अनावश्यक को मत अति तूल दो, ऊर्जा-समय दोनों अनमोल हैं।
अति घटित होता दिन-प्रतिदिन, जो हो चुका उसमें तुम सहभागी,
क्रिया-प्रतिक्रिया से वार्तालाप चलता,
प्रश्नों ने खींची है
जिम्मेदारी।
वे गठित करते बैठक की रूपरेखा, पूछें कितना, क्यों व किससे,
पूर्वाग्रह
से पूरे भरे रहते
फिर भी, हमें सभ्यता
का धैर्य रखना है।
जो बीत चुका उसकी पुनरावृत्ति क्यों, प्रतिक्रिया बस उपयुक्त ही,
एक
समय बाद भूलना ही
अच्छा, सेहत व मन
दोनों के लिए ही।
प्रतिबद्धताएँ समय माँगती हैं, पर क्या जीवन जोड़-तोड़ में बीते?
स्वार्थ
के स्वर बदलते रहते
हैं, रह-रह कर
अपना रूप दिखाते।
एक सीमा तक छोड़ना आवश्यक, देखो क्या समाधान संभव है,
कार्यालय ही तो सब कुछ न, घर-परिवार और स्व-चिंतन भी हैं।
प्रतिष्ठा हेतु प्रतिबद्ध रहो, पर जीवन-संतुलन भी है अति जरूरी,
अपनों
को संभालो, आपकी व्यस्तता
से कहीं वे बिखर न
जाएं।
एक आयाम में सिमटे ही रहना, अन्य आयामों से बनाता है दूरी,
वे तुम्हारी उपयोगिता बिसराते, जानते कि तुम उनके लिए नहीं।
जहाँ जन्मे, वहाँ का फर्ज निभाना है, मूल्य तो चुकाना ही होगा,
चेतना
क्षेत्र एक श्रेष्ठ आयाम
है, उसमें सबके लिए जगह
बनाओ।
सारी ऊर्जा एक जगह झोंकना, कभी समय की माँग सकती हो,
पर
स्वयं को भी सहेजना
सीखो, स्वास्थ्य नियम सदा अपनाओ।
इस
विश्व को अति गंभीर न लो, वे अधिकांशतः स्वार्थ में उलझे,
कर्त्तव्य
पहचान निर्वाह करो, पर अन्य
को दैव-विधाता न
मानें।
यहाँ
नए-नए लोग उभरते हैं, बुद्धिमता का लोहा मनवाने निज,
जैसा समझ में आए, वैसा करो, पर उचित परिप्रेक्ष्य में दो उत्तर।
निकट
नेताओं से सीखो, वे लड़ते-झगड़ते भी संग खाते-पीते हैं,
आलोचनाऐं
दिल से नहीं लेते
रोज़ की बातें, सहजता
से निभाते।
लघु विषयों पर तुनकमिजाजी न उत्तम, धैर्य का फल मीठा होगा,
सत्य
रंग समय बाद दिखता है,
नए लोगों का सच सामने
आएगा।
लोग पहले स्वपक्ष में विश्वास कराते, जोड़-तोड़ का खेल चलता है,
परिणाम का पता नहीं, किंतु वर्तमान का आनंद तो ले सकते हैं।
विषय जो हो, भुलाओ भी, घर-कुटुंब को समय देना आवश्यक है,
लोगों
के पीछे न भागो,
जब आवश्यकता होगी तो वे
स्वयं आयेंगे।
देखो
यह युग प्रयास करने वालों का है, बड़ा लाभ-अंश वे ही पाते,
जो बिना प्रयास किए मात्र सोचते ही, प्रायः भाग्य को दोष हैं देते।
तुम्हारी चेष्ठा रंग लाएगी, यदि मंशा होगी ईमानदार एवं सर्वहित
परंतप शक्तिवान बनो, किंतु धैर्य से करना भी सीखो निवारण।
बंधुओं के संपर्क में रहो, संवाद तुम्हें देगा शांति, सम्बल एवं वेग
जगत के कार्य बहुत पेचीदा हैं, अतः प्रयास करो सुबुद्धि ही संग।
मत
उलझो बहु रहस्यों में, दर्पण-चेहरे
दोनों होना मांगते
निज दृष्टि को दूरदर्शी बनाओ, सब जुड़े अवयव करो ही स्वस्थ।
उच्चता
के तुम सत्य ही
प्रतिभागी, किंतु प्रयास का न
छोड़ो संग
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