तमसो मा ज्योतिर्गमय
प्रभु से प्रार्थना है कि सबको सद्बुद्धि दें और हृदय में एकता व विशालता का भाव जगाएं। माना कि इस लघु जीवन में हम साधारण प्राणियों के लिए इसे पूरी तरह समझ पाना असंभव है। बहुआयामी जीवन-रूपों को उनकी संपूर्णता में देख पाने में भी हम अक्सर असफल रहते हैं। जीवन की अनेक परतें इतनी गहरी हैं कि उनका आभास तक नहीं हो पाता। फिर भी, समय की धारा यह सतत प्रवाहमान जीवन हमें हर पल, हर क्षण अपने साथ बहाए लिए जा रही है। माना कि हम तट-दृश्यों को देखने में भी असमर्थ रहते हैं। यह विचार आता है कि जीवन से हमारी अपेक्षाएँ क्या हैं और क्या यह हमारे लिए सार्थक हो सका है? क्या हम अपनी प्राथमिकताओं को समझ सके हैं या मात्र एक स्वप्निल अवस्था में जी रहे हैं?
पुस्तकें तो ज्ञान से भरी हैं,
लेकिन क्या वह हमारा जीवन-अंश बन पाई हैं? जब हम लिखने बैठते हैं, तो ऐसा लगता है जैसे
शून्य-अवस्था में प्रवेश कर रहे हों। लेखनी अपने आप रास्ता बना लेती है और ऐसा प्रतीत
होता है कि हम महज एक माध्यम हैं। यह तभी चलती है जब स्वयं चलना चाहती है। हमारे हाथ
और कागज दोनों उसकी प्रतीक्षा करते रहते हैं। जैसे कोई सागर के किनारे बैठकर उसके प्रवाह
में अनंतता का अनुभव करना चाहता है, वैसे ही यह कागज भी संभावना-अन्वेषण के लिए व्याकुल
रहता है।
हम सभी जीवन को विस्तृत करना
चाहते हैं—चाहे वह ज्ञान, सामर्थ्य, या रूप में हो। हर कोई सर्वशक्तिमान बनने की आकांक्षा
रखता है। जीवन-तत्व बहुत सूक्ष्म है। जितना इसे समझने का प्रयास किया जाए, यह उतना
ही गहन और रहस्यमय हो जाता है। सर्वत्र समानता-भाव दिखाई देता है। सजीव और निर्जीव
का भेद भी तुच्छ लगने लगता है। यही समानता-भाव हमें सिखाता है कि हर जीव-तत्व अपने
भीतर एक ही ऊर्जा संजोए हुए है।
हमारी साधना प्रायः सतही होती
है, क्योंकि गहराई तक जाने के लिए साहस और शक्ति की आवश्यकता होती है। जैसे गहरे समुद्र
में छिपे मोती तक पहुँचने के लिए लहरों से संघर्ष करना पड़ता है, अंधेरे का सामना करना
होता है और सटीक दिशा का पता लगाना पड़ता है, वैसे ही जीवन की गहराई में उतरने के लिए
हमें अपनी ऊर्जा और इच्छाशक्ति को संगठित करना होता है। यह विचार उपनिषद की पंक्ति 'तमसो
मा ज्योतिर्गमय' की याद दिलाता है। अंधकार से प्रकाश की ओर बढ़ने का प्रयास
ही तो जीवन का सार है। यह सभी के लिए प्रासंगिक है, क्योंकि प्रकाश की ओर बढ़ना आत्मा
की स्वाभाविक प्रवृत्ति है। दिशाहीन और बिखरी जीवन-ऊर्जा को संगठित करना 'समाधि' का
सार है। यह विकिरित किरणों को एक लेंस के माध्यम से अग्निपुंज में बदलने जैसा है। इस
संगठित ऊर्जा से जीवन में नए आयाम प्राप्त हो सकते हैं।
प्रत्येक जीवन-पहलू में सुधार
की संभावना है। यह हम पर निर्भर करता है कि अपने प्रयासों को कितना सार्थक बना पाते
हैं। भले ही हमारे प्रयास टकराएँ या विरोधाभासी लगें, 'पूर्णता' की ओर बढ़ने का प्रयास
हर किसी के भीतर होता है। हर दिन एक नई संभावना लेकर आता है—जैसे सूरज का उगना, जो
हर अंधकार को मिटाने का वादा करता है। जब हम इस वादे को अपने जीवन में अपनाते हैं,
तो हर दिन नए अवसरों से भर जाता है।
इसके लिए हमें कुछ प्रयास करने
