कामायनी: एक जीवन गाथा
समर्पण : यह कविता महाकवि जयशंकर प्रसाद और उनकी कालजयी कृति कामायनी को समर्पित है, जो मानवता, विश्वास, और पुरुषार्थ का पथ आलोकित करती है।
महाकाव्य गढ़ा तो कालजयी बने, संकल्प से अमरत्व है पाया,
आरंभ तो अल्प से ही किया है, निरंतरता ने इतिहास रचाया।
जयशंकर प्रसाद की कामायनी, तीन दिन पूर्व पढ़नी शुरू की,
‘चिन्ता’ और ‘आशा’ के खंड पढ़े हैं, और पल्ले पड़ा कुछ ही।
भाषा तो अतिगूढ़, शब्द चयन गंभीर, अर्थ गहराई में है छिपा,
लंबे वाक्य माप-तोल से गढ़े हैं, भावनाओं का अनमोल सिरा।
यह पुस्तक वर्षों से संग रही, यदा-कदा पढ़ा था कुछ अंश,
पर समझना सरल नहीं, प्रकाण्ड हिन्दी-ज्ञान माँगती है यह।
प्रसाद छठी कक्षा तक स्कूल गए, शेष शिक्षा घर पर ही की,
हिंदी, संस्कृत, आंग्ल-भाषा का ज्ञान विद्वानों से ग्रहण किया।
1889 में बनारस में जन्मे, 1937 में उनका देहावसान हुआ,
मात्र 48 वर्षों में, कालजयी कृतियाँ व अमिट नाम कमाया।
श्लाघा यूँ ही न मिलती, इस हेतु करना होता अथक प्रयास,
जगत तो सिर पर बैठा लेता है, यदि कर्मयोग में हो विश्वास।
प्रसाद, साहित्य का सूर्य, जिनने हर विधा की हैं आलोकित,
कविता, नाटक व कथाओं में, मानवीय संवेदनाऐं की पूरित।
उनकी लेखनी शब्दों में जीवन भरे हैं, सृष्टि का मर्म सिखाए,
मनुष्य के भीतर के गुह्य सत्य को, वे एक नवीन दृष्टि दिखाए।
कामायनी, उनकी विश्वप्रसिद्ध कृति, गहरी मानवता-संदेश,
मनु, श्रद्धा, एवं इड़ा की कथा, जीवन का अद्भुत उपदेश।
चिंता पुरुषार्थ का प्रतीक है, श्रद्धा विश्वास और प्रेम सिखाए,
इड़ा तो ज्ञान और संतुलन से, जीवन को नूतन राह दिखाए।
महावृष्टि के गर्जन में, जल-प्लावन का अंधकार गहराया,
शीतल शिला पर बैठे मनु ने जीवन का संगीत दोहराया।
चहुँ ओर जलधारा का शोर ही, न कोई सहारा, न किनारा,
फिर भी मन का दीपक है, हरेक निराशा पर भारी पड़ा।
श्रद्धा और इड़ा हैं मनु के मस्तिष्क और हृदय का संतुलन,
एक नव सृष्टि का आरंभ, जीवन का मधुर नूतन आलंबन।
आख्यान हो ऐतिहासिक या सांकेतिक, किंतु विपुल है अर्थ,
यह सत्य व रूपक का अद्भुत संगम, जो करता अचंभित।
कामायनी का प्रत्येक संदेश, आज भी उतना ही सार्थक है,
धैर्य, विश्वास एवं पुरुषार्थ ही, जीवन को देता गहरा अर्थ है।
आज के नर-संघर्षों में भी, यह राह दिखाने का मर्म रखती,
मानवता के बहु संकटों में, आशा की एक लौ बन जलती।
जलवायु संकट हो या जीवन-संघर्ष, सार जाग्रत है करता,
हर मनुज में साहस भरता है, श्रद्धा से विश्वास जगा जाता।
इड़ा के ज्ञान का आलोक, हर अंधकार को दूर है भगाए,
कामायनी का यह प्रकाश, हर युग में नव निर्माण कराए।
कामायनी पढ़ते-पढ़ते अपने भीतर का एक कोना खोजा,
जहाँ भी चिंताएँ शांत हो, आशाओं ने नई राहें सजीव कीं।
मनु की दुविधा है पर श्रद्धा का विश्वास, और इड़ा का ज्ञान,
मेरे जीवन की कई उलझनों में भी दिखता कुछ समाधान।
यह अनुपम काव्य मैंने शुरू किया, और इसे पूर्ण करूँगा,
संभव है कि यह विचार ही बदल दे, एवं नई दिशा दिखाए।
कामायनी पढ़कर अनुभूत होता, जीवन का अद्भुत प्रवाह,
चिन्ता, आशा एवं श्रद्धा से ही है, मानवता का सच्चा निर्वाह।
पवन कुमार,
26 दिसंबर 2024 वीरवार, समय रात्रि 21:28 बजे
(मेरी महेंद्रगढ़ (हरि०) डायरी दि० 6 मई 2015, बुधवार, 9:06 बजे प्रातः, से)
Great work 👍
ReplyDeleteShailendra Sharma, Rtd. DG, CPWD : आपकी इस एक और रचना के लिए अनेकों बधाईयां, पवन। 👌👍
ReplyDeleteChandra Mauli Tiwari, CES : Great work dear 👍👍
ReplyDeleteकामायनी का मूल भावअत्यंत प्रयास पूर्वक अध्ययन कर लिखा है। आपका प्रयास सराहनीय है। आपको बहुत-बहुत साधुवाद।
ReplyDeleteआपकी लगन और कार्य अनूठे हैं , प्रणाम
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