सुवीर
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कुछ लघु ही किन्तु अनुपम, अल्प-शब्दों में आह्वानित
भाव अति सूक्ष्म, अर्थ गूढ़ व पावन सुंदर का एकत्रण।
पूर्ण मन का स्वामी और त्याग त्यज्य को हुआ सजग
कुछ बुद्ध-दर्शन ग्रहण-प्रेरणित, कुछ अवस्था सुमधुर।
लुप्त हुआ स्वान्वेषण में, पवित्र-पुष्कर में किया स्नान
मिटें जहाँ सब व्याधियाँ, उस समाधि से साक्षात्कार।
कुछ उच्च-अवस्था ज्ञान, इस निर्जीवी को मिला ध्यान
न करेगा व्यर्थ स्वयं को, निज-स्थिति को प्राप्त मान।
आगामी प्रतिक्षण को वह, सदुपयोग में अग्र बिताएगा
कितना बेहतर संभव इससे, इसकी क्षमता बताएगा।
मनन विमल व चिंतन-व्यापक, निरंजन-आशुतोष सम
न कोई चाह मोह-बंधन की, सिद्धार्थ सम स्वयं-साधन।
संग लेगा विश्रुत-मनीषियों का, जिन्होंने निज को समझा
नहीं बनेगा भार वह धरा पर, कुछ सार्थक कर दिखाना।
नहीं रुकेगा कठिन-अवरोधों से, दिशा उसने बना ली
पूर्ण-सत्य पाने के उद्देश्य की, उसने चित्त में है ठानी।
बनेगा कृष्ण सम योगी, जिसको परम-दर्शन का ज्ञान
न करेगा प्रगल्भ मन-तन में, क्योंकि अंतर का प्रज्ञान ।
चल दिया राह पर वह लघु नर, उन्नत उसका मस्तक
अन्वेषण उसकी चित्त-प्रवृत्ति, उद्देश्य उसका पवित्र।
वह समझेगा इस तंत्र को और कुछ करने को उद्यत
जीवन-ऋण चुकाने का समय, और न गँवाना अब।
सबल मन का प्रेरक, जरूरी-वाँछित पर देगा ध्यान
कुछ भी करने से पहले वह, करेगा उस पर मनन।
बना ली उसने प्रवृत्ति ऐसी, जिससे शुभ ही निष्पादित
सुवीर चला पथ अविरल सतत, अपने पूर्व से विलग।
और मंगलकामना उसके लिए।
पवन कुमार,
१० फरवरी, २०१८ समय ११:०७ बजे रात्रि
(मेरी डायरी दि० १४ जून, २०१४ समय १२:२५ दोपहर से )
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