जीवन-समन्वय
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समन्वय अति-सुंदर शब्द, आज सुबह निज चक्षुओं से देखा
शुक-कपोत-कोतरी, कई नग में छत पर संग चुग रहे दाना।
देखता हूँ कि कोई विरोधाभास ही नहीं, सब अपने में हैं मस्त
एक जाति का पक्षी दूजे के पास से बिन विरोध के चला गुजर।
तुम खाओ, हमें भी लब्ध, कोई प्रतिस्पर्धा न, पर्याप्त है उपलब्ध
तुम यहाँ चुग हम वहाँ, निकट ही रहते, मित्रता चाहिए अटूट।
तुम यहाँ चुग हम वहाँ, निकट ही रहते, मित्रता चाहिए अटूट।
यदा-कदा पार्कों में ऐसे समन्वय का मधुरतर दिखता दृश्य
गिलहरी, काक-शुक-कपोत-चिड़िया-मैना, खाते एक स्थल।
परस्पर झगड़ भी पड़ते, फिर बैठ जाते अपने-२ स्थानों पर
पता है यहीं साथ गुजारा, विशाल प्रकृति में सब हेतु पर्याप्त।
ऋतु-संहार के ग्रीष्म जल-अभाव में, शेर-मृग नीर पीते संग
प्राणियों ने विकास-क्रम में सहकार से सीखा रहना निकट।
ऋतु-संहार के ग्रीष्म जल-अभाव में, शेर-मृग नीर पीते संग
प्राणियों ने विकास-क्रम में सहकार से सीखा रहना निकट।
कुछ प्रतिस्पर्धा सीमित संसाधन हेतु, तथापि करते सामंजस्य
कुछ सुस्ती व प्रकृति-कारणों से नष्ट, सहयोग से प्राण-सुलभ।
निकट विश्व में देखें, अनेक जाति-समूह विभिन्न भागों में रहते
बहु-विविधता संस्कृति-भोजन, ईशोपासना आदि आदतों में।
चाहे दूजे की प्रथाऐं न अतिभावन, पर अनावश्यक न विरोध
तुझमें कई दुर्गण स्वतः, फिर क्यों चाहिए हमें अति-रोचक।
कुछ सुस्ती व प्रकृति-कारणों से नष्ट, सहयोग से प्राण-सुलभ।
निकट विश्व में देखें, अनेक जाति-समूह विभिन्न भागों में रहते
बहु-विविधता संस्कृति-भोजन, ईशोपासना आदि आदतों में।
चाहे दूजे की प्रथाऐं न अतिभावन, पर अनावश्यक न विरोध
तुझमें कई दुर्गण स्वतः, फिर क्यों चाहिए हमें अति-रोचक।
प्राणी-चरित्र विविधता, कुछ हिंसक-माँसभक्षी, उससे ही गुजर
नर में पूर्व-प्रजातियों के वंशानुगत गुण, मस्तिष्क-तहों में सुप्त।
कभी पूर्व का हिंसक रूप भी मुखरित, प्रतिक्रिया अप्राकृतिक
पर विरासत तो चिपकी, शिक्षा से किंचित कुछ सभ्यता संभव।
जीवन-प्रक्रिया में मनुष्य ने कई अच्छी-बुरी आदतें ली अपना
जीवन-प्रक्रिया में मनुष्य ने कई अच्छी-बुरी आदतें ली अपना
कुछ का परिचय मधुर-शैली से, श्रेष्ठता-अनुशासन अपनाया।
सदा लड़ने से तो काम न चले, सहयोग से रहो सबको मिलेगा
पश्चग भी संग हों, एक मात्र ही सर्व-वैभव स्वामी न हो सकता।
पूर्व निम्न-स्तर नर भी श्रेयस-शैली से, उच्च स्तर प्राप्त लेता कर
वह प्रेरणामयी, अनुसरण से अन्यों का भी स्तर सुधार संभव।
मानव सामान्यतया एक कुटुंब ही है, मुखिया को सबकी चिंता
पौधे को सहारा जरूरी, एकबार गति तो ध्यान खुद रख लेगा।
लोग योग्य व स्वावलंबी हो, कल औरों को भी दें सकेंगे सहाय
सदा लड़ने से तो काम न चले, सहयोग से रहो सबको मिलेगा
पश्चग भी संग हों, एक मात्र ही सर्व-वैभव स्वामी न हो सकता।
पूर्व निम्न-स्तर नर भी श्रेयस-शैली से, उच्च स्तर प्राप्त लेता कर
वह प्रेरणामयी, अनुसरण से अन्यों का भी स्तर सुधार संभव।
मानव सामान्यतया एक कुटुंब ही है, मुखिया को सबकी चिंता
पौधे को सहारा जरूरी, एकबार गति तो ध्यान खुद रख लेगा।
लोग योग्य व स्वावलंबी हो, कल औरों को भी दें सकेंगे सहाय
अवदलित-समाज का समुचित विकास, प्रेरणा व सुव्यवहार।
हरेक की उन्नति से ही नर सफलता के नव-सोपान सकेगा छू
अतः समर्थ-कर्त्तव्य हो सर्व-हित, समन्वयता एक मृदुतर रूप।
अतः समर्थ-कर्त्तव्य हो सर्व-हित, समन्वयता एक मृदुतर रूप।
पवन कुमार,
१३ फरवरी, २०२१ शनिवार, समय २३:२८ रात्रि
(मेरी डायरी दि० ४ दिसंबर, २०१९ समय १०:०७ प्रातः से)
(मेरी डायरी दि० ४ दिसंबर, २०१९ समय १०:०७ प्रातः से)
Sir thanks for beautiful insight on Man Vs life
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