जीवन-रथ
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बन कुछ व्यवस्थित-अनुशासित-केंद्रित, बिखरी वस्तुऐं संग्रहित
मनुष्य जीवन लघु, कर्म अत्यधिक, प्रमाद हेतु समय ही नहीं।
कैसे खंडित-छितरी ऊर्जाओं को वश में करें, कुछ क्षमता जोड़ें
जीवन बड़ी परियोजना, आधुनिक प्रबंधन आयाम स्थापित करें।
एक-२ ईंट को दुरस्त करना, उचित जगह लगें ठीक प्रकार से
गुणवत्ता जाँची - परखी हो, ताकि जीवन भली प्रकार से जी लें।
धारण - दायित्व, भवन-निर्माण हुनर, आयाम सीखने होंगे सभी
जीवन चलें एक रथ भाँति, गति-चाल फिर बढ़ानी होगी उसकी।
इसके अश्वारोही हो सुयोग्य-प्रशिक्षित, रास्तों की बाधा से न डरें
निर्भय मन स्वामी हो इसका सारथी, एक नरोत्तम भाँति विचरे।
साहसी को तो जग पथ देता, और वह न कभी प्रमाद करता
निकल पड़ता खोज-ख़बर में, जगह-२ मार्ग-दर्शक बनाता।
एक परम उद्देश्य से वह प्रेरित, सदा सुकीर्ति हेतु श्रम करता
समझता सब प्रतिबद्धता, न टालने का फिर उपालंभ करता।
अपने कृत्य लिपिबद्ध करो, और वाँछित सामग्री एकत्र करो
ढूँढो समस्त उपकृत्य समाहित, एक-२ पग सुनिश्चित करो।
प्रशिक्षण में हो न कोई कमी, बाद में परिणाम वाँछित ही हो
स्व-उन्नतिकरण मार्ग प्रशस्त करने में कोई कमी न छोड़ो।
अनुशासन प्रबलतम औजार, वही अन्यों को भी करता प्रेरित
दल-सहकर्मी बनाओ योग्य, सक्षम बन आऐंगे तुम्हारे हित।
समय-ऊर्जा सब बाँटनी होगी, निज संग लाभान्वित अन्य भी
मृदुल नृप के शहर में सब सुखी, सुन्याय सभी में बाँटना ही।
कलंदरों सम बन तू साहसी, समस्त मानवता को निजी बना
स्व-कर्मों पर हो एक नज़र पैनी, उत्तर तुझे खुद को ही देना।
पवन कुमार,
४ नवंबर, २०२० समय ७:१० बजे प्रातः
(मेरी महेंद्रगढ़ डायरी दि० ३१ अक्टूबर, २०१४ समय ९:३५ प्रातः से)
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