जीवन-कोष्टक
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एक वृहद दृश्यमान समक्ष हो, मन के बंद कपाट सके पूर्ण खुल
अनावश्यक बाधाओं से न ऊर्जा-क्षय, निपुणता अंततः प्राण-लक्ष्य।
व्यवसायी-मन में अनेक गुत्थी स्थित, एक-२ कर कुरेदती रहती सब
मन तो सदैव चलायमान, पर आवश्यक तो न सब बाधा हों विजित।
एक स्तर है, परेशान-चिड़चिड़ा, भीक या प्रसन्न-सकारात्मक, निडर
सब समाधान तो किसी को न, हाँ काल संग जीव धीमान ही अवश्य।
जिंदगी परियोजना, किसी कर्म को सिरे चढ़ाना एक उपलब्धि-कला
सुचारु रूप से समस्या-समाधान हो, वे आऐंगी ही वाँछित सुदृढ़ता।
कार्यसूची प्रतिदिन बने, प्राथमिकता भी सैट हो फिर हो कार्यान्वयन
पर स्वयं न संभव, नदी में गिरे हो, हाथ-पैर मारकर ही बचेंगे प्राण।
इस जीवन के कई कोष्टक हैं - कार्यालय, कुटुंब, कुछ मित्र-स्वजन
इन्हीं में निज विचरे, कभी कुछ बात, लघु बाधा या विसंगति महद।
मेरी विरक्ति दोराहों में विभक्त रहती, हर विषय लेता विराट समय
क्षमतानुसार ही कार्य मिले, निबटान-सामर्थ्य, बनना चाहिए सक्षम।
लेखन-उद्देश्य मन के बंद गवाक्ष खोलना, जग के बड़े ढ़ोल भी देखूँ
अतः इतना सुदृढ़ होना चाहिए, सौंदर्य देखकर यह विभोर हो सकूँ।
समस्त अंग पुलकित होने चाहिए, सदा स्मित से हर हृदय हो विजय
हर जान को परखने की कला हो, आत्म-मुग्धता से तो होवे न कुछ।
चक्षुओं को दूर-दृष्टि दे मौला, प्रकृति-सौंदर्य दर्शन से हों पुलकित
प्राथमिकता जग का वृहत-हित चाहिए, उसी में लगे ऊर्जा सब।
समाज-परिवार-देश प्रति पुनीत कर्त्तव्य है, बगिया महके, समझे
सबके सुख में मैं भी, जग एक श्रेष्ठ जीवन-योग्य स्थल बन सके।
जो भी कार्य-क्षेत्र है उसमें पूर्ण झोंक खुश होकर कर्म करते रहे
सब सर्वत्र को हो सकारात्मकता से लाभ, ऐसी प्रक्रिया जारी रहे।
जीवन सार्थक बने, सोच-समझ इसकी राहें समझ बढ़ते रहो अग्र
अनेक आशा से मुख देखते, खरे उतरो सफलता मिलेगी अवश्य।
पवन कुमार,
५ जनवरी, २०२० समय ०१:०३ बजे म० रात्रि
( मेरी डायरी दि० ३० अक्टूबर, २०१८ समय ९:२० बजे प्रातः से)
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