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Sunday 4 August 2024

अनिश्चित आगामी

अनिश्चित आगामी



जीवन का यादगार दिन, अपनी छाप छोड़ जाएगा ही 

एक यात्रा पूरी हो रही, व कुछ अनिश्चित है आगामी। 


लिखकर इसको जी लूँ, फिर चिंतन कर सँवार ही लूँ 

हरेक पल को सार्थक ही बनाकर, पूर्ण-दिशा इसे दूँ। 

बीत गया है जो हँसी-खुशी में, उसको अनन्त बना दूँ 

नित आगामी दिन हेतु सदेच्छा ही, इसे मधुर बना दूँ। 


बहुत हो गया हँसी-खेलना, अब कुछ गंभीर हो जाऊँ 

मस्तिष्क की कर्कशता त्यागकर, कुछ कोमल जाऊँ। 

बीत गया जैसे बहुत कुछ ही, व अंतः में गया अति दूर 

कुछ मृदुल मनन फिर से कर, स्वयं के आऊँ निकट। 


कुछ खोना और अनुपम पाना है, चेष्ठा उधर इंगित करो 

चलाओ सुमार्ग पर ओ प्रभु, सकल उचित चिन्हित करो। 

प्राण-वायु दो श्वसन-तंत्र को, ज्ञानेंद्रियाँ संचालित ही करो 

छुड़वा व्यर्थ बचकाना, किंचित सार्थक में संवाहित करो। 


कुछ कर्त्तव्य बोध कराकर, प्रदत्त कर्मों हेतु सुप्रेरित करो 

अनुभव बताता कितने साथ ही हैं, तथापि तो उद्यत करो। 

नहीं चाह किसी यश-स्तुति की, करो विदूर मिथ्या श्लाघा 

किंतु प्रबलेच्छा कुछ समुचित हो, साक्षी बनूँ अनुपम का। 


आह्लादित करो मन-प्राण ही, एक करूँ मन-वचन-कर्म 

चिंतन हो कुछ विरल सा, जिससे हो आत्म-साक्षात्कार। 

छूटते जा रहे हैं व्यर्थ बहु बंधन, एक अच्छी बात यह तो 

किंतु मोह स्वजनों से बिछड़ने का, कैसे संभालूँ खुद को। 


स्वावलंबन अपनाने की ही शक्ति, मुझको ईश्वर दे देना 

मनुजता प्रति क्या हो दायित्व, उसको भला समझा देना। 

बना कलम को कुछ अंतः-साक्षी, किंचित जीवंत बनाऊँ 

व सार्थक चिंतन-व्याख्यान से, इसको निर्मोहित बनाऊँ। 



पवन कुमार, 

४ अगस्त, २०२४, रविवार, समय ५:४४ बजे अपराह्न 

(मेरी नई दिल्ली डायरी २५ जून, २०१४ बुधवार, ८:५३ बजे प्रातः से )

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