नववर्ष-संदेश : एक स्मृति
नए वर्ष में एक बार फिर लिखने का प्रयास
कर रहा हूँ। समय सीमित है, और कार्यालय के लिए तैयार भी होना है, किंतु इस नववर्ष के
आगमन पर विचारों को शब्दों में बाँधने का मन हुआ। नववर्ष हमेशा नई उम्मीदों और ऊर्जा
का संचार करता है। कल तक जो भविष्य था, वह अब वर्तमान बनकर हमारे सामने खड़ा है। हम
सभी इस नए साल का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे। लेकिन अब, जब यह आ गया है, तो यह प्रश्न
उठता है—क्या हमने इसे विशेष बनाने के लिए कुछ सोचा है? क्या इसके लिए कोई ठोस उम्मीदें
हैं? और क्या इसे सार्थक बनाने का कोई संकल्प लिया है?
नूतन वर्ष असीम संभावनाएँ लेकर आता है।
लेकिन यह हम पर निर्भर करता है कि हम इसे कितना सार्थक बना पाते हैं। जो बीत गया, वह
हमारा था। वर्तमान भी हमारा है। और भविष्य भी हमारा होगा—इस विश्वास के साथ हमें आगे
बढ़ना चाहिए। लेकिन भविष्य का स्वरूप इस बात पर निर्भर करेगा कि हम अपने आज को कैसे
जीते हैं। वास्तव में, भविष्य जैसी कोई वस्तु नहीं होती। यह सब कुछ वर्तमान ही है।
यदि हम वर्तमान को उसकी संपूर्णता और जीवंतता से भर दें, तो कोई कारण नहीं कि भविष्य
उज्ज्वल न हो।
हर क्षण को, उसके भूत बनने से पहले, चेतना
और ऊर्जा से भर दें। जब प्रत्येक क्षण पूर्णता से भरा होगा, तो जीवन भी उसी पूर्णता
का अंश बन जाएगा। यही जीवन की कला है। इसे समझना और आंतरिक द्वंद्व या हिचकिचाहट को
शांत करना सरल नहीं है, लेकिन समय और अवसर को गहराई से समझने का प्रयास करना चाहिए।
दूसरों के समक्ष दार्शनिक दिखने के बजाय, मनन-प्रवृत्ति अपनानी चाहिए। अपनी शक्तियों
को संगठित करें और सार्थक उद्देश्यों में लगाएँ।
जीवन की योजना बनाना और इसके आयामों को
सुंदर बनाना हमारी जिम्मेदारी है। संसार के शुभतर निर्माण हेतु विचार करें और इसे क्रियाशीलता
का भाग बनाएं। पूर्णता के ज्ञानार्थ आत्म को भी पूर्ण बनाना होगा। प्रभु के सब गुणों
का वर्णन करना सरल नहीं है, लेकिन हर किया गया प्रयास हमें उनके समीप ले जाता है। एक
पूर्णता का अहसास, कुछ उत्तम कर दिखाने का अरमान, सभी की बेहतरी की उत्सुकता,
और एक शैली जो चारों ओर मुस्कान बिखेरे—यही जीवन को सार्थक बनाता है।
एक ऐसा मनोचरित्र जो गहन विचारशीलता को
जन्म दे, और एक उद्देश्य जो जीवन-मौलिकता को समझने का मार्ग प्रशस्त करे—यही हमारे
प्रयासों का सार होना चाहिए। जो भी कार्य हमें सौंपा गया, उसे उत्कृष्टता के साथ पूरा
करना ही हमारा धर्म है। इन विचारों के साथ, नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ। मन सदा सकारात्मक
विचारमय हों, और प्रयास कभी अल्प न हों। शीघ्र चिर-प्रतीक्षित लक्ष्य मिले, और स्वजनों
से पुनः जुड़ सको। माता-पिता, भाई-बहन, एवं सभी प्रियजन सदा प्रसन्न रहें। मित्रों
में समझदारी, खुशहाली एवं आनंद बना रहे।
पुनः एक बार नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ। धन्यवाद।
पवन कुमार,
ब्रह्मपुर, ०१ जनवरी २०२५, बुधवार समय ९:०२ बजे प्रातः(मेरी शिलोंग
डायरी ३ जनवरी २००२, समय ९:१५ बजे प्रातः से)
सिद्धांत गौतम, अधिवक्ता: अति उत्तम विचार, कुदरत अपने असीम समय के साए में सभी को अरमानों की उड़ान का खुला आकाश प्रदान करे। सबका मंगल हो।
ReplyDeleteNaval Singh : सर,
ReplyDeleteआपके नव वर्ष संदेश को दुबारा पढ़ा।
शब्द नहीं मिल रहा कि कैसे बताऊं कि आप इतने कम समय में जीवन के इतने गूढ़
बातों पर कैसे प्रकाश डाल पाए।
बहुत अच्छा लगा।
Satish Saxena: प्रभावशाली विचार , हिंदी भाषा आपके योगदान को याद रखेगी !
