स्वच्छ भारत
ऐ बंदे, जग में आ ही गया है, तो जीना सीख ले कुछ
बहुत उम्र बिता दी है तूने, कब तक यूँ रहेगा अबूझ।
सर्वव्यापी का कुछ चिंतन, तुम्हें अग्र बड़ी राह दिखाऐ
कैसे संभव अनुपम यहाँ, सबकी फिर युक्ति लगाए।
कुछ महाजनों ने आचरण में, चिंतन संग कर्म है जोड़ा
व समस्त विकास प्रसारण, उसी कर्म में स्पंदित हुआ।
कैसा चाहते स्वरूप जग का, बहुत कुछ हम पर निर्भर
माना एकाकी कुछ दुर्बल, एकता में अति बल निहित।
यहाँ एक साँझी सोच का महत्त्व, पर प्रेरक सन्मति देते
और चमत्कार होते जाते, जहाँ मनुज बड़ा है ठान लेते।
बहु तंद्रा छुपी, व यदा-कदा तो हिलाने पर भी न डुलते
पर निज बदहाली ज्ञात, निदान है प्रमाद-अंत करने में।
वपु-मन रखो जीवित दशा में, और सदा ध्येय का ध्यान
पर सब प्रमाद-उपालंभ, टालना आदत हैं प्रगति-बाधक।
देखिए, जो सदा चलते रहते, उन्हें मिल ही जाती है मंजिल
वरन एक अनुपम अनुभव लब्ध, जो स्वयं में है महत्त्वपूर्ण।
चाहे कुछ देख-भोग ले, सर्वांगीणता से तो रूबरू होवें पर
आओ निज दशा बदलें, बहुत बदहाली व कंगाली ली सह।
उन्होंने बनाया एक परिवेश मनोरम, जहाँ सबके मन रमते
स्वच्छ भारत की कल्पना, महात्मा गांधी राष्ट्र हेतु हैं करते।
आज उन्हीं स्वप्नों में योग हेतु, शासन ने सब कार्यालय खोलें
सब बनें भागी इस अभ्युदय-उन्नयन में, सर्वत्र खुशहाली है।
आओ जुटें सर्वदा, विराट स्वच्छता-यज्ञ में इस, लगाऐं वृक्ष
औरों महत्तमों को संग में लें, ताकि मन-तन हों पुलकित।
पवन कुमार,
(२० अगस्त, २०२३, रविवार, ६:३७ बजे सायं)
(महेंद्रगढ़, २ अक्टूबर, २०१४ वीरवार, समय ८:५५ बजे प्रातः)
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