चलना तो फिर भी होगा,
चाहे प्रयोजन का एकदम ज्ञान न हो भले ही
शिथिलता से तो मात्र
हानि ही है, गतिशीलता तन-मन स्वस्थ रखती।
कलम-नोक भी शुरू में
लड़खड़ाती, डगमगाते से पग नवजात हिरण के
मन बाह्य कपाट बंद कर
लेता, जैसे कछुआ स्व को सिमेटता है खोल में।
बाहरी कारक माना अनुपस्थित
हैं, तो भी साजो-सामान सहेजना ही होता
लघु आयाम भी समय-ऊर्जा
माँगते, ऐसा न कि सोचा व महाकाव्य फूटा।
ओ राही मनुवा, यह दिशा-भ्रांति
नहीं, अपितु गतिमानता की एक प्रेरणा
मन में एक चेतन संघर्ष
चलना ही तो, फिर प्रतीक हैं बड़ी जीवंतता का।
इस व्यतीत होने में
ही तत्व खोजना, असल में लक्ष्य-सार है ग्रहण करना
प्रारम्भ तो सदा किञ्चित
थुलथुल ही होता, ऊर्जा मिली तो बढ़ निकलेगा।
प्रात: काल तो सब आवरणों
से मुक्त सा, जैसा भी सत्य है वही चित्रित होता
न कोई अतिश्योक्ति या
अल्पता ही, मात्र एक वृहद-मिलन का भाव होता।
यह नहीं कोई परमानुभूति,
बस विषम युक्ति या मित्रता-शत्रुता से विषय होते
निज को टटोलता कि क्या
कुछ असल जमा-पूँजी, या यूँ ही शोर हो फैलाए।
जब समय तो उपलब्ध है
किन्तु साधन नदारद, क्या बनाऐं और गठन करें
जब बुद्धि शिथिल है,
न कोई प्रयोजन, अब्दुल्ला दीवाना बेगानी शादी में।
जब पूर्वानुभव भी साथ
नहीं देता, दशा ऐसी आज खोजा व आज ही खाए
मूर्तरूप आत्म दर्शन
भी नहीं होता, विडंबना जीवन को कैसे श्रेष्ठ बनाऐं।
एक अहं-भाव भी मन में
न किञ्चित, कि दंभ करूँ निज उपलब्धियों का
आयु-वृद्धि एक स्वाभाविक
प्रक्रिया है, आऐ हो तो कुछ किया भी होगा।
जगत तो अपनी गति से
चल रहा है, कुछ काल हेतु एक पात्र हो तुम भी
निर्देशक द्वारा दत्त
अभिनय को करो, साधुवाद है भला किया हो यदि।
किन्तु आ तो गए हैं
इस जीवन में, पर कोई सुघड़ता-युक्ति न सीखी
बस यूँ ही कुछ सामान
छितरित, योजना भी नहीं बनाई व्यवस्था की।
हाँ, कुछ बुद्धि-उपकरण
मिला है, देख-समझकर प्रयोग सीखो करना
पर विश्व बड़ा, हम अत्यल्प,
कैसा नखरा ही, नव-सर्जन तो न किया ?
क्या यह चिंतन या चित्त-भ्रान्ति,
कौन अति-सूक्षम अंतर ही समझाए
दूरी स्वयं की अपने
ही मन से, फिर कौन माँझी आकर पार लगाए ?
