नवीनीकरण मनन
-------------------------
समय क्या है मात्र घड़ी में देखना, या प्रतिदिन स्वयं को करना पुनरावृत्त
ऋतुऐं बदलती पुनः आ जाती, सूर्य-चंद्र चक्र की आज सी ही वेला प्रस्तुत।
अर्थ कि कल का भी यही ८:२६ प्रातः समय, आ गया ठीक २४ घंटे बाद
पर जो बीत गया वो तो न, कल किसी और मनोदशा में था आज और।
घड़ी का समय तो हर दिन आता, पर जो बीता वह वापस आ सकता न
हाँ अभी यहाँ पृथ्वी विचरित, यदि कोई अन्य दूरस्थ ग्रह से देखना चाहे,
प्रकाश को दूरी के अनुपात में समय लगेगा, उसकी है निश्चित गति एक।
पर जो बीता उसका क्या नवीनीकरण उपाय, अधिक पर्याय तो गोचर न
हाँ हम फोटो-वीडियो लेते, जब देखते तो पुराना समय हो जाता स्मरण।
यदा कदा समक्ष घटित हो रहा, अपनी डायरी-वाक्यों में अंकित कर लेते
पर यह पूर्ण का अत्यल्प भाग, देह में अधिक पूर्ववर्ती आयु न भर सकते।
उपाय क्या समय करबद्ध करने हेतु, पर जो बीत गया कहाँ है अपने बस
विज्ञान भाषा में तो १५ अरब वर्ष पूर्व महाधमाके संग हुआ ब्रह्मांड जन्म।
तभी से समय-अंतराल प्रस्तुत, हाँ धारणाऐं माने तो ब्रह्मांड-आकार वर्धित
दूरियाँ वर्द्धित, कहाँ अंत होगा या सिकुड़न, सुलझनी हैं गुत्थियाँ अनेक।
हमारा इतिहास ज्ञान अप्राचीन, पुरा घटनाओं का बस अनुमान सकते लगा
पर हमने धारणाओं में अति-लघु नर-उदंत अति-प्राचीन युगों में बाँट दिया।
गणना से कालक्रम दिया, भारत में सतयुग-त्रेता-द्वापर व कलियुग अवधारित
वैज्ञानिक तो न, बस युग-पुराण द्रष्टा ने कुछ ज्ञात को बड़े अंशों में विभाजित।
नववर्ष मनाना सुभीता, कुछ महानरों की अमुक समय-घटना भी आधार मानते
उस समय-अवधि को काल मान लेते, जैसे भारत की आज़ादी को ७१ वर्ष गए।
पर समय तो पूर्व भी था, यदि पृथ्वी की वर्ष अवधि मानें तो हो गए १५ अरब वर्ष
अब सबके अपने वर्ष, हमारी वर्ष कल्पना तो टिकी सूर्य के एक परिभ्रमण पर।
यदि हम बुध ग्रह (८८ दिन) पर हों, यही १५ खरब हो जाऐंगे लगभग ६२ अरब
और यदि प्लूटो (२४८ वर्ष) पर हों तो ब्रह्मांड उम्र रह जाएगी ६.०४ करोड़ वर्ष।
फिर हमारी गणना मात्र सूर्य को आधार मानकर, ब्रह्मांड में अनेकानेक तारे पर
दूर ग्रहों में तो दिन-रात दर्शन न, पूर्ण-अंधेरे में सूर्य दिखेगा क्षुद्र नक्षत्र सा एक।
आज हमें थोड़ा बहुत ज्ञान है कि अन्य अधिकांश ग्रहों-उपग्रहों पर नहीं है प्राण
और यदि प्लूटो पर रहना पड़े, तो यही ९:१४ बजे आएगा ६.४ पृथ्वी दिवस बाद।
वृहस्पति मात्र १० घंटे में स्व गिर्द एक चक्र लेता, वहाँ यही २४ घंटे जाते १० बन
वरुण (नेप्चयून) पृथ्वी के १६ घंटे लेता, दिवस-वर्ष अवधि सबके लिए हैं अलग।
हम धरा-वासी इसे ही आधार मानते, सर्व ज्ञान-चक्र अवधारणाऐं इसके हैं गिर्द
अभी कुछ सौ वर्षों में वैज्ञानिक-दार्शनिक ज्ञान एकत्रित, अनेक अभी भी अविज्ञ।
हमारी कल्पना में हैं अनेक देव अवतरित, वे मानव से ही थे बस देव मान लिया
उनके वरिष्ठ को ईश माना और कि समस्त सृष्टि-चक्र उसके आदेश से चलता।
हम प्रतिक्षण बदलते, वय-मन का नव प्रारूप, कई प्रभाव हैं कर्मशील सतत
एक अपरिवर्तनीय सा समय बीतता, हाँ नए समय में नव भाव होते उत्पन्न।
उवाचे शब्दों का भी एक अपना प्रभाव, सुनते हैं तो वे प्रभाव छोड़ते अपना
चाहे हमें बाहर से तो अधिक न भी दृष्टिमान हो, जाता है अंतः सर्वस्व हिला।
क्या हम गहन हैं विचार सकते, समय-अंतराल के रहस्य निकट से हेतु वेत्ति
कुछ पूर्व नासा की faster than light Warp Travel सिद्धांत पर वीडियो देखी।
Alcubirre Drive से Space-Time को distort करते, स्पेस को मोड़ते चहुँ ओर
Alpha-Centuri जाने में १५ दिन लगेंगे, आइंस्टीन का सापेक्षता-सिद्धांत आधार।
भौतिकी में Space-Time is
any mathematical model that fuses three dimensions
of Space and one dimension of Time into a single four-dimensional
continuum.
