विज्ञान-भिक्षु
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समय का एक बड़ा चक्र या बहाव है, बड़ा प्रश्न चलो इसपर करते कुछ विमर्श
हमारी बीती जिंदगी तो
है अनुत्क्रमणीय, एक दिशा ही
तय हो सकता भविष्य।
पृथ्वी-घूर्णन व सूर्य-गिर्द
परिभ्रमण की गति-दिशा
से एक निश्चित व्यवस्था
दिखती
दिन-रात्रि अंतराल,
ऋतु-बदलाव एक निश्चित क्रम
में, एक समय बाद
पुनरावृत्ति।
चंद्र अनेक चमक-कलाऐं
लिए, पूर्ण लुप्त स्थिति से एक चाँदी
से गोल में परिवर्तित
पर एक निश्चित
अवधि बाद ही सूर्य-चंद्र ग्रहण दिखते हैं, विशेषज्ञों को
स्थिति-ज्ञान।
बुद्ध-शुक्र के एक निश्चित
उदय-समय, मंगल-बृहस्पति-शनि आदि भी
एक लय में
सप्तर्षि व अन्य नक्षत्रगण
गगन में, एक नियम
अनुरूप ही स्थिति बदलते
दिखते।
रात्रि -गगन में अनेक
चमकते सितारें दिखते, एक निश्चित क्रम
में स्थिति बदलती
नर उन्हें नित्य-दर्शन के अभ्यास से
पहचानने लगता, एक मित्रता सी
बन जाती।
वसंत, गरमी, पावस, हेमंत, शिशिर, व सर्द सब
ऋतुऐं अपने समय पर
हैं आती
अमुक पादपों-लताओं
व वृक्षों में निश्चित पुष्प-फल भी आते
एक कालानुरूप ही।
सब जीव-जंतु,
पक्षी-सरीसृप, मत्स्यों का प्रजनन-अंडफूटन
एक अमुक अवधि में
थोड़ा ध्यान से
देखें तो इन सबमें
एक व्यवस्थित निरंतरता ही, विश्व के
चलन में।
मनुज व अन्य
जीवों की एक निश्चित
वय, जन्म लेते, युवा
होते, बूढ़े होते व
मरते
सम स्थितियों में
सभी व्यवहार एक से हैं,
आदतें, सोच-ढंग, सठियापन
एक से।
जीवन में छोटी-मोटी दुर्घटनाऐं भी
हैं, अतः जीवनकाल कुछ
छोटे-बड़े हो सकते
जीव-वनस्पतियों के
निज गुण-व्यवहार, तदानुरूप
निर्वहन भी एक सीमा
सी में।
प्रकृति-पञ्चतत्व कारकों पृथ्वी-जल-वायु-अग्नि-आकाश के गुणों
में है तारतम्यता
सब वस्तु-धातुओं
का निज जलन-पिघलन
तापबिंदु हैं, गुण-प्रयोग विषय में पता।
भू पर तूफ़ान-भवंडर, अतिवर्षा-हिमपात, बाढ़, दुर्भिक्ष, भूस्खलन, वनाग्नि, भूकंप
फिर ज्वालामुखी आदि
संभावना भिन्न स्थलों पर होते, प्रायः
एक समय ही अमुक।
कहाँ-कब कितनी
वर्षा-शुष्कता होगी, सर्द-ताप, उमस-सुखद, क्या पवन-दिशा
किन स्थलों पर
क्या जलवायु-वनस्पति-जंतु, एक निश्चित ज्ञान
नर ने बना किया।
कब दिवस-रात
कितने बड़े, कहाँ
कितना प्रदूषण या संभावना स्वच्छ रहने की
कहाँ कुछ कुपोषण-रोग अधिक संख्या
में, क्या उनके
कारण व समाधान ही।
नर प्रकृति व
परिवेश को देख-समझता,
कुछ प्राकृतिक रहस्यों पर बनाई पकड़
किंतु अनेक गुह्य अभी
न पहुँच में, पर वह
एक बड़े अन्वेषण में
