एक गहन चिंतन वर्ग-उद्भव का, दमित भावना कुछ कर सी गई घर
समाज में अन्यों प्रति अविश्वास दर्शित, सत्य में वे परस्पर-सशंकित।
व्यक्तिगत स्तर पर नर विकास मननता, कुछ श्रम कर अग्र भी वर्धित
सामाजिक तो न एकसम वृद्धि, अनेक विकास के निचले पायदान पर।
माना अनेकों ने एक ही पीढ़ी में, निम्न से मध्य वर्ग मेंन बना लिया स्थल
जहाँ शासन की निर्बल प्रति सद्भावना, प्रगति वहाँ तनिक भी संदेह न।
देखिए प्रतिभा तो चहुँ ओर बिखरी, अब कैसे वर्धन हो एक मूर्धन्य प्रश्न
जब सक्षम ही निर्धन-असहाय बंधुओं को न सहेजेंगे, बाह्य आएगा कौन?
माना सर्व गृहों के खर्चें-आवश्यकताऐं, अन्यों हेतु न अति निकलता शेष
तथापि सदनीयत से कुछ प्रगति, हर के बढ़ने से आगे बढ़ जाएगा देश।
देखिए विकास-जरूरत तो प्रत्येक जन को, चाहे उसका कोई भी वर्ग
किंतु संसाधन-नौकरियाँ तो हैं सीमित, सबको चाहिए तो होगा संघर्ष।
सब काल तो प्रतियोगिता-युत, जो मेहनत-चतुराई न करते पीछे धकते
सर्व उर वश में तो कोई न सक्षम, जीवन संभव ही परस्पर विश्वास से।
कुछ लोग सशंकित कि भारत में नई सरकार आई, संविधान बदल देगी
अल्प-संख्यक, दलित-पिछड़े एक हासिए पर होंगे, मनुस्मृति लागू होगी।
नूतन विद्या होगी अप्रोत्साहित, बस पुरा धर्म-आधारित होगा हावी ज्ञान
प्राचीन अस्मिता नाम पर दबंग एकत्र हो, सारे संसाधन लेंगे निज कर।
आजकल पूर्व रिज़र्व बैंक गवर्नर रघुराम राजन की पुस्तक पढ़ रहा, नाम है
'The Third Pillar- How Markets & State Leave Community Behind'
'The Third Pillar- How Markets & State Leave Community Behind'
वे समुदायों की प्रगति चर्चा करते कि कैसे संघर्ष से निज दशा बदल ली।
शासन विवश हुए बात मानी गई, प्रतिनिधियों को सरकार में बने भागी
प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष निजों की सहायता, नियम-नीतियाँ हक़ में बनवा ली।
क्यूँ स्वार्थी बन मात्र अपनी ही बात हो, और भी जग में अनेक सहचर
जब सबकी वृद्धि में स्वयं स्वतः शामिल, पृथक-प्रतिनिधित्व क्यूँ फिर?
पर देखो कुछ समूह तो अन्यों से अधिक हस्तक्षेप शासन में बलात
निज अमुक प्रभावी व सुवेतन-परक पदासीन हों, करते हैं पूर्ण यत्न।
मनुस्मृति काल तो अर्वाचीन, जाति-असमता हावी उत्तम होते भी कुछ
जन्म आधार पर कुछ श्रेष्ठ बन गए, अन्य मध्यम या निम्न सोपान पर।
जन्म आधार पर कुछ श्रेष्ठ बन गए, अन्य मध्यम या निम्न सोपान पर।
अब कुछ तो व्यवस्था से लाभी, बिन कुछ किए कथित श्रेयस घोषित
अन्यों को हड़काने-जबराने का अधिकार, तो कैसे सर्व-कल्याणक?