1905 की आइंस्टीन की सापेक्षता-सिद्धांत के अनुसार प्रकाश की निश्चित गति है स्पेस में
प्रकाश स्रोत की गति से स्वतंत्र, घटनाओं -जोड़ों में दूरी-समय भिन्न बिंदुओं पर बदलते।
कभी समय को अपनी भाषा देने वाले भी, काल-गर्त में समाकर हो गए विलीन
कितनी ही सभ्यताऐं लुप्त, अनेक वनस्पति-जीवों की प्रजातियाँ हो रही विलुप्त।
कारण कुछ हो कालगति एक दिशा में, जुरासिक-डायनासोर कहीं न हैं चिन्हित
कुछ कथाऐं चर्चे हैं, माँ-बाप चले गए, कहाँ हमारी या अपनी मर्जी से आते पुनः।
यह क्या हैं जग की गतिविधियाँ, लोक-संस्कृति व कुछ ग्रंथों में व्याख्यित
किनने बड़ी धारणाऐं मानव-प्रतिपादित, लोग मान भी लेते आँख मूँदकर।
पर सत्य वही मानना चाहिए जो परीक्षण-प्रयोग के परिणाम पर उतरे सही
मात्र मनन ही न पर्याप्त, विज्ञान में प्रत्यक्ष भौतिक-बदलाव ही प्रौद्योगिकी।
अधिक तो न उच्चतर शिक्षा, बस स्वयमेव या जैसे भी शिक्षक मिलें, सीख लिया
विद्या-पारंगत तो न मैं, अति-अनुशासित होकर तो विषयों का चिंतन न किया।
विद्वता-पथ कठिन- निरंतर ध्यान-केंद्रित अध्ययन से ही संकल्पनाओं में प्रवेश
अनेक तथ्य तो हैं अपरिचित, फिर एक पूर्ण जीवंत जीवन हेतु कितना अपेक्षित।
जीवन कैसे बढ़ा सकते, एक पक्ष कि उपलब्ध समय पूर्ण उपयोग जाए किया
अर्थ यदि हम प्रतिदिन १८ घंटे काम करें, वह १२ घंटे वाले से अधिक होगा।
एक वैज्ञानिक अवधारणा थोड़ा पूर्व पढ़ी, पृथ्वी पर रहें व गतिमान रहें त्वरित
कहते हैं पर्वत तल पर रहने वाला, शिखर पर निवास वाले से जिऐगा अधिक।
और कि यदि हम स्पेस में हैं तो, वय में धरती की अपेक्षा धीमी गति से बढ़ेंगे
यदि गगनयान प्रकाश-गति से चलता है, व माना यात्री २० वर्ष रहता उसमें।
निश्चितेव २० वर्ष में महद दूरी लाँघ लेगा, पर उसके धरा-बंधु की अल्प ही गति
यावत भू-बंधु वय अति वर्धित, साहित्य में यह २ वर्ष की अपेक्षा ३८ वर्ष कही।
किंचित महा-संपर्कों का अनुभव, जग को खुली नज़रों से देखना-समझना
पर ये सब तर्क-वितर्क, उतने ही समय में एक ने अधिक अनुभव ले लिए।
उपलब्ध जिंदगी में अत्यधिक घूम सकते हो, निज को समृद्ध कर सकते हो
सचिन तेंदुलकर ने क्रिकेट में ३५-४० वर्ष की वय में ही इतना कमा लिया
अधिकांश हम कई जन्मों में भी उतना निपुणता, यश-धन न कमा सकते।
प्राण-समृद्धि कुछ महा-संपर्कों की चेतना, खुली नज़रों से विश्व देखना-समझना
इसके पूर्ण-आत्मसात का उत्साह, जब जितना अधिक बन जाए, न झिझकना।
उपलब्ध समय हो पूर्ण प्रयोग, उत्साह से नव-सृजन हो नवीन वर्तमान पलों में
वास्तव में सर्वस्व ही नवीन, मन में कैसे अनुभव कर रहे, तुम्हारा व्यक्तित्व है।
यह मनन भी यथार्थ अनुभव का महायंत्र है, प्रयोग कर कुछ विद्वान हो जाओ
कार्ल-सागन, ऐसीमोव, स्टीफन हाकिंग से महानरों से कुछ लाभ लेना सीखो।
पवन कुमार,
०४ अक्टूबर, २०२० रविवासर, समय ९:३५ बजे प्रातः
(मेरी डायरी दि ० २५ मार्च, २०१८ रविवार १०:५८ प्रातः से )
No comments:
Post a Comment