मरुधरा के अनुभव: जीवन-सौंदर्य
उच्च प्रज्ञान से प्रकृति-रमणीयता का बोध, यदि मन करे गहन चिंतन।
कालिदास एवं बाणभट्ट सम निरूपण हेतु, सरस्वती माता को है वंदन।
वे तो उच्चतम श्रेणी के कवि थे, पवित्र दृष्टि से निरंतर निहार सके विश्व,
तज कर मन-कलुष, पवित्र भावों से ही भरते हैं हर चरित्र का अंतर्मन।
शारदा मातृ की कृपा से उनका सौंदर्य लेख-वाणी से होता प्रस्फुटित,
आश्चर्य, नर से अत्युत्तम निर्माण संभव जो साधारणतया विलय प्रतीत।
प्रकृति-सौंदर्य, सूर्य-चंद्र, व्योम, नदी, मेघ, पृथ्वी-मरुत एवं द्रुम-पादप,
शुक-सारिका, चक्रवाक, सारस, कालहंस, वकुल और क्रोञ्च-कोकिल।
उनके काव्य में बहु वन्य जीवन, अद्भुत पुष्प-वृक्षों का सजीव चित्रण,
प्रत्येक युग्म से जीवन झलकता, पहुँचता सौंदर्य की चरम सीमा तक।
गज-सिंह, वराह-गो, मृग-अश्व, वृषभ-कपि, मीन व अनेक जलथल चर,
उनके कर-लेखनी से शोभित होकर, पाठक-गण को कर देते हैं मुग्ध।
मन में पवित्रतम भाव संजोते, उनकी उपमाओं में महेश जाते हैं उतर,
कुमार-संभव में निर्मल उमा-चरित्र का विवरण, परं-भाव से हृदयांगम
उनकी उपमाएँ, मनोभाव व शिल्प, मानवता को देते हैं परम उद्देश्य।
यह दर्शन केवल सृजन नहीं, अपितु जीवन-दर्शन का एक गहन भाव,
जहाँ आत्मा प्रकृति संग एकाकार होती, एवं सृजन का दिखता आधार।
आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी की 'बाणभट्ट की आत्मकथा' का अध्ययन,
अति मृदुल चरित्र-चित्रण, सजीव मानव भावनाओं का उच्चतम प्रयोग।
वर्तमान मनुज तो अल्प-सोच में उलझा, सार्वभौमिक भावों से अनभिज्ञ,
यदि निज दृष्टि को उच्च पटल पर रखे, तो सौम्यता- विस्तार भी संभव।
उज्ज्वल चरित्रों का तपस्या करना भी, सामान्य- जन हितार्थ ही आदर्श,
कैसे स्वयं को वे निर्मल रख सकें, ऋषि- सम जीवन से मिलता आनंद।
यदि चरित्रों में कहीं कटुता-कलुषता है, तो भी उद्देश्य तो है ऊर्ध्वगामी,
हर पात्र के मस्तिष्क की उच्च सोच, सौंदर्य-बोध व दिशा है प्रेरणामयी।
तुच्छ-बिंदुओं से समय-ऊर्जा रक्षा, अवलोकन बस अन्य का पवित्र मानस,
अमुक का उद्देश्य सुधारवादी हो, विवेचना-समीक्षा का हो वही मूल एक।
मनन नर-दुर्बलताओं में नहीं अटके, प्रयोगे निहित कुंडलिनी शक्ति सुप्त,
उसे विकसित करना वृहद-कल्याणार्थ, अमापनीय है प्रत्येक जीव-मूल्य।
मरीचिमाली-रश्मि का पीत सौंदर्य, हरित वृक्ष पर पड़कर अति प्रकाशित,
भिन्न पल्ल्वों पर प्रभावों से अन्यान्य विकिरण, उर हो जाता बहु पुलकित।
नीले गगन में श्वेतिमा-मिलन से उदित व्यापकता, मन-वृद्धि करे अद्भुत,