अब धर्मादेश से समाज में नियम रोपित हुए, विरोधी होंगे दंड के भागी
जब सुघड़ दर्शन अवसर अप्राप्त, तो शनै मनुज की मद्धम शैली भी।
निज को हीन मानने लगे, कर्म-सिद्धांत द्वारा और अधिक प्रतिपादित
यहाँ कर्म अर्थ निज जातिगत धंधे, न कि परिश्रम से जीवन प्रगतिमुख।
हर काल में प्रखर-बुद्धि अवतरित, सक्षम व्यवस्था पर प्रश्न-चिन्हन में
आसानी से जर्जर अमानवीय व्यवस्था को साहस से ललकारने लगते।
अब कितने ऐसों के साथ होंगे और बात, जन भीरु व स्वार्थी अधिकतर
भय बड़ा शस्त्र शासन व दबंगों के कर, मंसूबे मनवाते रहते जबरन।
सत्य कि जब ये व्यवस्थाऐं बनी होंगी, तब देश-आबादी थी बड़ी कम
कुछ को छोड़ अधिकतर अपढ़, राजाओं को भी था ब्रह्म-कोप भय।
ज्ञान व शक्ति ने मिल स्वार्थ साधनार्थ, निर्धन-भोलों को बनाया आहार
अनेक नृप-युवराज बंदी, विद्रोही जाति-निकास, भेदभावपूर्ण आचार।
पर १८ वीं सदी की फ्रांसीसी क्रांति से, विरोध-तर्क दर्शन ही परिवर्तित
प्रजा अधिकार-नियतियों पर चर्चा शुरू, सुधार शनै आने लगें समक्ष।
कुछ उदारचित्त भी सब काल, जग की कर्कशता-अमानवता सुहाती न
गरीब-पीड़ितों का साथ चाहे स्वयं कष्ट, नर-हितैषी होना एक साहस।
करीब सारे विश्व शनै लोकतंत्रमय, शासक-भविष्य अब प्रजा-हस्त
प्रजा द्वारा नृप-चुनाव, उन्हें भी होना पड़ेगा लोगों प्रति सहिष्णु अब।
भारतवर्ष भी इसका अपवाद न, सरकार का पिछड़ों को आश्वासन
शासन-तंत्र सर्व हितार्थ करना ही होगा, प्रधानमंत्री पूर्व से ताकतवर।
माना शासन के नियम बदल रहे, प्रजा पूर्व से हुई अधिक जागरूक
शिक्षा-प्रसार हर वर्ग में हुआ, भला-बुरा समझने में मानव हैं सक्षम।
शासन-बल दाम-साम-दंड-भेद से, पर प्रजा भांपकर निष्ठा देती बदल
फिर सब नेता स्वार्थी, परछिद्रान्वेषण न चूकते, लोक को बताते सब।
निर्धनों पास संख्या-शक्ति पर न श्रेष्ठ संघ, हक में बोलने वाले भी कम
नेता दिखावा, लोगों में अच्छे मुखर न पनप रहें, सबको ले सके संग।
अतः निर्धन-हित कूर्म-गति सम ही, पर अति प्रगति साधन-संपन्न की
अतः निर्धन-हित कूर्म-गति सम ही, पर अति प्रगति साधन-संपन्न की
सुनिश्चितता सत्ता-भागीदारी से ही, समृद्ध तो निज-विकास तल्लीन।
पुरा-युग तो कदापि वापस न क्योंकि शिक्षाप्रसार-जागरूकता काफी है
फिर वर्तमान में विश्व पूर्व से अति-युजित, नर परस्पर हित साँझा करते।
लोकतंत्र जहाँ भी दमित, सहिष्णु पसंद न कर रहें, अंतर्राष्ट्रीय दबाव भी
प्रजा भावना अनुरूप कर्म शासक-विवशता, मूल नीति बदलना कठिन।
तथापि मन यदा-कदा सशंकित, कई देशों में आज भी सत्ता मध्य-युग सी
अफ्रीकी यमन-सोमालिया-मिश्र-सूडान, सीरिया-इराक आदि ग्रस्त हिंसा-अति।
उत्तरी कोरिया, म्यांमार यहॉँ तक कि रूस-चीन मानवाधिकार दोषी हनन
फिर शिक्षा से असत्य निश्चित मूल्य रोपित, जो शनै जिंदगी का होते अंश।
