जन-भावना
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जनतांत्रिक भाव हमारे उर-स्थापित हो, सब सहचर-सम्मान आवश्यक
सब हम सम
ही विचारते, नर को उपयोग
करने चाहिए निज उपकरण।
हम काल विशेष
में एक विशेष चिंतन
रखते, उसी भाँति ही
निर्णय होता
अनेक कारकों का
हमपर सतत प्रहार, हम
जैविकों पर प्रभाव ही होगा।
बस एक विशेष
मनोयोग बन जाता, कई
पूर्वाग्रह मन में हो
जाते जनित
अग्र-प्रभावों से
सुधरेंगे भी या न,
अद्य-स्थिति में तो अद्वितीय
चरित्र निज।
हम सदैव तो
उचित न, तथापि सब काल-परिस्थितियों में स्वार्थ सोचते
हाँ समय से श्रेष्ठ वरदानों को पूर्ण भोगें,
दुरह पक्ष किञ्चित उचित
लगेंगे।
मनुज-जीवन सुभग
की परिणति है, अनेक जीवों का
जीवन घोर कष्ट में
पुरुष श्रेष्ठ प्रज्ञा-उद्यमिता से आशीर्वादित, जीवन-निखरना
बहु संभव है।
प्रथम हम जैसे भी अपना आदर करें, यही
भावना लोकतंत्र-परिचायक
हाँ शिक्षा-प्रशिक्षण
द्वारा, बुद्धि के सब अंध
कूप होने कर लें प्रज्वलित।
सत्यमेव हम आत्म-ज्ञानी
न, ऊपर से कई
वहम अनावश्यक पाले रखते
अन्यों की क्षीणता से सहानुभूति हो, और उपाय करें कि दुरस्त हों कैसे।
जन-भावना अर्थ
सर्व हित-चिंतन ही,
उनका महत्तम-परिचय कराना भी
सब समान अतः मौलिक अधिकार प्राप्त हों, प्रेरणा कर्त्तव्य-निर्वाह भी।
राज्य-दायित्व प्रजा-भद्र का ध्यान रखना, कोई बाधा आए तो करनी दूर
निकटवर्ती विद्वान शासकों को मृदुल पक्ष समझाऐं, सलाह देवें उचित।
नर ने बहु कष्ट
झेलें, अनेक कर्कश पूर्वाग्रह-विकृतियों का आखेट बना
एक ने समुदायों हेतु बर्बर नियम घड़ दिए, व होने लगी मनुजता-हत्या।
विपुल दृष्टिकोण हो सकल नरता हेतु, निर्मल आंदोलन आए सहजता से
किसी दक्षिण या वाम-पक्ष की जरूरत न, अग्रवर्धन-चरण हों मानव के।
नर-चिंतन वृद्धि उत्तरोत्तर संभव, यदि उस हेतु मृदुल अध्याय हों प्रस्तुत
वह सच्चा लोकतंत्री बनकर ही, मान संग वृहद हित में कर सकता कर्म।
श्रेष्ठ परिवेश निर्माण शासन व प्रबुद्धों
का दायित्व, सबको इज्जत से
रोटी
त्रुटि-परिष्कार होना आवश्यक, पर
तभी संभव जब परस्पर
समझ होगी।
११ मई, २०२३ वीरवार, समय ८:५० बजे प्रातः
(
मेरी महेंद्रगढ़ डायरी दिनांक ९ मई, २०१९
वीरवार, समय ९:३५
बजे प्रातः)
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