होंगे। एक सरल उपाय है—हर दिन थोड़ी देर ध्यान करें, अपनी प्राथमिकताओं
को लिखें और उन पर विचार करें। एक अन्य प्रभावी उपाय है—प्रातः अपने प्रति आभार
व्यक्त करें और उन छोटी-छोटी सफलताओं को याद करें जो हमें प्रेरित करती हैं।
यह छोटा-सा अभ्यास हमें अपनी ऊर्जा को सही दिशा में केंद्रित करने में सहायक बन सकता
है। जब मानव अपनी अज्ञानताओं को स्वीकार करता है और सुधार के प्रयास करता है, तो वह
सामर्थ्य-वर्धन में सक्षम होता है। जब ऊर्जा सही दिशा में लगती है, तो यह न केवल हमें
बल्कि हमारे आसपास के लोगों को भी सकारात्मक रूप से प्रभावित करती है।
यह सत्य है कि मानव-जीवन में
अपार संभावनाएँ छिपी हैं। यदि सुप्त शक्तियाँ जागृत हों और उचित दिशा में केंद्रित
हों, तो जीवन न केवल सार्थक बल्कि सुंदर और प्रेरणादायक हो सकता है। हर दिन अपनी ऊर्जा
को जागृत कर, उद्देश्य की ओर बढ़ने का प्रयास ही जीवन का सर्वोत्तम अर्थ हो सकता है।
जीवन की सबसे बड़ी सौगात उसकी अनंत संभावनाएँ हैं। जब हम इन्हें पहचानते हैं और उनका
उपयोग करते हैं, तो न केवल हमारा जीवन बल्कि पूरा समाज भी उज्ज्वल बनता है। जब हर व्यक्ति
अपनी ऊर्जा सकारात्मक दिशा में लगाएगा, तभी समाज और संसार में वास्तविक परिवर्तन संभव
होगा। यह प्रयास ही हमारे संसार को और बेहतर बनाएगा।
इन्हीं शुभकामनाओं के साथ।
पवन कुमार,
ब्रह्मपुर (ओडिशा), 4 जनवरी 2025, शनिवार, समय 9:08 बजे
सायं
(मेरी नई दिल्ली डायरी दि० 21 जनवरी 2007, रविवार, समय: 7:10 सायं से)
Very nice sir
ReplyDeleteRavindra K Pandey. आपकी रचनाएं पढ़कर हृदय स्पर्शी स्पंदन की अनुभूति महसूस हुई है। मैं ईश्वर का आभार मानता हूं कि मुझे आपका आशीर्वाद मिला है।
ReplyDeleteआदर सहित
🙏🏻🙏🏻
Bhawana Tripathi : Bahut achha likha hai 🙏
ReplyDeleteAap kaise hain Sir
Bharat Sharma: वृक्षों का जीवन: एक वृक्ष अपने बीज से उगने से लेकर बढ़ने, फल देने और अपने वृक्षों को अगली पीढ़ी तक बढ़ाने के लिए निरंतर जीवन की प्रक्रिया में होता है। वृक्षों के जीवन से हमें प्रकृति के साथ अनुरूपता, प्रगति और निरंतरता का संदेश मिलता है।
ReplyDeleteपशुओं का जीवन: पशुओं की जीवन प्रक्रिया में जन्म, प्रजनन, पोषण, संवर्धन और मृत्यु शामिल होती है। पशुओं का जीवन हमें संयम, सामर्थ्य और संघर्ष की महत्वपूर्णता का ज्ञान देता है।
मानव जीवन: मानव जीवन में जीने का तात्पर्य विचार, भावनाएं, अनुभव, संघर्ष, संघटन, सम्प्रेषण और समाज के साथ संघर्ष आदि से होता है। मानव जीवन हमें संघर्ष का महत्व, समाजी बंधन, प्रेम, उत्साह, संवेदनशीलता और उद्धार की प्रक्रिया का अनुभव कराता है।
इन उदाहरणों के माध्यम से समझाया जा सकता है कि जीवन एक निरंतर चलने और बदलते रहने वाली प्रक्रिया है, जो हमें संघर्ष करने, प्रगति करने और सभी चरमों को अनुभव करने की क्षमता प्रदान करती है।
Dineshwar Gaur: Absolutely empowering sir
ReplyDelete🙏 Sir great thoughts
ReplyDeleteMrs. (Dr.) Sukhvarsha Chopra: Very touching splendor of nature and Divinity expressed in your writing Pawanji ✍️ Warmest regards
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