ReplyDeleteप्रणाम सर 🙏
Manish Goel : Bahut khoob sir
ReplyDeleteInspiring.
Bharat Sharma: शुभकामनाओं की इस बाढ़ में अपने अपने हिस्से की शुभता ढूंढ रही भीड़ में ये शौभाग्य और संयोग ही होता है जब किसी का मैसेज पढ़ते या भेजते समय हृदय भावनाओं से भर उठे ! बाक़ी तो सब कट पेस्ट है, निरर्थक श्रम है !
ReplyDeleteविचित्र लगता है जब अंग्रेज़ी कैलेंडर की रीतियों में संस्कृत के श्लोक जोड़कर, वैदिक मंत्रों को जोड़ जाड़कर धड़ल्ले से प्रेषित की जा रही शुभेच्छाओं को देखता हूँ ! ईसाईयों के हैपी न्यू इयर का भारतीयतरण बिल्कुल वैसा ही है जैसे लीनियस नें पूरी दुनिया के साथ किया था - लैटिनाइजेशन ! ईसाई धर्म को औपचारिक रूप से स्थापित करने और इसे धार्मिक आयोजनों और त्योहारों के लिए मानक बनाने के उद्देश्य से तैयार किया गया ये रोमन, जूलियन, ग्रेगोरियन कैलेंडर, साउथ इंडिया का वो डोसा है जो पंजाब आते आते पनीर डोसा बन चुका है ! डोसा कम, पनीर ज़्यादा !
मैं तो एकदम निरपेक्ष भाव से इस मस्त मिक्सचर का आनंद ले रहा हूँ और आपसे भी आनंदित होने को कह रहा हूँ ! ग्लोबल विलेज में ये मिक्सचर तो बनते ही रहेंगे ! वो गंगाजल वाला डायलॉग है न कि “ई तो साला होना ही था” !
नववर्ष हमारे मन में स्थापित किये गये तथ्य हैं ! कैलेंडर की व्यवस्था विक्रमादित्य नें भी की थी, अंग्रेजों नें भी, और भी कइयों सभ्यताओं नें की ! मौलिक वो था, जिसने शुरुआत की ! बाद के लोगों नें तो एक व्यवस्था को दूसरी व्यवस्था से प्रतिस्थापित करने के टार्गेटेड प्रयास किये ! बात ये है कि समय का प्रवाह अविराम है ! नववर्ष की मौलिकता के पीछे का तर्क समझने की कोशिश करते हैं ! ये मील के पत्थर की जैसी अवधारणा है ! कि ठहर जाओ ! एक बार फिर से विस्तृत समीक्षा कर लो ! कुछ जोड़ लो, कुछ कम कर लो ! कालखंड की नव निर्मित आवश्यकताओं को समाहित कर लो ! नई पटकथा की रूपरेखा को अंतिम रूप दे दो ! और फिर से शुरू हो जाओ पूरे उत्साह के साथ, नये बनाये प्रारूप के अनुसार !
अनवरत यात्रा की नई योजनाओं के लिए अनेक अनेक शुभकामनाएँ !!
सादर,