ओ मेरी मन-गुंजन, कुछ मृदुल
जीवन-स्पंदन कर दे
वसंत-सुरभि आ, यह
मन-मस्तिष्क पुलकित कर दे॥
बैठा एक असमंजसता में, आकर
कोई पुनः जगा दे
जाऊँ जाग, आऊँ होश, ऐसी कोई
तू ललक जगा दे।
कुंडलिनी सोई पड़ी, उसकी
शक्ति कोई दिखा दे
स्व-पहचान पा जाऊँ, आकर कोई
दर्पण दिखा दे॥
महबूब-मिलन की तमन्ना, कभी
आकर पूरी कर दे
प्रियश्री-मिलन के
हर्ष-अहसास का परिचय करा दे॥
श्रेष्ठ उल्लास-ऊर्जा,
प्रयास-बुद्धि का संयोग करा दे
निरत गतिमान-कर्मठ रहूँ, तू
तन्द्रा को दूर भगा दे।
जीवन का सकारात्मक-जागृत
पक्ष, कोई समझा दे
मन में रहे विवेक-चेतना,
उत्साह को संगी बना दे॥
मैं तेरा व तू मेरा, आ सब
भाँति के भेद ही मिटा दे
सब हृदय-दूरी पटे, सकल जग एक
घर ही बना दे।
मम आकांक्षाओं को पर लगा, सब
भीत दूर भगा दे
दुर्बलता का कर शमन, क्षमता
का आकार बढ़ा दे॥
यूँ नहीं लेटा रहूँ एक शव
सम, जीवन-सार समझा दे
किंकर्त्तव्य-मूढ़ता पूर्ण
हटा, सब-कर्म याद दिला दे।
जीवन सार्थक तो तभी बने,
प्रश्नचिन्ह चित्त से हटा दे
अन्य शेष रहें अहम-प्रश्नों
का भी उत्तर समक्ष ला दे॥
करूँ जीवन-विस्तार, विभिन्न
कलाओं का सार तू दे
श्रेष्ठ साधक बन जाऊँ, पूर्ण
करूँ कुछ तो पसार दे।
10 मई, 2015 समय 16:16 अपराह्न
No comments:
Post a Comment