इनायत
भले ही होंठों पर शब्द न आते, दिल का हाल तो नैन-भाषा से उजागर।
यह क्या अफसाना सामने तो न, बस ख्याल उसका ही कर देता विचलित
पता नहीं यह हाल एक ही तरफ का, या दूसरा भी उतना ही है विव्हलित।
अब किसको कहूँ इस मन की उत्पलावता, बस रह-रह कर यूँ टीस उठती
मुख से तो न कह सकता, शब्द लड़खड़ाते, शायद बात मन में रह जाती।
अब दूर ही कहाँ हो, सदा मन में बसते, एक बड़े भाग पर कब्जा कर रखा
परंतु कैसे कब उसकी भरपाई हो सकेगी, मैंने बदले में तो कुछ न हैं दिया।
क्या कभी समक्ष बैठकर मीठी गुफ्तगू भी होगी, या दिल तड़पते रहेंगे यूँ ही
तेरा तो बुलावा था पर खुद ही न गया, फिर क्यों शिकायत यूँ सुबकने की।
यह क्या रिश्ता मनों के तार जुड़ने का, बिन कहे ही कितनी हो जाती बात
इतनी बड़ी दुनिया पर मन कुछ जगह ही ठहरता, बना लिया छोटा नीड़।
जीवन लंबा बहुत दिन देखने पड़ते, पर हृदय की क्या कहें, समझता नहीं
रिश्ते पंछियों जैसे होते हैं, जिंदगी भर साथ रहते प्यार से पकड़ने पर ही।
सुनो तेरे होठों से निकले हर उस शब्द को, सुनने के लिए हमेशा तड़पता
जो अंतः गहराई से निकले और मेरी गीत-कविताओं की बन जाऐं आत्मा।
सोचूँ एक दिन खुद को तितर बितर कर दूँ, आओ बीनो व कर लो इकट्ठा
सँवारा जाऊँ तेरे हाथों से, ख़्वाहिश में कभी बिखर जाने को दिल करता।
दर्द तो है पर इतना भी नहीं, कि कलम स्वतः चलकर कह दे हाल दिल का
शायद शब्द न मिल रहें या कहने से डरता, कई पहरें, फर्ज की हैं बेड़ियाँ।
चाहकर भी कुछ नहीं दे सका, किंचित तुम आशा करते रहे बेवफा सा रहा
हाँ कभी कहकर ही सुकून मिलता, पर तेरी आँखें देखने को दिल मचलता।
उम्र बढ़ने से भी दिल कहाँ मानता, सब तरह के परवान इसमें फिर हैं चढ़ते
सामने रूबरू हो तो सिलसिला चल निकले, इनायत से ही कुछ मरहम लगे।
पवन कुमार,
२ जुलाई, २०२४ मंगलवार, समय ११.०४ बजे रात्रि
(मेरी महेंद्रगढ़ डायरी दि० २२ मार्च, २०१८, वीरवार, समय ८:५१ बजे प्रातः से )
B.S. Arya : वाह...दृष्टि,शरीर,भाव,कर्म, कला और आत्मिक आनंद की समस्त अभिव्यक्तियां 'डाई आखर' में समाहित हैं...कवि की श्रेष्ठतम रचना,कलाकार का बेहतरीन अभिनय और प्रकृति का सर्वोच्च अलंकरण अगर कुछ है तो बस जगत में इस मार्ग से स्वयं को परिभाषित करना...बेहतरीन...!
ReplyDeleteMithilesh Bansal : अतुलनीय , प्रेम की अभिव्यक्ति, और मन के पशोपेश का सुंदर समेंवय...
ReplyDeleteBharat Singh : Very charming
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