एक गहरे भंवर में फँसा,
निकलूँ कैसे जँजाल से इस
चक्रव्यूह तो पूर्व-रचित,
अर्जुन की शक्ति है वाँछित॥
अभिमन्यु निज अल्प ज्ञान
कारण तोड़ उसे न है पाता
दाँव-पेंच शिक्षा दुर्धर,
वरन असंभव है बहु-सफलता।
मन-सुशिक्षा, तन की वीरता,
नर को बढ़ाए आगे ही
बाधा आती है हटने हेतु ही, हतोत्साह न विषय कोई॥
मैं सार्वभौमिक प्रकृति का
स्वामी, सर्वत्र उचित घड़ा
सीखें हैं बहु-आयाम, अनुभव
है जय व पराजय का।
स्व को गुरु तो न कह सकता,
ज्ञान अन्य ही सिखाते
संसार है एक विशाल चक्र, सब
परस्पर हैं टकराते॥
मौलिक हाड़-माँस का पुतला,
लिए कुछ ऊर्जा-चेष्टा
हर जीवन-कला का पारखी,
मन-धारण कुछ विद्वता।
नहीं बिताया समय यूँ मैंने,
बस सोने, खाने-पीने में ही
अपितु स्वयं संग प्रश्रम है किया, वृद्धि अपने
स्तर की॥
स्वयं-सिद्धि ही है
मानव-लक्ष्य, जीवन-वृद्धि में प्रेरक
जितना भी मिला समय, उचित
प्रयोग ही अपेक्षित।
किसी ऋतु अंदर जा, उसकी
महीनता करें अनुभव
तभी तो दूसरी अन्य से भिन्न,
मन-बुद्धि करे समृद्ध॥
लुप्त इस स्व-चिंतन में,
निज-भँवर में फँस सा गया
गिर्द आवरण-लेश लपेटा,
जी-जँजाल बन ही गया।
सकल-विधि ज्ञान पर भी,
निवारण इसका है दुष्कर
तथापि साहस धारता, कारवाँ
चलाने को प्रतिबद्ध॥
मैं जैसे एक औघड़ सा हूँ, होश
नहीं कृत्य-अकृत्य
स्व इस लघु विश्व में
विलुप्त हूँ, कुछ सम ही मृत्य।
भूल जाते हैं बिछुड़ने वालों
को, सब स्वयमेव व्यस्त
मन-साम्राज्य, मस्त रहो यावत
दूजा न करे है तंग॥
प्रश्न, पक्ष-कथन, आंदोलन,
कुरेदना व दहाड़ना भी
आरोप-डाँट, परिवेश प्रबंधन,
सज्जनों की प्रेरणा ही।
सब कूप-मंडूकता
निर्गम-यंत्र, यदि कर सको ग्रहण
झझकोर क्षीण-पक्ष, निरोध -व्याधि,
कुछ दे राहत॥
कैसा यह नीरस गीत, अपनी ही
टीसों से सुबकाता
कैसी बाँसुरी-धुन, अचेतना
राग सुनाती निर्गम का।
तथापि नेत्र अर्ध-बंद, ना
जाने कहाँ हुआ है विलुप्त
ओझा-सयाना सा देवी-ध्यान
में, निज न है अवगत॥
कैसी मेरी मन-चेष्टा यह, और
क्या कर्त्तव्य वाँछित
क्यों मुझे स्व-ज्ञान की
सूई, न आ रही घूमती नज़र।
सब नरों में मस्तिष्क हैं,
अनंत संभावना अंतर्निहित
ज्ञानमूल सर्व सुख-दायक,
प्रयत्न सदा कृत सुफल॥
क्या जीवन-मूल, या मात्र
प्रमत्त बहकी बातें करना
या है पूर्ण चेतना-रत,
कर्म-योग सिद्धांत संचालना।
ज्ञान-अंशु कैसे पहुँचे इस
अकिंचन व कौन है स्रोत
कोटर से बाहर निकाल, प्रकाश
से करना मिलन॥
इस अध्याय के कुछ वाक्य पढ़ा
दे, स्व से मिला दे
कुछ महानर-सम्पर्क करा,
तौर-तरीके समझा दे।
खोया सुधबुध पूर्णतया, कोई
आकर गुरु से मिलवा
देवी-प्रकाष्ठा दीपावली में,
अंतर्कक्ष प्रकाश दे करा॥
No comments:
Post a Comment