वृक्ष-वरदान
निहारो तरु, नित जीवंतता-अहसास वृद्धि करता, प्रफुल्लित रहता
अल्प लेकर भी बहुत उत्पाद करता, जन्म से लेकर उपयोगी सदा।
विटप अंतः में जीवन रखता, समय-परिस्थिति मिलने पर प्रफुल्लित
मृदा-खनिज पोषण, जल भूमि से, आकाश-वायु दुलारती है आकर।
भू-माता की छाती-खूंटे से ही बँधा रहता, न इतराता बड़ा भी होकर
मूल अति प्रगाढ़, दुम-जीवन है निर्भर, अतः स्तुत्य ही भरण-पोषण।
प्राय: तो आनंदमय ही वह रहता, इस जगत के सदा आता है काम
भोजन-औषधि, स्वच्छ-वायु, छाया, भवन-लकड़ी या भी ज्लावनार्थ।
पल्लव-पुष्प, फल, छाल, विविध वर्ण, सुंदरता बहु रूपों में है दर्शित
निर्मल, स्वच्छ, अनिल के स्नेह-झोंकें, करते हैं प्रत्येक को अतिमुग्ध।
अनेक जीवन उनपर पनपते, गिरगिट-सर्प व अन्य खग-गिलहरी
खग नीड़ बना लेते बड़ी सहजता से, आसपास से लेकर सामग्री।
समस्त जीवन उनके निकट है, उनसे ही हो जाता भोजन उपलब्ध
वहीं खेलते, लड़ते, दुलारते, जन्मते और अंत में प्राण भी देते निज।
अपने आप में एक पूर्ण जीवन-शास्त्र, अनेक जीवनों को सहारा देते
निज आहार बनाने में पूर्ण-स्वावलंबी हैं, परजीवियों हेतु तो अमृत।
भूमि-क्षरण रोके, जल-संरक्षण करते हैं, वसुंधरा को गतिमान रखते
जीवन-शास्त्र के तो अभिन्न अंग हैं, जीवन तो असंभव बिना इनके।
स्वावलम्बी, नित्य प्रेरक हैं, प्रत्येक स्थिति में अपने को सहेज रखते
असंख्य कीट-पतंगे इनकी शरण में, कटकर भी उपयोगी बने रहते।
अनंत रूप लेते हैं रचनाओं में, साजो-सामान व खिड़कियाँ-दरवाजें
कहीं धरन-बीम, स्तम्भ, छतें भी, तो पूर्ण भवन भी बनते लकड़ी से।
असंख्य रूप-विकसित, समुद्र-नदियों के जल से विस्तारित भूमि पर
सुंदर-सजीव कलाकृतियाँ बनती मनोहर, पादप-विज्ञान बहु समृद्ध।
सूक्ष्म से ले बड़े रूपों में विकसित है, सुकृति हरित-वर्ण नेत्रों हेतु शुभ
हमारा श्वसन-तंत्र स्वस्थ इनके सान्निध्य में हैं, प्रदूषण को करते अल्प।
ये साक्षात नीलकंठ- शिव स्वरूप, दूषित वायु-गरल पीकर अमृत देते
बहु प्रकृति-मार बड़ी सहजता से सह लेते हैं, कदापि नहीं क्रोध करते।
काटनहारे को भी छाया, फल-फूल देते हैं, सर्वहित पुनीत जीवन लक्ष्य
इनका हर अवयव उपयोगी है, जीवन-सहयोगी, सबको सदा उपलब्ध।
प्रकाश-संश्लेषण से कार्बन डाई-आक्साइड को ऑक्सीजन में बदलते
जल -लवण वसुधा से लेते हैं, भोजन-फल, पल्लव-पुष्प, शाखा बनाते।
प्रतिवर्ष एक परत ऊपर चढ़ा लेते हैं, गिनें तो ज्ञात हो सकती अवस्था
आजकल कार्बन डेटिंग विधि ईजाद है, वृक्ष-आयु का पता लग सकता।
गल-जल-सड़ खाद, गैस-तेल बनाते हैं, जीवन-चक्र में सहायतारत नित
शुष्क-बंजर भू को सुंदर हरित बनाते, इनकी बहुलता समृद्धि प्रतीक।
किञ्चित अल्प लेकर ही अति महद देते, यह एक बड़ा है उत्पाद-केन्द्र
मानव बहुत कुछ इनसे सीख सकता है, बस खोलो चक्षु व बनो शिष्य।
समग्रता अपने ढंग से निर्मित की है, विभिन्न परिस्थितियों में भी सहज
दूजों की प्रसन्नता में तो हमेशा मुदित हैं, हर दुःख में वे रहते बड़ा संग।
शक्तिशाली इसकी शाखाऐं हैं, एक दण्ड कर में हो तो बनता सहायक
बहु कलाकृतियाँ, कंदुक-खिलौने, गृह-उपयोग सामग्री हैं प्रतिपादित।
प्रत्येक वृक्ष यहाँ धरा पर वरदान है, जीवनार्थ इनका संरक्षण आवश्यक
पादप-गण सदा सुरुचिर परिवेश देते हैं, हमारा कर्त्तव्य इनका बचाव।
दूरस्थ मेघों को आकर्षित करते हैं, पावस-जल से कराते वसुधा-सिंचित
सदा शीतलता है इनकी छाँव में, विश्रांत पाते अनेक थके-मांद पथिक।
तुम सूक्ष्मता से निहारो कैसे जीवन है महकता, शिक्षा लो उपयुक्तता की
बहु कष्टों में भी ये कैसे अविचलित रह सकते हैं, सदा बनते समवृत्ति ही।
चराचरों के संग भी मुस्कुराते-हर्षाते, कर्त्तव्य एक बृहद पावन-उद्देश्यार्थ
जीवन-अमूल्य है समझो-सीखो ध्यान से, जब नहीं रहता कितना अलाभ।
इन वृक्ष-मुनियों सम जीवन में धीर-गंभीर रहकर, उचित हित में हो मनन
तुम भी जीवन इन वृक्षों सा बना लो, उपयोगी बन करो विश्व में सुनिर्वहन।
पवन कुमार,
१५ जुलाई, २०२४ सोमवार, समय १०:५५ बजे रात्रि
(मेरी महेंद्रगढ़ डायरी दि० ७ अगस्त, २०१५, शुक्रवार, समय ८:५० बजे सुबह से)