वे प्रकृति-मातृ के आगोश में, अतः स्वतंत्र होकर ही रच सकते समेकित।
जैसलमेर की मरुधरा में मेरा है यह प्रथम आगमन और परिचय समक्ष,
अबतक मात्र दूरदर्शन, इंटरनेट, पुस्तक, समाचारों से ही था ज्ञान अल्प।
दैव कब वास्तविक मिलन ही करेगा, प्रायः तो नहीं होता है यह चिन्हित,
यदि संपर्क तो आदान-प्रदान होता प्रारंभ, अनुभव स्व-भाग में परिणत।
कल सायं रेत टिब्बों का दर्शन हुआ, सुवर्ण भास्कर-मरीची से प्रभासित,
वामन कद की ही अल्प-वनस्पति, वर्षाजल का अभाव है मुख्य कारण।
यह मात्र एक भूमि नहीं है, अपितु दर्शित संघर्ष-सुंदरता का प्रकृति-मेल,
यहाँ हर कण में जीवन की सच्चाई है, जो बन जाती है बड़ा प्रतीक एक।
ऊँट के कुब्ज-भाग में सवारी-अनुभव, संकोच-भीत त्याग किया स्वीकार,
हिचकोलों में छिपा नया साहसिक अनुभव, अबल-पक्षों को करता प्रबल।
जैसलमेर से धनाना तक का सड़क मार्ग, ले जाता पाकिस्तान-सीमा तक,
सीमा तो कुछ 135 कि० मी०, किंतु हम गए लगभग 50 कि०मी० ही तक।
अधीशासी एम.पी. सिंह और सहायक अभियंता बचन व कालूराम थे संग,
एक अन्य सज्जन दीपक राठी थे, सायं का रोचक अनुभव था स्मृतिबद्ध।
'डेसर्ट स्प्रिंग'-एक साहसी मरुधरा-योजना, पर्यटन-कैंप व मनोरंजन प्रबंध,
कुछ व्यय कर लोग सुविधाओं का लुत्फ उठाते, यहाँ सुख है महत्त्वपूर्ण।
मन तो सदैव चरम नव अनुभव का चाही है, उसी हेतु करता सतत प्रयत्न,
एक स्थिति में तो असहज हो जाता, सर्व भ्रमण-प्रयास अनुपम हेतु ही कृत।
एक नारी-रूप में पुरुष नृत्यांगना, परिचय क्वीन हरीश की नृत्य-अदाओं से,
सहज चरित्रों को निपुणता में ढाल, कला समाज को नया दृष्टिकोण देती है।
अपने नृत्यों में सबको सम्मिलित करना, एक शिक्षक सी लगती है भूमिका,
केरल के मोहिनीयट्टम चरित्र सा मनोहारी रूप, सबके मन में स्मित भरता।
कलाकारों की नृत्य-गायन प्रस्तुति संग था, रात्रिभोज का एक रोचक अनुभव,
पर सकल लक्ष्य तो एक लयबद्ध हो, निकले कुछ कालि-बाण सा अद्भुत।
प्रकृति और संस्कृति का यह मधुर मिलन, मात्र नहीं है एक बाहरी अनुभव,
मन को पूरा झकझोर देता है यह, पर जीवन को नई दिशा देने का अवसर।
यह मरुधरा, जो बाहर से मात्र स्थिर प्रतीत होती, समय-प्रवाह है दिखाती,
प्रकृति, कला और आत्मचिंतन का संगम है, जो प्रेरणा का स्रोत बन जाती।
यह राजस्थानी-मरुधरा, मात्र रेत-भूमि नहीं, बल्कि है शुभ जीवन-प्रतीक,
हर मन में एक नई उमंग और ऊर्जा का जगेगा इससे अति मधुर संदेश।
पवन कुमार,
ब्रह्मपुर (ओडिशा), 10 जनवरी 2025, शुक्रवार, समय 11:40 बजे रात्रि
(लेखन, केलोनिवि अथिति गृह, जैसलमेर (राज.), दि० 22 जनवरी 2016, शुक्रवार, 7:20 बजे प्रातः से)
