चेतन-अवचेतन समन्वय
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हाँ जब विपत्ति में तो सर्वोत्तम उपाय का अन्वेषण-यत्न करोगे, कुछ बुद्धिमता उत्पन्न होगी
नर बीच में संतुष्ट भी जब बहु विषय ध्यानाकर्षण-हस्तक्षेप चाहते, जो उसकी जिम्मेवारी।
एक दृष्टांत कि एक युवक दार्शनिक सुकरात के पास प्रज्ञा-लाभार्थ पूछने हेतु गया उपाय
कहते हैं सुकरात उसे सर-तीर ले गया, उसकी मूर्धा जल में डुबा दी, उखड़ने लगी साँस।
सुकरात ग्रीवा को मुक्त न कर रहें, युवा हाथ-पैर मार रहा, साँस रोक रहा पर है एक सीमा
अंततः छोड़ा, सहज हो जवान के प्रश्न पर उत्तर कि विपत्ति-व्यग्रता हल खोज से जन्मेगी धी।
हम अनेक व्यवधानों में पाशित होते, प्रायः कुवृत्तियाँ स्वामिनी बन जाती, व करती विव्हल
हम कष्ट में पर हल नहीं खोज पा रहें, या कुवृत्ति-प्रभाव मनोबल से होने लगता प्रबलतर।
स्वयं को मात्र असहाय मानने लगते, एक सोच बनती कि निर्बल हैं, न निकासी इस जाल से
एक योग्य-चिंतक को चेतन-अवचेतन मन के सामंजस्य-समन्वयन का चाहिए प्रयास करना
आजकल Joseph D. Murphy की पोथी 'The Power of Your Subconscious Mind' पढ़ रहा।
लेखक अवचेतन मन-तहों की यात्रा कराता, कहे कि ढंग से मांगो तो सही, जरूर ही मिलेगा
वह जिन्न सा सदैव किसी आदेश-प्रतीक्षा में, यह निज पर निर्भर इससे काम ले पाते कितना।
किञ्चित अवचेतन वाहक है चेतन मन द्वारा निर्मित मंसूबें पूर्ण करने का, व वे परस्पर-पूरक
हम सहयात्री सुदृढ़-सुहृद ही चाहते हैं, दुःख-सुख में सांझी, जब कष्ट में तो दिलासा दे एक।
मन निश्चितेव व्यस्क-निर्मल, सर्वहितैषी, आगे-पीछे व ऊँच-नीच समझने वाला चाहिए होना
निज अपदशा के परिष्कार में हो समर्थ, विचार-सक्षम, सुजन सम समेकित व्यवहार वाला।
सर्व विश्व-निधि अंतर्मन ही, बस अचिन्हित होती, उकेरने व खनन-उपाय शक्ति की न्यूनता
प्रश्न कि कैसे उसको चुनौती, निर्मल मन ही मित्र, कई दुर्धर आयाम-स्थितियों निर्गम चाहिए।
यावत संभव निज मृदुलतम छवि-कल्पना व उस हेतु प्रयत्न न है, बहु सफलता नहीं अपेक्षित
आओ-निकलो, युक्ति-बल योजन करो, सक्षमों से यथेष्ट सहायता लें महत्तम लाभ सुनिश्चित।
आज दिवस एक पुरातन-निरंतरता में सूर्य मानिंद ही नवोदय है, और मुझे दैदीप्यमान होना
उस सम ही सदैव एक काल पृथक भूभागों पर पूर्ण शक्ति लगा, अनुरूप प्रभावित करता।
अतः आगे बढ़कर स्व सकल सामर्थ्य-बुद्धि, इस विश्व-निखरण के सुयज्ञ में देनी चाहिए लगा
अनेकों को ज्ञान-व्यवसाय दान, उन्हें सुप्रयास-आवश्यकता है, पुनः मन प्रबल करें एकदा।
पवन कुमार,
७ जनवरी, २०२४, दिन रविवार, समय ७:२७ बजे सायं काल
(मेरी ब्रह्मपुर, ओडिशा, डायरी दि० २२ दिसंबर, २०२३ दिन शुक्रवार, समय ९:३६ प्रातः काल)
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