विकसित हुए
निश्चतेव निज अग्रजों का ही संग, जीवन को समृद्ध किए हैं।
माना एक आदान-प्रदान से भी, हमारा पथ तो सुगम बनता
पर महानर दान में श्रद्धा रखते, क्योंकि उनका भंडार भरा।
सत्यमेव हमारा कर्त्तव्य है, हम भी बनें हृदय-स्वामी विशाल
एक-दूजे हेतु जितना संभव, पूरे यत्न से करें जगत-कल्याण।
बनाए सब लोगों को पूर्ण सक्षम हम, ताकि वसुधा-क्षमता बढ़े
तत्पर रहें अपने कर्त्तव्यों हेतु, व निर्वाह में कोई प्रमाद न रखे।
आओ हम सब प्रत्येक समक्ष क्षण का भरपूर उपयोग कर लें
जितना अधिकतम संभव, उसमे कोई कसर नहीं बाकी रखें।
पवन कुमार,
१० सितंबर, २०२३ रविवार, समय २३:१५ रात्रि
(मेरी डायरी १७ नवंबर, २०१४ सोमवार, समय ६:१५ बजे प्रातः)