कालिदास एवं बाणभट्ट सम निरूपण हेतु, सरस्वती माता को है वंदन।
वे तो उच्चतम श्रेणी के कवि थे, पवित्र दृष्टि से निरंतर निहार सके विश्व,
तज कर मन-कलुष, पवित्र भावों से ही भरते हैं हर चरित्र का अंतर्मन।
शारदा मातृ की कृपा से उनका सौंदर्य लेख-वाणी से होता प्रस्फुटित,
आश्चर्य, नर से अत्युत्तम निर्माण संभव जो साधारणतया विलय प्रतीत।
प्रकृति-सौंदर्य, सूर्य-चंद्र, व्योम, नदी, मेघ, पृथ्वी-मरुत एवं द्रुम-पादप,
शुक-सारिका, चक्रवाक, सारस, कालहंस, वकुल और क्रोञ्च-कोकिल।
उनके काव्य में बहु वन्य जीवन, अद्भुत पुष्प-वृक्षों का सजीव चित्रण,
प्रत्येक युग्म से जीवन झलकता, पहुँचता सौंदर्य की चरम सीमा तक।
गज-सिंह, वराह-गो, मृग-अश्व, वृषभ-कपि, मीन व अनेक जलथल चर,
उनके कर-लेखनी से शोभित होकर, पाठक-गण को कर देते हैं मुग्ध।
मन में पवित्रतम भाव संजोते, उनकी उपमाओं में महेश जाते हैं उतर,
कुमार-संभव में निर्मल उमा-चरित्र का विवरण, परं-भाव से हृदयांगम
उनकी उपमाएँ, मनोभाव व शिल्प, मानवता को देते हैं परम उद्देश्य।
यह दर्शन केवल सृजन नहीं, अपितु जीवन-दर्शन का एक गहन भाव,
जहाँ आत्मा प्रकृति संग एकाकार होती, एवं सृजन का दिखता आधार।
आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी की 'बाणभट्ट की आत्मकथा' का अध्ययन,
अति मृदुल चरित्र-चित्रण, सजीव मानव भावनाओं का उच्चतम प्रयोग।
वर्तमान मनुज तो अल्प-सोच में उलझा, सार्वभौमिक भावों से अनभिज्ञ,
यदि निज दृष्टि को उच्च पटल पर रखे, तो सौम्यता- विस्तार भी संभव।
उज्ज्वल चरित्रों का तपस्या करना भी, सामान्य- जन हितार्थ ही आदर्श,
कैसे स्वयं को वे निर्मल रख सकें, ऋषि- सम जीवन से मिलता आनंद।
यदि चरित्रों में कहीं कटुता-कलुषता है, तो भी उद्देश्य तो है ऊर्ध्वगामी,
हर पात्र के मस्तिष्क की उच्च सोच, सौंदर्य-बोध व दिशा है प्रेरणामयी।
तुच्छ-बिंदुओं से समय-ऊर्जा रक्षा, अवलोकन बस अन्य का पवित्र मानस,
अमुक का उद्देश्य सुधारवादी हो, विवेचना-समीक्षा का हो वही मूल एक।
मनन नर-दुर्बलताओं में नहीं अटके, प्रयोगे निहित कुंडलिनी शक्ति सुप्त,
उसे विकसित करना वृहद-कल्याणार्थ, अमापनीय है प्रत्येक जीव-मूल्य।
मरीचिमाली-रश्मि का पीत सौंदर्य, हरित वृक्ष पर पड़कर अति प्रकाशित,
भिन्न पल्ल्वों पर प्रभावों से अन्यान्य विकिरण, उर हो जाता बहु पुलकित।
नीले गगन में श्वेतिमा-मिलन से उदित व्यापकता, मन-वृद्धि करे अद्भुत,
वे प्रकृति-मातृ के आगोश में, अतः स्वतंत्र होकर ही रच सकते समेकित।
जैसलमेर की मरुधरा में मेरा है यह प्रथम आगमन और परिचय समक्ष,
