सोशल मीडिया
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महद सामग्री हरपल पैदा हो रही, अद्य सोशल मीडिया युग में तो भरमार
विपुल प्रिंट-फोटो-वीडियो फुटेज वायरल, हटाना ही समय लेता पर्याप्त।
सब डुगडुगी बजाने में व्यस्त, निज से न कुछ रचित कॉपी-पेस्ट में न हर्ज
सारा नहीं तो कुछ देख ही लेते, कदाचित सोचते और भी हों लाभान्वित।
नर सारा दिन व काफी रात्रि काल भी स्मार्ट फोन की गिरफ़्त में है रहता
सदा कुछ न कुछ देखता रहता, मस्तिष्क में कुछ कचरा पड़ा भी रहता।
पहले हम सारा दिन टीवी देखते थे, हजारों चैनल, सब अपनी-२ बघारते हैं
सर्व जग-बोझ अदने मनुज-सिर पर पटकते, जैसे निदान उसी ने हैं करने।
विश्व में लगभग ७५० मनुज, सबके जीवन में कुछ न कुछ चलता रहता है
अब सबकी खबर किस लिए चाहिए, अपने ही निबट लूँ, यही बड़ी बात है।
सामग्री उपलब्धता से लोक का ज्ञानवर्धन, पर क्या औरों को ही देखता रहे
अपने मनन -विचार हेतु भी तो उसे समय चाहिए, कुछ स्व हित हो जिससे ।
FB, WhatsApp, Twitter, Instagram, Pinterest, LinkedIn,
YouTube आदि
अब बात भी संवादों से ही, सीधे संपर्क टूट रहें, संचार-साधन हैं पर संपर्क न।
पहले पत्र-पत्रिकाऐं, पुस्तक आदि पढ़ लेते थे, सीमित TV चैनल थे देख लेते थे
प्रत्येक मीडिया को एक विश्वसनीयता बनानी होती, निर्मात्रा कुछ विज्ञ ही होते।
हर युग में कोई विचारधारा हावी रहती, संतुलन तो लोग करते परस्पर आदर
जब सदा सिर पर बहु सूचना थोपी जाएंगी, कैसे-कब निकालेगा सही निष्कर्ष।
नव-संचार क्रांति ने उथल-पुथल मचा दी, नित नर मैसेज देता अपने मतलब के
निस्संदेह वह पूर्वाग्रह-ग्रसित तो है, पर अपना समय मिले तो व्यक्तित्व निखारे।
सफलतार्थ निज प्रयास पुनीत कर्त्तव्य, लोग कितना जानेंगे - रूचि लेंगे पर निर्भर
पर सब बाँटन-होड़ में खड़े, उधार की माँगी बुद्धिमता पर जताते अपना हक।
मानव थोड़ा सरल क्यों न बनता, कुछ वाक्य निज से गठन की कोशिश तो करे
सतत व्यवधानकर्ता उपकरणों से किञ्चित दूरी हो, चरम सीमा खोज-यत्न करें।
जीवन बस औरों को देखते-सुनते निकल जाऐगा, कुछ न कमाया तो अपने से
परजीवी खाना तो पा लेता, पर निज कर-कमाई का सुख न उसके भाग्य में।
कुछ ग्रुपों में हूँ अनेक वीडियो लोड होते, मैसेज भी भेजते कुछ व्यक्तिगत
सबको देखना तो अवश्यमेव मुश्किल, देख लेता हूँ किसी का कुछ अंश।
पर सब फोन-मेमोरी में जुड़ जाते, आजकल कार्ड व फोन लगभग हैं फुल
बड़ी वीडियो व फोटो डिलीटिंग से स्पेस बनता, पर शीघ्र वह भी पूरित।
अज्ञात कि युग सचेतन या एक तकनीकी द्वारा बाँटने का मिला अवसर
मुझे लगता है कि अच्छे निपुण तो अपने सार-व्यवसाय में ही रहते रत।
दूसरों को संचार सुविधा होने से, वह सामग्री हो जाती सुलभता से प्राप्त
वे परस्पर तो बाँटते रहते हैं, चाहे कोई पढ़े अथवा न, पसंद आए या न।
नवयुग में हम सबको एक सा विदुर मान लेते, जैसे जो बाँटा समझेगा सब
कई सुमति तो ग्रुपों में ही शामिल न होते, कहते अधिक समय होगा व्यर्थ।
टेक्सट संवाद तो ठीक, पढ़ लेते पर ध्वनि-वीडियो मेमोरी स्पेस लेते काफी
डाटा ट्रांसफर-गति बढ़ी है, 4G तो पूर्व-प्रचलित, 5G भी शीघ्र आने वाली।
स्मार्ट फोनों में स्मृति स्पेस बढ़ा, 128 GB या पर अधिक पात्रता के रहें आ
ऊपर से कार्ड भी लगा सकते हो, पर कुछ भी हो वह भी धीरे-२ भर जाता।
प्रतिदिन कर्म डिलीट करो, देखो-पढ़ो चाहे न तथापि काम में रहता फोन
हल्का होने की जरूरत, जो आवश्यक ही रखो और पचाने की ताकत हो।
पुराकाल में लोग विद्वान होते थे, चाहे अल्प ही उचित ज्ञान का यत्न करते थे
मनन-ध्यान-समाधिस्थ नित्य कर्म थे, स्वयं को खँगालने की कोशिश करते।
बाह्य-कोलाहलों से दूर मन साधना, उवाच वही जो स्वयं को जँचता उपयुक्त
गौण वचन ही, मौन व्रत धारण करते थे, ताकि आत्मा से हो सकें समन्वित।
आज एक व्रत सोशल मीडिया से दूर रहने का भी चाहिए 1-2 दिन या अधिक
जितना अधिक अपकर्षणों से हटोगे, एक आत्म-अन्वेषण ओर होंगे आमुख।
निज-निकटता जरूरी, एक कोर ग्रुप बनाऐं, सुख-दुःख बाँटें, लाभ लें सामग्री
पर अनावश्यक संपर्क न चाहिए, हिंसा से दूरी, अतः ऊर्जाऐं समेटो अपनी।
स्व-हस्त कृति ही पूंजी, देख-समझ कुछ विशेषज्ञता हो सके तो बहु सुभीता
मौलिक छवि से लोग आदर करेंगे, मात्र बाँटन अपेक्षा प्रयास हो सर्जन का।
पवन कुमार,
१६ नवंबर, २०२१ मंगलवासर, समय ७:४१ बजे प्रातः
(मेरी डायरी 22 अप्रैल, २०२० बुधवार समय ८:०९ बजे प्रातः )
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