दिशा बदली
दिशा बदली तो दशा बदली, एक विचार-ढ़ंग बदला तो दुनिया ही बदल गई
पर आश्चर्य यह सब मेरे कारण हुआ, मैं तो जमाने को दोष दे रहा था वैसे ही।
सर्वस्व निज कर में ही, मैंने उत्तर दिशा से कुर्सी घुमाकर ली दक्षिण-पूर्व कर
कहते हैं दक्षिण या पूर्व ओर मुख कर मनन करो, तो लाभ होगा आश्चर्यकर।
वैसे भी बिस्तर पर लेटता, प्रातः जल्द उठ भ्रमण-व्यायाम तो सेहत हुई श्रेष्ठ
मन जरा सकारात्मक तो सर्वत्र आत्मरूप-दर्शन, दूर हो गए वैमनस्य सब।
मैंने भोजन-मात्रा में जरा कमी की, उदर से अनावश्यक बोझ कम हो गया
थोड़ी सी वसा-मात्रा खाने में अल्प की, तो हृदय-स्वास्थ्य प्रफुटित हो चला।
किञ्चित चाय कम पीनी शुरू की, उदर-अम्लता बहुत हद तक हो गई दूर
प्रातः उठ गुनगुना जल पीना शुरू किया, पाचन-शोधन सब हो गया दुरस्त।
सुबह उठकर मुख धोकर नेत्रों पर लार मलनी चालू की, तो दृष्टि सुधर गई
अपराह्न-भोजन बाद अल्प-निद्रा चाहे कुछ देर ही, अनुपम ताजगी मिलती।
शयन-पूर्व रात को एक गिलास दूध पीना शुरू किया, तो स्वास्थ्य सुधर गया
सुबह आवास को बुहारना शुरू किया, तो एक स्वस्थ परिवेश
का बोध हुआ।
चुनींदी कहावत-दोहे-शेर-कविता-गजल लोगों में बाँटी, लोग सजदा लगे करने
कुछ ग्रुपों से जुड़ा समरूचि-मित्रों के, बहु ज्ञान-सहयोग-समझ पास लगी होने।
थोड़ा हँसी-मजाक, मुस्कुराना शुरू जो किया, लोग खुश होकर पास आने लगे
लोक के हित व मन की क्या बात कह दी, तो बड़ी आशा-आदर से देखने लगे।
कुछ थोड़ा साहस किया व पदानुरूप झिड़क दी, कार्य-अनुशासन दिखने लगा
समक्ष कार्यों में कुछ अधिक लीन हुआ, तो मुझमें अधीनस्थ-विश्वास बढ़ गया।
निज पक्ष कुछ शालीनता से स्पष्ट कह दिए तो अन्य उन्हें सकारात्मक ही लेते
दूजों को समझने की जरा कोशिश की, सारी दुनिया दिखने लगी एक दर्पण में।
शरीर की कुछ योग-मुद्राऐं बनाई तो उन विशेष अंगों का भी होने लगा व्यायाम
सब संधियाँ तनय होनी चाहिए, जिंदगी जीने हेतु स्वस्थ-बली होना आवश्यक।
प्रजाजनों
से जरा मधुर-सवांद शुरू किया, वे और अधिक सम्मान करने लगे
पर ढ़ीठ-कर्मियों से कुछ कठोरता की, तो वे भी शनै उचित पथ आने लगे।
जरा सा सार्वजनिक कल्याणार्थ सोचा, तो एकदम शासन-प्रबंधन बदल गया
लोगों को सुढंग से परखना शुरू किया, उन्हें निज शैली अनुभव होने लगा।
किंचित दृढ़ता दिखाई तो सुस्तों में बेचैनी बढ़ी, या तो काम करेंगे या भागेंगे
दोनों चीजें निज हाथों में पर दोषारोपण न, सुधरोगे तो अति लाभ ही होंगे।
सुबह उठकर थोड़ा चिंतन-लेखन शुरू किया, वृद्धि हुई बौद्धिक क्षमता में
कुछ महापुरुष-चरित्र अध्ययन, तो थोड़े-2 जुड़कर अनेक पास आ गए।
एक का अन्वेषण-यत्न हुआ, तो अनेक अन्यों से इस बहाने हो गया परिचय
संगी-साथ बढ़ा, परस्पर-निष्ठा वर्धित, जरूरी तो नहीं सब सदा हों समक्ष।
एक पुस्तक-परिचय तो अनेक नाम समक्ष आए, धीरे कड़ी सी बनने लगी
एक कदम अग्र बढ़ा तो पथ दिखा, दृष्टि निर्मल हो दूर तक देखने लगी।
मन- सितार तार झनकाया, एक आश्चर्यजनक तरंग सर्वांग में हुई झंकृत
अभी अज्ञात था मैं भी थिरक सकता, अपने से परिचय होना हुआ आरंभ।
अपनी अनेक शक्तियों से अबतक अनभिज्ञ था, एक दिन देख ली झलक
आश्चर्यजनक रूप से मन-बली बना, आत्म-विश्वास व कौशल हुआ वर्धित।
