सम्मिलित चेतना
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इस प्रकृति के बहु-आयाम, अति सघन-विस्तृत, प्रतिकण विचित्र रूप
उसका सबसे गहन-संबंध, मनीषी का सर्व-ब्रह्मांड एकत्रण हेतु मनन।
मानव भी बहु-संख्यक, अन्य जीव सम प्रकृति-हिस्सा, तदानुक्रम उत्पन्न
लाखों वर्षों संग रह रहा, एक समन्वय सा बनाया तभी तो रहा जीवित।
लाखों वर्षों संग रह रहा, एक समन्वय सा बनाया तभी तो रहा जीवित।
औरों का भी एक प्राण-दर्शन, अनावश्यक न किसी पर करते आक्रमण
विकास-सिद्धांत के चयन की माने तो संघर्ष भी, नतीजा विफल-सफल।
पुरा-काल से भिन्न-रूपों से गमन, कुछ लक्ष वर्ष पूर्व से वर्तमान स्वरूप
यदि 'सम्मिलित चेतना' सी वस्तु सृष्टि में, मानव को पूर्वजों से ही प्राप्त।
हममें सर्व जीव-भाव निहित, किंचित कुछ अनावश्यक, प्रयोग विस्मृत
हर प्राणी निज का ही हिस्सा है, यहाँ तक निर्जीव में भी हमारे अवयव।
मानव के क्या दृश्यमान, एक बाह्य-जगत जो नेत्र-गोचर, अनुभव संभव
एक भाग अंतः-चेतना का, जो मन-अंतः ही है चिन्तन - प्रतिक्रिया कृत।
स्थूल दृष्टि-बुद्धि से जो समझ आए, कह देते, रहस्य-भेदन न पूर्ण-समर्थ
अनेक निगूढ़ मानव-समझ परे आज भी, प्रयास से भी स्पष्टता होती न।
यावत हम अशिक्षित-अपरिचित हैं, हमने पूछा नहीं किसी ने बताया न
सारे अक्षर भैंस बराबर दिखते हैं, पढ़ना सीख लें तो कुछ निकले अर्थ।
जबसे नर का विज्ञान-संपर्क, हर तह में जा ध्यान से देखना किया प्रारंभ
अनेक वहम टूटे, मन भी विकसित व विकसित हुई जग-प्रक्रिया समझ।
वैज्ञानिकों-तकनीशियनों को बहु ज्ञान, सामान्य-बुद्धि में न प्रवेश सुलभ
परीक्षण-दर्शनार्थ कुछ यंत्र बना लिए, सूक्ष्म-दूर की वस्तु-दर्शन संभव।
कैसे एक वैज्ञानिक दृष्टि उत्पन्न हो, होना चाहिए एक खोजी-प्रयोगी मन
फिर प्रयोग-विफलता पर न हारना, कोई सा भी तीर तो सधेगा उचित।
अभ्यास व उचित-संपर्क महत्त्वपूर्ण, जो आजतक अज्ञात जानना संभव
अनेक रहस्यों का पर्दा उठा है, व अनेक दिशाओं से हो रहे लाभान्वित।
मन की विचक्षण-दृष्टि से साधनों के सहारे, गुह्य समझने का करो प्रयास
अपढ़-अबूझ-भ्रमित जीवन अति-निम्न, सदुपयोग से बनो विपुल-समृद्ध।
पवन कुमार,
२८ मई, २०१८ समय ००:४३ मध्य रात्रि
२८ मई, २०१८ समय ००:४३ मध्य रात्रि
(मेरी महेंद्रगढ़ डायरी दि० २३ जनवरी, २०१८ समय ९:३९ प्रातः से)
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