काव्य-उदयन
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क्या होंगे अग्रिम पल व गाथा जो इस कलम से फलित
मन तो शून्य है पर लेखनी लेकर आती है भाग्य निज।
कैसे निर्मित हो वह काव्य-इमारत, मन तो अभी अजान
मात्र कलम व कागज हाथ में, शेष सामग्री का है अभाव।
फिर कुछ यूहीं तो चलता जाता और भर जाते हैं कई पृष्ठ
निरुद्देश्य-भ्रमित जीव भूल-भुलैया सी नदी में खेता पोत।
बस एक विचार कहीं से स्फुटित, उसी के गिर्द दाँव-पेंच।
पर विषय रचना कैसे फूटती, क्या आती लेकर निज-दैव
कालजयी कई पद्य-गाथाऐं, पुनः-पुनः करता जग स्मरण।
क्या वे मनीषी भी सम-स्थिति में थे, चिंतन किया कुछ अग्र
उद्भवित शब्द स्वयमेव व एक-२ कर निर्मित अति-उत्तम।
यह शिशु-जन्म सा, अनेक संभावनाओं में से एक मूर्त-रूप
त्यों ही रचना-निर्माण होता, यद्यपि अनेक आयाम थे संभव।
तो क्या जन्म सब प्रत्यक्ष का, कितने को छोड़ अग्र-वर्धित
एक-२ विचार-बिंदु से ही सर्व-क्रांतियाँ, स्वयमेव रचित पथ।
फिर क्या हम मात्र हैं विचार-धारक, आकांक्षा शांत-स्वरूप
दिव्यता स्वतः स्फूर्त, बस उठो, करो तुम उकेरण-निश्चय।
सब कुछ डूब जाना इस चिंतन में, पार अपने से निकलना
दृष्टिकोण हो मात्र काव्यात्मकता-रस में, प्रयत्न करने का।
इंगित तो कुछ भी नहीं होता तो भी अपने को झझकोरना
इसी झंझावत के उपक्रम में, कुछ उचित ही रचित होगा।
अद्भुत दर्शन है भविष्य का, जो हमसे कुछ रचवाए जाता
हम शिल्पकार कुछ काल मात्र के, पर वह शाश्वत रहता।
उसने देखे हैं असंख्य प्रयोग सृष्टि में, मुस्कुराता रहता बस
जीव सोचता विद्वान-चतुर, पर सब सामग्री प्रकृत्ति-प्रदत्त।
स्वामी-प्रदत्त आटा-नमक, हम सोचते स्वयं को धनिक
हमारी अणु-सामग्री तथैव फलित, ऊपर है कदापि न।
तुम मात्र विचार-माध्यम उसके व वाँछित अस्त्र-शस्त्र
प्रेरित करता वह उठो-बैठो व करो एक रचना उत्तम।
मनुज सदैव भ्रमित, हमीं चतुर हैं जीवन-चक्र के इस।
अल्प-बल व अत्युद्दंडता, निज को समझे तीस-मार खाँ
व्यर्थ गर्व से जग न चलता, विवेक ही कुछ हल मिलता।
चिंतन है निज-मर्म ढूँढता, कोशिश कि कैसे हो प्रवेशित
बेचारा मारा-मारा फिरता, फिर सतत स्वयं से ही युद्ध।
उसकी सर्व-कृतियाँ निज-तार्किक जीत का ही परिणाम
श्लाघ्य तो है, क्यूँकि वही सत्य में देह में फूँकता प्राण।
न मनीषी-दर्शन व वह भी बस कुछ पलों का एकत्रण
सोचा, कहा, लिखा और हम समझते अति बुद्धिमान।
कितना ठीक, कहाँ तर्कसंगत, न वर्तमान में कुछ समझ
मात्र रुचि अनुरूप एक विचार-प्रवाह में, रहता व्यस्त।
उदयन कुछ शब्दों का, निर्मित करता है अद्भुत संसार
सर्व-संभावनाऐं निहित पलटने की, सक्षम परम-उद्धार।
जग-प्राणी स्वयमेव प्रवृत्त, अतः चिंतन कर निज विकास
काव्य-गाथा ग्रंथ यूँ ही निर्मित, एकचित्त हो करो प्रयास।
धन्यवाद और उत्तम प्रयास करो।
आज अवश्य कुछ सार्थक करो सकारात्मक भाव से।
पवन कुमार,
१० अगस्त, २०१९ समय ९:३४ सायं
(मेरी महेंद्रगढ़ डायरी दि० २ दिसंबर, २०१४ समय ९:११ बजे प्रातः से)
Pradeep Sharma: Dear u write n write but give ur thought in a book shape n made a cover page Pawan putr.
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