स्वतंत्रता-अर्थ
स्वयं-सहायता महत्तम संबल, मानव इस दुर्धष जगत-जंजाल से मुक्ति पा सकते
सर्वत्र महालोलुप-दृष्टि है, कब सावधानी-च्युत हुए व बाज द्वारा लपक लिए गए।
तुम कैसे यहाँ निज जीवन-घड़न चाहते, पूर्व-स्वतंत्रता तो नहीं, कोई तो है स्वामी
पर मौलिक महत्त्वपूर्ण, जितने उच्च को बनाओगे, कुछ निज-गुणवत्ता भी बढ़ेगी।
जगत में ठग को पहचानना बड़ा कठिन है, फिर कौन निर्मल कल्याणक ही नित
आरंभ में कुछ भद्र-चेतस संभव, पर सत्ता प्राप्ति कैसा ही रूप, जानना है कठिन।
सत्य कि बहु संघर्षशील नर मृदुल-मानस ही, पर सत्ता-वैभव शनै कर देता गर्वित
अच्छा-भला शक्त-प्राणी असहाय हो जाता, जगत-तष्णाऐं कर लेती पूर्ण पाशित।
समय संग हमें मृदुतर होना चाहिए, किन्तु जरा सम्मान मिलते ही फूल से हैं जाते
और पूर्व भले-समर्थकों को दास समझ लेते, जैसे मात्र हमारी सेवा हेतु यहाँ आए।
पर क्या मानव-कुसूर, वह सब बालपन-युवा-व्यस्क-प्रौढ़ आदि श्रेणियों से गुजरता
सबकी निज परवरिश होती जैसी संगति-विद्या-ज्ञान मिला, वैसे ही परिवर्तित होता।
स्वयं को तो सोचते अति-बुद्धिमान, किंतु वास्तविकता में हैं विशेष परिस्थिति-रचना
थोड़ा-बहुत विवेक मिला है हाथ-पैर मारने हेतु, व अति साहसी पार कर लेते बाधा।
चलो मदारी का खेल देखते हैं, वह अपने बंदरों से जो चाहे, वही काम करवा लेता
मदारी की रज्जु से बंधा वानर तो सेवक, स्वामी के हाथ में डंडा, खाना-पीना देता।
जरा सी शरारत की तो मार खानी पड़ती है, गुस्सा हो गया तो खाना भी नहीं प्राप्त
अब बंदर का अल्प बुद्धि-साहस, अपने से बलशाली के चंगुल से मुक्ति है कठिन।
जगत में सतत बहु प्रयोग, आखेटक वीभत्स-खूँखारु सिंह को पिंजरे में फाँस लेता
महाकाय हाथी, गैंडा, जिराफ, मगर तक को फँसा लेता है, स्थायी ही अब उनका।
माना ताकतवर किंतु नर युक्ति उनसे ऊपर की होती, बेबस जाल में फँस ही जाते
तात्पर्य है कि चालक कब्जा जमा लेते निरीहों पर, चाहे देह-बल में कमतर उनसे।
अब एक काल तो मनुज-विशेष भी किसी स्तर, एक के ऊपर अनेक चढ़ी हैं परतें
किंचित दुर्बलों से स्वयं को सुभग मानने लगता, मद में पाश में लेना चाहता उन्हें।
प्राचीन काल में राजा बेगारी करवाते थे, सारे नर प्रस्तुति को बाध्य उनकी सेवा में
न कोई प्रश्न, विरोध-स्वर ही, कभी कोई बोले तो कड़ाई से कुचलवा जाता सेना से।
लोगों ने बड़े किले बनवा लिए, बड़बोलापन इतना अधिक कि गगन-छेद कर देगा
विश्व की सकल-वैभव इच्छा-समक्ष कर लिए, अन्य-श्रम से फल चोखा है मिल रहा।
ऊपर से काम-प्रवृत्ति में पाशित, विश्वामित्र से तुलना सी जो मेनका से थे गए उलझ