विश्व में दीर्घकाल सहिष्णु शासक-दल सत्ता में थे, दक्षिणपंथ शनै हावी अब
वे कुछ वर्गों की वास्तविक हितैषी, क्योंकि उनके पोषक पूंजीपति-दबंग।
निज प्रभुत्व वृद्धि ही मुख्य उद्देश्य, औरों को मात्र लॉलीपॉप दिखाया जाता
प्रजा-दुविधा में कहाँ जाऐं, दूसरी ओर भी न दिखे कोई अति-विश्वसनीयता।
पर समुदाय भविष्य प्रति जागरूकता चाहिए, ताकि प्रजा खुशहाल रहे
भारत में अब भी जाति-धर्म-स्थान, भाषा-गौरव नाम पर काफी विभेद है।
आए दिन हिंसा-अत्याचार-बलात्कार की घटनाऐं समक्ष आती ही रहती
व्यक्ति-विषमता के अतिरिक्त वर्गों में भी परस्पर अविश्वास है काफी।
मानव के अद्यतन यात्रा में अनेक पड़ाव, अच्छे-बुरे सब कालों से गुजरा
आदि मानव रूप में भी उसने हिंस्र भेड़िये, शेर-चीते, आदि से की रक्षा।
तब कोई न शंका होनी चाहिए कि हर वक्त से सफलतापूर्वक लेंगे जूझ
फिर बुद्धि सबके पास प्रयोग सीखों, मात्र नकारात्मकता न करेगी कर्म।
रघुराम राजन अनुसार उत्तम शिक्षा-भृत्ति प्राप्त सहिष्णु हो रहे अधिक
क्षुद्र भेदों पर न ध्यान, वंचित-अल्पसंख्यक-शरणार्थी भी अवसर प्राप्त।
जनसंख्या वृद्धि से नगर अधिक गति से स्थापित, निर्धन को पर्याप्त भृत्ति
जब आमदनी होने लगती, बच्चे पढ़ते, अग्रिम पीढ़ी भविष्य सुधरता ही।
कई आंदोलन संयुक्त राष्ट्र द्वारा, बुद्धिजीवी-स्वयंसेवी आवाज उठा रहें
लोगों को जागरूकता-प्रेरणा, शासन अवहेलना न करे विवश करते।
माना शासकों में हेंकड़ी होती, पर उनमें भी कुछ हितैषी-निर्मलचित्त
समता-व्यवहार संविधान-मूलमंत्र, यही दुआ कि रहे नित प्रतिपादित।
समुदाय-नेतृत्व पैदा करना होगा, संगठित हो करें वास्तविक हितकार्य
सरकारों से अनुनय वार्ता शिक्षा-सेहत-मार्ग,समृद्धि-सुरक्षा की हो बात।
बिन रोए तो माँ भी दूध न देती, अतः स्व अधिकारों की करते रहें बात
पर अंतः से हर को बली होना आवश्यक, जिससे स्वयं पर हो विश्वास।
सर्वप्रथम बाल-भविष्य सुधरना चाहिए, शिक्षा-स्वास्थ्य का पूर्ण ध्यान
सामाजिक कुरीतियाँ-अन्धविश्वास दूर, सहिष्णु साहित्य का सान्निध्य।
सदस्य एकजुट हो यदि निज पक्ष कह सकें तो ऐक्य-बल होगा दर्शित
शासनार्थ उदारों को ही भेजे, जो सत्य-जरूरत समझकर ही करें कर्म।
अतः निराशा की न कोई बात, विश्व-नागरिक हो किंचित जुड़कर रहो
निर्मल-मूल्यों में विश्वासियों की संख्या बढ़ाओ, लोगों के मन से जुड़ो।
जब उचित व्याख्या जग को देने लग जाओगे, तुम प्रति संवेदना बढ़ेगी
जब पड़ोसी तुम्हारी सुरक्षार्थ खड़ा होगा, कोई न दे सकेगा तुम्हें हानि।
मैं भी निज स्तर पर भी वंचितों को बली-सक्षम निर्माण का करूँ यत्न
उनकी भय-शंका निर्मूल हो, पर हेतु समस्त वातावरण करूँ संयत।
पवन कुमार,
२८ जनवरी, २०२० समय १२:२० म० रा०
(मेरी महेन्द्रगढ़ डायरी ७ जून, २०१९ समय ८:५० बजे प्रातः)
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