सफल-आचरण
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वास्तविक जीवन-शिक्षा, अपने से बेहतर जीवनों से सीख सकते
यह कदम-२ पर झझकोरता, क्यों सुस्त हैं अधिक ना कर रहें।
अपने चहुँ ओर हम इतना सब देखते हैं, घटते हुए उचित अनुचित
कुछ ने आदतें सुधार कर, कई महान सफलताऐं कर ली अर्जित।
बस वाणी से ही न काम चलता, कुछ ठोस कर दिखाओ तो मानेंगे
जग की बड़ी अपेक्षाऐं, सामान्य पर्याप्त न, अत्युत्तम परिणाम मांगे।
बड़े नतीजे महद श्रम माँगते, संजीदा हो काम करें तो भी अपर्याप्त
और भी कठिन जब वरिष्ठ पद में हो, सभी विषयों का भार निज पर।
अब अवरों की भी निज समस्याऐं हैं, अनेक काम समक्ष समय मांगते
फिर लंबन-प्रवृत्ति भी, डांट-डपट, मनुहार से ही कुछ परिणाम देते।
सफलता क्या है कुछ द्वारा स्वीकृति, या स्वयं में संतोष परिणामों पर
सभी में तो न श्लाघा का बड़ा मन, प्रायः कुंठित - देने वाले होते तंज।
हाँ अवर को कितना मान, वैसा ही तो हमें भी मिलेगा फिर क्यों कष्ट
कभी अड़ियलों से भी पाला, झकझोर कर निकाल देते सारा अहम।
सफलों की जीवनशैली कुछ निकट से देखो, कैसे बिताते हैं प्रत्येक क्षण
यूँ ही निराश हो न बैठ जाते, सब शक्ति लगा पार जाने का करते यत्न।
दूजों को समझ न आता या चाहते ही न, कुछ विश्रुत कभी ध्यान भी देते
मान-सम्मान दैवाधीन, किसी को न पता लोग तुम्हें किस भाँति आकेंगे।
लोक-मन में पूर्वाग्रह भी स्थित, संतुष्ट न चाहे कोई कितनी भी करें मेहनत
फूटे मन से श्लाघा-सुर न जैसे पेट में अंगार भरे, आलोचना ही निकसित।
या मात्र उस लायक ही न है, फिर भी यदा-कदा प्रोत्साहन तो लगता उचित
यदि हम एक सुस्तर पर भी हैं, तथापि अवरों को ऊपर उठाना भी कर्तव्य।
पर यहाँ दूसरों की श्लाघा-आलोचना से न अर्थ, प्रश्न है कि कैसे करें प्रगति
सुअपेक्षा-मंजर है, उच्च तो उठो, आलोचक मिथ्या सिद्धि ही बनाए विजयी।
जीवनशैली एक उन्नतिपरक बनाओ, भागो मत, बस डटकर करो मुकाबला
सब पूर्वाग्रह विजयी करो, अंतिम मूल्यांकन दूर वर्तमान मात्र से न घबराना।
पवन कुमार,
२६ दिसंबर, २०२१ रविवार, समय ९:२४ बजे सायं
(मेरी डायरी २९ अप्रैल, २०१८ रविवार समय ९:२३ प्रातः से)
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