चक्षु माना खुले भी
हों, अति निकट-सहज का ही कुछ होता प्रकटन
तथापि आत्म-जिजीवाषा
टिकने न देती, झझकोरे कि निकलो बाहर।
क्या दर्शन है मनुष्य-मन
का ही, कैसे फिर महानुभव प्रकट हैं हो जाते
कैसे बड़ी अवधारणाऐं
निर्मित, कौन बुद्धि कोष्टक संपर्क-पथ दिखाते।
कैसे सब ज्ञानेंद्रियाँ
संग काम हैं करती, अपना सम्पूर्ण निचौड़ डालती
सहजता हेतु संघर्ष,
और ऐश्वर्य- विश्राम, विजय-शांति मुफ्त न मिलती।
दर्शन-शास्त्र में महद
कार्य हुआ, हर विषय के अनेक अध्याय-विचारक
आम नर घर-खेत, धंधों
में ही व्यस्त, मन को खपाता है उठाए कुछ ध्वज।
कवि भी अपनी पुस्तिका-कलम
लेकर, जो मन में आया लिखता ही जाऐ
चाहे स्वयं समझ न आए,
पर महत्तम उत्तम सिद्धता में ही ऊर्जा लगाऐ।
जो कुछ कर व कह दिया
उचित ही, भाव कहाँ से आता कौन ही प्रेरणा
क्यों निज को बहुत धीमान
मानने लगते, ज्ञात है बहुत लघु ही तव सीमा।
कौन सब तो विद्या-स्वामी
बन सकते, किसका दृष्टिकोण अति-विशाल है
और बस शुभ निर्णय ले
सकता, एक निष्पक्ष-समेकित, समन्वित भाव से।
महद समुद्र-मंथन अतीव
दुष्कर, कितनी ऊर्जा चाहिए और साथी हो कौन
यह विचार ही भयावह व
साहस अत्यल्प, न एकता ही कोई करने को यत्न।
प्रबली प्रकृति को निज
ढंग से सहेजना, कितने मस्तिष्क समन्वित माँगता
फिर विचार-मंथन भी कुछ
ऐसा, व साहस-एकांत ही कुछ सांत्वना देता।
लोग जाते हैं कथा-गोष्ठियों
में, दर्शक देखकर वक्ता-मन चहक है उठता
कुछ श्रोताओं का मन
भी सहज गतिशील, चाहे क्षणिक ही उद्विग्न होता।
समुचित प्रेरणा जीवन
को कुंदन बनाने की, कौन गुरू सक्षम देने में ज्ञान
किंतु कोई आत्म-भ्रांति
या व्यर्थ-दंभ से भला न कर सकता, तुम लो मान।
होने दो कुछ बुद्ध सम
चिंतन, जो प्रकाश स्वयं से निकलना ही समझाए
पिघलने दो लोहा धधकती
भट्टी में, जो लाल होकर स्वयं को है चमकाए।
अग्नि में तपकर कुंदन
बनोगे, प्रगति मात्र सकल वर्तमान भ्रम-स्थिति से
तुम चलते रहो जैसे भी
बन सकता, जो निरंतर रहें वे ही तो पार उतरेंगे।
पवन कुमार,
30 मार्च 2025, रविवार,
समय 12:36 अपराह्न
मेरी महेंद्रगढ़ (हरि०)
डायरी, दि० 11 जून 2015, वीरवार, समय 7:58 प्रातः से
बहुत ख़ूब। आप बधाई के पात्र हैं।
ReplyDeleteबधाइयां, आपकी लिखनी धारदार है
ReplyDeleteBahut Sunder 👌👏🙏🏻
ReplyDeleteबहुत सुंदर लेख। हार्दिक शुभकामनाएँ।
ReplyDeleteRespected sir
ReplyDeleteJivan ki sachchai se abgat kara kar jindagi ko samjhne ki aapne jo varnan kiya hai wo bahut hi khubsurat hai,iske liye aap badhai ke pattra hain.
Aapse anurodh hai ki aap yese hi lekhan se bhavishya mein bhi marg darshana karte raheinge.
Naval Singh : बहुत ख़ूब
ReplyDeleteAnil Kumar Gupta : *तुम चलते रहो जैसे भी बन सकता, जो निरंतर रहें वे ही तो पार उतरेंगे।*
ReplyDeleteवाह वाह, खूबसूरत लेखनी, 💐💐🙏🙏
Anil Kumar Gupta : *तुम चलते रहो जैसे भी बन सकता, जो निरंतर रहें वे ही तो पार उतरेंगे।*
ReplyDeleteवाह वाह, खूबसूरत लेखनी, 💐💐🙏🙏
Pawan Kumar Gupta, CES: बहुत खूब।
ReplyDeleteकुंदन बनने की राह पर चल पड़े हो दोस्त।
हार्दिक शुभकामनाएँ। 💐🙏
Shamshad Khan : Respected sir
ReplyDeleteAnmol bachno hetu bahut bahut dhanyawad🙏🌺🌹🌹💐🌷
Subhash Gupta : Very Nice.Best Wishes.Thanks
ReplyDeletePushpa Tanwar : Very nice 👌 congratulations for books writen by you
ReplyDeleteDr. Sukhvarsha Chopra : Amazing. Superb and inspiring. Very deep. 👏
ReplyDeleteChandan Kumar: Very motivational lines sir
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