आज २९ जुलाई, २०२२ शुक्रवार वर्षा ऋतु के श्रावण माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि
३१ को हरियाली तीज, सुहाना मौसम, नभ मेघाच्छादित,
रिमझिम की झड़ी सी हो जाती।
जब अवसर मिला तो जलपूरित काले वर्षा धराधर बरस जाते, कुछ यात्रा भी करते
कदाचित शिथिल भी दर्शित पर पवन-ताप भिन्नता के चलते अग्रगमन करते रहते।
धूल-जल कण निर्मित ये अनेकानेक भूमियों को जलाभिषिक्त
व प्राण-संचार करते
धरा-वनस्पतियों को नवजीवन, पुष्प-फल-सब्जियाँ सर्वप्राणियों को उपलब्ध होते।
सत्यार्थ लोकमन मतवाला होने का, सराबोर से पुलकित, कई मृदुल आयाम चिंतित
बहुतायत से मन व्यापक हो जाता, जिसे जो चाहिए ले ले, न यहाँ अल्पता है कोई।
सब स्रष्टि-नियम निज-विस्तार हेतु, हाँ एक चक्र-घूर्णन सम दृश्य प्रस्तुत करती रहती
प्रकृति-रमणीयता निज को विविधवर्णी प्रस्तुतिकरण में, एक स्वीकार्यता सर्वस्व की।
सब आयाम वपु-मन पर स्पंदन करते, इसके अंश तुम भिन्न ऋतुओं से उद्भाषित होते
सुखद-निस्पंद-दुःखद अनुभव भी मिलते, पर जब सुख तो प्रसन्नता-कारण बढ़ जाते।
लोग कई भाँति के यत्न करते व पूर्ण बनने की सर्वचेष्टा
करते, वह वस्तुतः वर्धन ही है
रिक्तता-रोध भरण से ही संभव, वर्षा में शुष्क-रंध्रों में शीतनिद्रा सी में छोटे-बड़े मृतप्राय जीव प्राण वर पाते।
मानव मन कैसे विराट हो, सावन में शिवपूजन-प्रथा है, लोग पवित्र नदियों से लाते जल
गृह-निकट शिवालय-प्रतिमा का जलाभिषेक,
शिवचूड़ पर गंगा स्थापित दी गई कर।
नदियाँ पर्वतों से निकल मैदानों में बहती, मान्यताओं में देवी-देवों की कथाऐं पिरी-रचित
लोगों ने कई देवों-महादेव चरित्र मन में बसा रखे, श्रद्धानत हो सोचते करने की प्रसन्न।
पर जिनकी अर्चना होती वे क्या चरित्र, किन गुणों से आविर्भूत होकर लोग उन्हें पूजते
ऊपर से एक रिवाज़-आडंबर प्रतीत, लोग अनेक रमणीय दृश्य प्रस्तुत करते दिखते।
पर अंतःमन में एक विश्वास-श्रद्धा भी कि वैतरणी से तर जाऐंगे, धुल जाऐंगे हमारे पाप
मानते हम सब गलतियों के पुतले व क्षमा चाहिए, स्वीकारने में कोई पातक भी है न।
थोड़ा चिंतन कि बड़े ईश्वर आदि कैसे मनन करते, किन कृत्यों से होता विश्वहित
क्या मनन मात्र से ही हित या समक्ष आ हाथ पकड़ गूढ़ समस्याओं से देते त्राण।
प्रत्यक्ष
में तो जीवित न, हाँ मंदिर-गिरजे आदि हैं, प्रतिमाऐं मानी जाती जीवंत रूप
पर क्या शक्य, कई धार्मिक गृह टूटते, मूर्तियाँ बाढ़-प्रवाहित, श्रद्धालु दुर्घटनाग्रस्त।
अर्थ कि जीवन तो लौकिक ही स्वतः गतिमान, आपकी विश्वास-श्रद्धा है निजी संपत्ति
हाँ यदि पावन मनन सर्वहितैषी सा, तो एक सहयोग भावना अन्यों में भी उदित होती।
जब लोगों से मिलते अपने मन की बात कह ली, परस्पर समझने का मिलता अवसर
ज्ञान ही वस्तुतः परम शक्ति विरोधाभासों से बाहर लाता, अन्य भी स्वसम अनुभूत।
नर निश्चय ही संशयी जीव, विरोधाभास-परित है, भिन्न आयाम होते उत्तम प्रतीत
तथापि वह स्वयं श्रेयस निर्णय लेना चाहता, संभावित हो सके उचित दिशा दर्शन।
विश्व प्रति दायित्व का विस्मरण न है श्लाघ्य, कुछ प्राणी -कल्याण होना चाहिए ही
प्रजार्थ सार-लक्ष्य करना है आवश्यक, मात्र दया न रख विकास कराना जरूरी भी।
सत्यमेव सर्वहितार्थ विचक्षण मनन-चिंतन होवे, लघु आयामों में निम्न ही रहता नर
जब सुयोजना में अनेकों को जोड़ते एक नेता से बन जाते, अन्य करते अनुसरण।
चाहे चाटुकारिता ही, बात मनवाना एक कला, लोग खिंचे चले आते से सम्मोहित
सब ध्वनियाँ न सम मोहक, लोग गरजना सीख जाते, कर्कशता सी ही आभासित।
उचित कि युवा देशाटन करें, शक्ति-जाँचन भी श्रेयस, चरम थकावट भी हो अनुभूत
यदा-कदा मंत्र गुनगुना लो, निज संग विभिन्न प्रशिक्षण, विश्वास हो स्व-क्षमताओं पर।
जिंदगी में न्यूनतम साहस पालें, बात कह सकें व एक उचित समीक्षण की ताकत हो
क्षुद्र लोभों से भी बाहर आ सर्वार्थ अधिकांश लाभ प्रस्तुति, ऐसी सदा हमारी चेष्टा हो।
अनेकानेक जग-आकर्षण चहुँ ओर, बहु-आयामों से हमें पालनी चाहिए समीपता
मजबूरी भी है कि सब चिन्हन न संभव, पर कुछ उत्तम प्राथमिकताऐं तो लें बना।
रूपांतरण में शिक्षा रामबाण, जनक-लोकहित विचारक व होनहार करें सम्मान
संसाधनों से श्रेयस बहुल लाभ लो, पूर्णपुरुष निरूपण हेतु बड़े प्रयोग आवश्यक।
ओ पावस मेघ सम सर्व चिंतन-दिशाओं में घुमंतु मन, समृद्धि-विस्तरण की करो चेष्टा
हर प्राणांश जन-पूरकता में सहयोगी हो, स्वार्थी सा कई वरदानों की करता अपेक्षा।
पवन कुमार,
७ अगस्त, २०२२ रविवार, समय २२:३७ बजे सायं
(मेरी डायरी दि० २९ जुलाई, २०२२ शुक्रवार समय ७:३० बजे प्रातः से)
बहुत सुंदर।
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