तन्द्रा में भी खुद से झूझने की कोशिश की, तो नव-विचार उदित होने लगे
समय-सदुपयोग हो, कुछ घंटे चुराए तो जीवन निर्माणार्थ उपलब्ध हो गए।
संस्था-कारवाईयों में भाग लिया तो खुलती दिखाई दी अनेक रहस्य-परत
अनेक आयाम-दृष्टिकोण से भिज्ञ हुआ, मानस-पटल किञ्चित हुआ संपन्न।
विनीत हो वरिष्ठों की बात सुननी शुरू की, तो उनका स्नेह-पात्र गया बन
कुछ देर वज्रासन में बैठा, सौष्ठव बढ़ा, देह सशक्त व पाचन-बल वर्धित।
जैसे ही अधीनस्थों प्रति कुछ दयावान हुआ, वे दिल से सम्मान करने लगे
कथन हृदयस्थ करके पूरी शक्ति लगा, प्रदत्त कार्य-पूर्णता का यत्न करते।
किञ्चित अधिक काम करना शुरू किया, तो वे कायल होकर बिछने लगे
कीर्ति दूर तक पहुँची, हरेक वाँछित कर्म पूरा करने की कोशिश करते।
मुझे असहजता आभास होते हुए भी, यह लेखन-क्रिया आगे बढ़ा हूँ रहा
इसी संहति में से ही कुछ उम्दा निकलेगा, आशावादी हूँ सदा कुछ पाया।
माना मैंने बहुत कुछ सोचा इस स्वयं हेतु, परंतु कुछ को तो बिसरा दिया
तथापि ईमानदार-नेक यत्न हूँ करता, आत्म को सदा न सजा दे सकता।
माना भविष्य की न
कोई सुध, हाँ वर्तमान में पूर्ण झोंकने का करता यत्न
पर कुछ योजना तो बना सकता, स्पष्ट देखने की पूरी कोशिश है संभव।
कैसे वर्तमान की सुस्ती को भगाऊँ, आँखों में नींद चढ़ी पर कलम सतत
यह विचित्र विरोधाभास, ग्रीवा झुकाता, फिर उठाकर हो जाता गतिरत।
किंचित
यदि निज वित्तीय-प्रबंधन सुधार लिया, तो धनराशि जुड़ने लगी
व्यय के बाद अनिवार्य संचय तो नित लाभप्रद, बाद में आएगा काम ही।
संतान संग बैठ समय लगाना शुरू, तो उनकी पढ़ाई ठीक से लगी होने
प्रोत्साहन से उत्साह वर्धन होता, उद्देश्य कि वे अधिकतम तरक्की करें।
अभी बहु-विषयों पर ध्यान न दे पा रहा, फिर अपने से कैसे सुधार होगा
किंतु प्रथम विषय-ज्ञान तो हो, फिर वाँछित को भी चिन्हित करना होगा।
अज्ञात कितने आयाम हैं संभव, क्या अपनी विषय-वस्तु बढ़ा सकता नहीं
बहु-आयामी ही प्रतिभा-नाम कमाते, कुंभकर्ण न उठते नगाड़े सुनकर भी।
जरा निर्मोही हुए तो कबीर सम स्पष्ट दृष्टि, समक्ष जग यूँ आ गया हथेली पर
बहु-भाँति के सुवचन वदन से निकले, कौन सरस्वती उनमें करती ही वास।
पर ऐसा क्या नैसर्गिक होता या नियति-वृत्ति ठीक कर ली, राह निकली चल
दुकान खोलो ग्राहक भी आ जाऐंगे, प्रयास से सकल समाधान होंगे समक्ष।
निज की मिथ्या-मुक्ति हेतु आदि की, अनुपम हल्कापन मन-देह में अनुभूत
विश्व तो बहुत ऊल-जुलूल से पूरित, निज अग्रताऐं ही करनी होती चिन्हित।
यह जीवन मेरा इसे सर्वश्रेष्ठ कैसे बनाऊँ, कुछ गुरुओ से तो लेने होंगे सबक
सारा जोर ढंग-तरीके पर, उनके प्रयोग करने, तब तो गाड़ी निकलेगी चल।
किञ्चित सामान्य से अधिक प्रयास, तो निश्चितेव चरम सफलता ओर गमन
यह जीवन संवारना तुम्हारी जिम्मेवारी है, जो भी वाँछित ढूँढ़ ही लो उपाय।
'यह जीवन न मिलेगा दुबारा', अतः प्रत्येक पल पूरी तरह से जी जाए लिया
एक वृहद-जीवंतता प्रतीक्षा करती, जो भी उचित संभव खड़े हो, लो अपना।
पवन कुमार,
१८ मार्च, २०२४, सोमवार, समय ००:२७ बजे म० रात्रि
(मेरी महेंद्रगढ़ (हरि०) डायरी २० अप्रैल, २०१७, वीरवार, समय ७:१७ बजे प्रातः से)
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