अबतक मात्र दूरदर्शन, इंटरनेट, पुस्तक, समाचारों से ही था ज्ञान अल्प।
दैव कब वास्तविक मिलन ही करेगा, प्रायः तो नहीं होता है यह चिन्हित,
यदि संपर्क तो आदान-प्रदान होता प्रारंभ, अनुभव स्व-भाग में परिणत।
कल सायं रेत टिब्बों का दर्शन हुआ, सुवर्ण भास्कर-मरीची से प्रभासित,
वामन कद की ही अल्प-वनस्पति, वर्षाजल का अभाव है मुख्य कारण।
यह मात्र एक भूमि नहीं है, अपितु दर्शित संघर्ष-सुंदरता का प्रकृति-मेल,
यहाँ हर कण में जीवन की सच्चाई है, जो बन जाती है बड़ा प्रतीक एक।
ऊँट के कुब्ज-भाग में सवारी-अनुभव, संकोच-भीत त्याग किया स्वीकार,
हिचकोलों में छिपा नया साहसिक अनुभव, अबल-पक्षों को करता प्रबल।
जैसलमेर से धनाना तक का सड़क मार्ग, ले जाता पाकिस्तान-सीमा तक,
सीमा तो कुछ 135 कि० मी०, किंतु हम गए लगभग 50 कि०मी० ही तक।
अधीशासी एम.पी. सिंह और सहायक अभियंता बचन व कालूराम थे संग,
एक अन्य सज्जन दीपक राठी थे, सायं का रोचक अनुभव था स्मृतिबद्ध।
'डेसर्ट स्प्रिंग'-एक साहसी मरुधरा-योजना, पर्यटन-कैंप व मनोरंजन प्रबंध,
कुछ व्यय कर लोग सुविधाओं का लुत्फ उठाते, यहाँ सुख है महत्त्वपूर्ण।
मन तो सदैव चरम नव अनुभव का चाही है, उसी हेतु करता सतत प्रयत्न,
एक स्थिति में तो असहज हो जाता, सर्व भ्रमण-प्रयास अनुपम हेतु ही कृत।
एक नारी-रूप में पुरुष नृत्यांगना, परिचय क्वीन हरीश की नृत्य-अदाओं से,
सहज चरित्रों को निपुणता में ढाल, कला समाज को नया दृष्टिकोण देती है।
अपने नृत्यों में सबको सम्मिलित करना, एक शिक्षक सी लगती है भूमिका,
केरल के मोहिनीयट्टम चरित्र सा मनोहारी रूप, सबके मन में स्मित भरता।
कलाकारों की नृत्य-गायन प्रस्तुति संग था, रात्रिभोज का एक रोचक अनुभव,
पर सकल लक्ष्य तो एक लयबद्ध हो, निकले कुछ कालि-बाण सा अद्भुत।
प्रकृति और संस्कृति का यह मधुर मिलन, मात्र नहीं है एक बाहरी अनुभव,
मन को पूरा झकझोर देता है यह, पर जीवन को नई दिशा देने का अवसर।
यह मरुधरा, जो बाहर से मात्र स्थिर प्रतीत होती, समय-प्रवाह है दिखाती,
प्रकृति, कला और आत्मचिंतन का संगम है, जो प्रेरणा का स्रोत बन जाती।
यह राजस्थानी-मरुधरा, मात्र रेत-भूमि नहीं, बल्कि है शुभ जीवन-प्रतीक,
हर मन में एक नई उमंग और ऊर्जा का जगेगा इससे अति मधुर संदेश।
पवन कुमार,
ब्रह्मपुर (ओडिशा), 10 जनवरी 2025, शुक्रवार, समय 11:40 बजे रात्रि
(लेखन, केलोनिवि अथिति गृह, जैसलमेर (राज.), दि० 22 जनवरी 2016, शुक्रवार, 7:20 बजे प्रातः से)
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