फिर रूपसी-संसर्ग को ही कुछ स्वर्ग सोचते, जीते-जी जो भोग सकते हो, लो भोग।
अब ताकत-नशा, दूजे को तुच्छ समझते, बात-2 पर औकात दिखाने की बात करते
निज व्यवहार तो स्वयं से बली समक्ष कभी देखो, भीगी बिल्ली से कोने में दुबकते।
युक्ति-व्यवहार तुम भी सीख जाते, निज जैसों से मिल महत्तम संभव लाभ लो उठा
यहाँ तुम उसकी सहायता करो और वह तुम्हारी, चोर-चोर तो मौसेरे ही होते भ्राता।
सब दमितों में से कुछ दुर्धष निकल जाते, साहस करके तंत्र समक्ष करतूतें कर देते
फिर सिकंजा धीरे-2 खिचना शुरू होता, विरोधी गुट अपना समस्त जोर लगा देते।
कानून का पेंच तो बड़ा ही शक्त-पेचीदा है, चाहे तो किसी को भी फँसा देता कहीं
सहायक-सहारा व निज बल भी अति काम न करते हैं, चक्रव्यूह निश्चित जटिल ही।
खैर ये बातें तो बलशालियों की, किंतु कुदरत समक्ष तो कभी पहाड़ भी है हिलता
परंतु ये आमजन कहाँ जाऐं, उन पर तो सदा यह नहीं तो वह दबंग काबिज रहता।
स्वावलंबन की उसको कितनी स्वतंत्रता मिल रही है, उस देश-समाज के देन यही
लोकतंत्र ने बहुत आजादी दी, तथापि स्व-मतिमंदता व बली-युक्ति फँसाए रखती।
चिंता यहाँ आम नर की, कैसे विमुक्त हो सकल सुलभ सुख-आस्वादन कर सकता
तब क्या स्वतंत्रता-अर्थ भी लेगा, क्या प्रज्ञाशील भाँति संयम से आचरण ही करेगा।
क्या चरित्र-कसौटी, सब योगी-भोगी, राजा-गृहस्थ, साधु-पादरी पृथक आचार करते
अब असंभव तो है समान प्रशिक्षित , किसको नायक मानें और पद-चिन्हों पर चलें।
थोड़ा सरल करते हैं नर पूर्व पूर्ण-मुक्त होवे, तब स्वेच्छित पक्ष चिंतन कर ले अपना
यदि देश का शासन-तंत्र निर्मल, अवश्यमेव हरेक को पूर्ण-पनपन अवसर मिलेगा।
वहाँ परिवेश शिक्षा-परक व मानव के उबार वाला होगा, ताकि ले सके उचित निर्णय
विषमता भी शनै से मिट ही जाऐंगी, एक साहस होगा, करने को बुराई का प्रतिकार।
ये धार्मिक तो यूँ ही मोक्ष-नाम लेते, स्वतंत्रता ही चरम उपलब्धि दिशा दिखा सकती
साम्यवाद भी उत्तम चेतना है, मानव अन्य का ग्रास न बने, व सुख से रहें दोनों ही।
पवन कुमार,
ब्रह्मपुर (ओडिशा), ३१ अगस्त, २०२४, शनिवार, समय १०:२३ बजे प्रातः
(मेरी महेंद्रगढ़ (हरि०) डायरी ३१ अगस्त, २०१७, वीरवार समय ७:५३ बजे प्रातः से )
Bharat Sharma :
ReplyDeleteस्वतंत्रता का अर्थ है स्वयं को वयस्कता के बोझ से मुक्त करना और मासूम बच्चे की तरह रहने का आनंद लेना।
स्वतंत्रता का अर्थ है मुस्कुराना, चाहे किसी भी परिस्थिति में हो।
आज़ादी का मतलब है पढ़ना, चाहे आप जो चाहें।
स्वतंत्रता का अर्थ है लिखना, जो कि सही है