निकटस्थ - हित
-------------------
सभी निज संगठनों से जुड़े रहते, शांत रह समाज हेतु करते काम
घर-कार्यालय माना प्रधान, पर यहीं नागरिक-दायित्व रूकता न।
जिस परिवेश में हम जन्म लेते, उसके प्रति लगाव एक प्रवृत्ति सहज
माना संपूर्ण ब्रह्मण्ड एक कुटुंब ही, निकटस्थों को समझते अधिक।
हर परिवेश सदस्यों का श्रम-श्वेद माँगता, सुप्रबंधन तो सर्वत्र वाँछित
जब अपने निर्धन-दुर्बल-दुःखी तो, निस्संदेह अति त्याग आवश्यक।
लोगों का अपनों से कुछ विशेष स्नेह ही, जितना हो सके आगे दो बढ़ा
वृहद-जग की न्यूनतम अपेक्षाऐं भूलते, बंधुओं में ही खोए चाहते रहना।
घर-संबंधी व कार्यालय को एक सा, अपनों को चाहिए अधिकतम लाभ
अन्य भाग्य कोसते, वह उच्च पदासीन है अपनों को ही फायदा दे रहा।
चलो कुछ भाई-भतीजावाद भी, अधिक ही दया-दृष्टि क्षेत्र-जाति-धर्म पर
पर सार्वजनिक नर को न लोभ उचित, संविधान प्रदत्त कर्त्तव्य यह एक।
निजों का ध्यान भी न अति बुरा, स्वास्थ्य-शिक्षा-विकास हेतु कमसकम
यदि सक्षम तो स्वयं पथ ढूँढ़ लेंगे, तेरी भूमिका मुख्यतया मार्गदर्शक।
जीवन का सत्य-लक्ष्य अधिकतमों में सकारात्मक परिवर्तन करने का
लोग पढ़-लिखकर सुयोग्य बनें तो अपनी जिम्मेवारी खुद सकेंगे उठा।
कब तक रहेंगे वे वैसाखियों पर, खड़ा ही होना सिखला दो सहारे-निज
जन-स्थापित कई संगठन हैं पर-सहायतार्थ, अधिकतम कर्त्तव्य-पालन।
माना घर-जीविकार्थ पूर्वेव अपेक्षित, तथापि कुछ ऊर्जा वाँछित अन्यार्थ
लघु उपकार से भी महद-हित, डूबते को तिनके का सहारा है वरदान।
जितना संभव हो उतना कर दो, तुम भी अनेक सहायताओं से ही वर्धित
कुछ समन्वय कर चलो जहाँ संभव, अन्यों संग अपने भी प्रगति-पथ।
हर स्तर पर सदा न्यूनाधिक राजनीति, तुमको काम करना चाहिए आना
कमसकम नियमानुसार लाभ भी दोगे तो अति जन-कल्याण हो सकता।
मात्र रुदन-शिकायतों से न हल, सकारात्मक कर्म-परिणाम से ही श्लाघा
एक समय मिला महादान हेतु, थोड़ा सोचो व सहायतार्थ चरण दो बढ़ा।
पवन कुमार,
२० मई, २०१८ समय 00:0७ मध्य रात्रि
(मेरी महेंद्रगढ़ डायरी १४ जून, २०१७ समय ९:४६ प्रातः से )
No comments:
Post a Comment