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Sunday, 26 January 2025

जीवन की राहें

जीवन की राहें


 कैसे करें ये बात सभी, शब्द कहीं रुक ही जाते हैं।

खुद को पूरा खोल पाए, मन के द्वार बंध जाते हैं।

 

आशा की डोर कहाँ छुपी, इसका भेद कोई समझा।

भीतर हर्षाया हर कोई, पर सत्य कब किसने है छुआ।

क्या सार्थकता आने की ही यहाँ, ये प्रश्न सदा अधूरा है।

जीवन तो नाव-सा डोल रहा, किनारा अब तक दूर है।

 

बहुतेरे आए, बहुतेरे गए, कुछ ने अमर कहानी लिखी।

बाकी तो मात्र समय गँवा, कोई राह नहीं सुलझा पाई।

मन-गंगा का छोर अनजाना है, गहराई से सब दूर रहे।

परिभाषा तक जो पहुँचे , वे अर्थ की बात भी कहें।

 

भोले मन और सादे जीवन हैं, कई रंग आए और गए।

सब छूट गए पर रंग जो गहराया नहीं, उसी से बंधे रहे।

जीवन-उपयोग हुआ अधूरा, संभावनाएँ अब भी छुपी।

भीतर झाँकें, सच को समझें, और हर राह यहाँ खुली।

 

दुनिया बदलेगी, राहें भी, जब खुद को हम पहचानेंगे।

अपनी संगत में संवाद करें, खालीपन को भर देंगे।

जो काल बीता वह  लौटेगा, पर सपने नए बुनने होंगे।

किस्मत-द्वार खुलेंगे तभी, जब सत्य का दीप जलाएँगे।


 पवन कुमार, 

ब्रह्मपुर (ओडिशा), 26 जनवरी 2025, रविवार, समय 12:32 म० रात्रि 

 (मेरी नई दिल्ली डायरी, 2 नवंबर 2012 से)

 

1 comment:

  1. जीवन की यात्रा पर एक बहुत उत्तम लेख ...विजय उप्पल

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