फूंका जीवन फिर एक बार
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आज अपने आत्म में, मैं भ्रमित सा हो गया
विश्वास के संग से, कुछ विरक्त सा हो गया।
चाहकर भी बल अपने अंतः में न जुटा पाता
पता नहीं क्यों भय, मन में घुस सा है आया।
हालाँकि बिलकुल निश्चिन्त, सब शुभ होगा ही
लेकिन कभी-२ शायद, ऐसे क्षण आते हैं भी।
कभी साहस का दामन तो पकड़ा था हमने
फिर शक्ति का ह्रास, क्यूँ अनुभव मन में?
क्या तुमने आत्म-विश्वास दिया बिलकुल खो
जो जरा सी यहाँ ठोकर लगी, और दिए रो।
शक्तिशाली को ही, यह जगत शीश नवाता
फिर गरदन झुकी रही, तो जीना ही कैसा ?
फिर से फूंक दे उस अग्नि को इस स्वांतः में
जो कि पुन: तुम्हें पूर्ण ज्योतिर्मय ही कर दे।
उठकर प्रभु नाम ले, सबकुछ अच्छा कर देगा
नित रहो साथ तिहारे, नाम अमर वो कर देगा।
श्रेष्ठता -ध्येय बना, जीवन-सीढ़ी चढ़ते चला जा
देखोगे कुछ समय में ही, स्तर अति बढ़ गया।
कदापि न सोचो क्षीण तुम, वीरता-संवाद करो
भागेगी पराजय मुख छुपा, यदि तुम संयम धरो।
अपने मन-मीत बनो तुम, सब अच्छा हो जाएगा
बंसी निज मधुर बजा, कन्हैया स्वयं तान देगा।
पवन कुमार,
१ अप्रैल, २०२४, ब्रह्मपुर ओडिशा समय १२:४८ म० रात्रि
(मेरी डायरी २७ जनवरी, २००२, रविवार, समय ११ बजे रात्रि,
क्लीव कॉलोनी, के.लो.नि.वि., शिलाँग - ३, मेघालय से )
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