जीवन - परियोजना
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मनुज-जीवन अति लघु, कर्म अधिक, लापरवाही हेतु कोई नहीं समय।
निज बिखरी-छितरी ऊर्जाओं को वश में करें, और कुछ क्षमता जोड़े
अति बड़ी परियोजना जीवन, आधुनिक प्रबंधन-आयाम स्थापित करें।
यहाँ प्रत्येक ईंट दुरस्त करना, उचित संरचना में भली प्रकार से लगें
गुणवत्ता जाँचे-परखे, ताकि वह न्यूनतम आयु सुचारु रूप से जी ले।
सुसज्जितकरण-कारीगरी, भवन-निर्माण का हुनर, सीखो आयाम भिन्न
जीवन चले तो एक रथ भाँति, उसका स्वास्थ्य-गति बढ़ानी होगी फिर।
इसके अश्वारोही हों साहसी, सुयोग्य-प्रशिक्षित, मार्ग-बाधाओं से न डरें
निर्भय मन-स्वामी इसका हो सारथी, एक सुनर भाँति चहुँ-दिशा विचरें।
तुम स्व-कृत्यों को तब लिपिबद्ध करो, व वाँछित सामग्री एकत्रित करो
ढूँढ़ो सकल उपकृत्य समाहित करने, और हर पग को सुनिश्चित करो।
यदि प्रशिक्षण तुम्हारा है त्रुटिरहित, बाद में परिणाम मनानुरूप होंगे ही
तुम निज-उन्नति हेतु मार्ग-प्रशस्तिकरण में, अपनी कोई न छोड़ो कमी।
स्वानुशासन सबसे बड़ा औजार यहाँ, वही तो औरों को भी करता प्रेरित
दल-सहयोगी बनें सुयोग्य जब, काम के होंगे तो सहायतार्थ आऐंगे स्वयं।
समय-ऊर्जा-समझ सबमें बाँटनी होगी, महत्तम यथासंभव लाभान्वित हों
उदार-मृदुल नृप के राज्य में सब सुखी होते, न्याय सभी में तो बाँटना हो।
कलंदरों सम तू भी बन एक साहसी नर, समस्त मानवता निज की बना
निज कर्मों पर रख एक नज़र पैनी तब, उत्तर सब तुमको स्वयमेव देना।
पवन कुमार,
२८ अगस्त, २०२३ सोमवार, समय ६:४१ बजे सायं
(महेंद्रगढ़ डायरी ३१ अक्टूबर, २०१४ शुक्रवार, समय ९:३५ बजे प्रातः)
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