व प्रयास सतत।
उसने भूगर्भ तक
खंगाला, कहाँ-कौन सी
धातु-तेल-भूजल किस
गहराई पर दबे
कैसे कौन अपारंपरिक
ऊर्जा-स्रोत प्रयोग करने, व वैकल्पिता भी रखनी बनाए।
इस अति विकास
युग में अनुसंधानक-अन्वेषकों
ने सुविधा-पटल ही दिया बदल
कृत्रिम गर्भाशय विषय में वीडियो
में, प्राकृतिक माँ के जैसा
परिवेश बाहर लब्ध।
पूर्व भेड़-मेमना जन्माया,
कुछ 3000 नर-भ्रूण कृत्रिम
गर्भाशय में विकसित होते
संपूर्ण पोषण, उत्सर्जन व पथ्य-रक्षा
का परिवेश, अभिभावक जींस हैं चुन सकते।
कुछ दिन पूर्व
पढ़ा लाखों लोगों ने मृत्यु-पूर्व
स्वयं को Deep Freeze करा लिया ही
मानते कि कुछ वर्षों
में विज्ञान और अधिक प्रगति
करेगी, पुनः जीवित कर
देगी।
अब कृत्रिम अंग
उगाने लगे, शरीर में
जो अंग खराब होगा,
बदला जा सकेगा वह
जब सब मशीनरी-पुर्जें दुरस्त तो गाड़ी चलेगी
ही, मौत-नौबत न
आने वाली अतः।
निश्चितेव विज्ञान अनेकानेक पूर्वाग्रह हटा रहा, सब
पूर्व-धारणाऐं चकनाचूर हो रही
सब नर लाभ
पूरा उठाते, तथापि कुछ कथित विश्वास
करते धार्मिक-टोटकों में ही।
पर समय संग
सोच बदलेगी, अब सबका कमोबेश
विकास व जानकारी-स्तर
वर्धन
निर्धन, अल्प-शिक्षित भी
इंटरनेट सुविधा से सब जानकारी
ले हो जाता लाभान्वित।
मूल-लेखन से
थोड़ाअलग था, चलो पुनः
कोशिश कि हम चक्रीय
या अपरिवर्तनीय
निश्चितेव विज्ञान जिस दौर में
नित धकेल रहा, अबतक
के विकास क्रम
में नवीन।
पर बहु जीव-जंतुओं की किस्में स्थायी
लुप्त, उनके प्राकृतिक परिवेश
पूर्णतः ध्वस्त
अनेक विलुप्तता-कगार पर, वे
किसी चक्र में न
हैं, आप मरे तो
मानो है जग प्रलय।
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अरब पूर्व ब्रह्मांड-आदि से अद्यतन
अपरिवर्तनीय प्रतीत, बहु तारक मरते नित
बहु विज्ञान-प्रगति बावजूद मिला न पृथ्वी सा जीवंत ग्रह-उपग्रह या खगोलीय पिंड।
दुर्भाग्य से यदि पृथ्वी
किसी कारण नष्ट हो, समस्त धारणाऐं, धर्म-विभेद होंगे अंतिम
सिलसिला अग्रदिशा, निश्चित
सूर्य-आयु बताई जाती,
पृथ्वी तो उससे ही
जुड़ी फिर।
अरबों वर्षों के विकास-क्रम
में, भौतिकी-नियमानुरूप एक नभीय-व्यवस्था निर्माण
मनुष्य की जीवन-अवधि
इतनी अल्प व सीमित,
उसे सब चक्र सा
ही आता समझ।
यदि दीर्घकालीन दृष्टि
से देखें तो ज्ञात, तुम्हारा
चक्र भी परिवर्तित हो
रहा भविष्य में
माना बहुत बदलाव
अबाधित चलित, आगे भी होंगे,
अभी रोध-बल नहीं
किसी में ।
मनुष्य की श्रम-बुद्धि से रक्षा-तैयारी, किञ्चित काल विलुप्तमान जीवों
को ले बचा
संभावना किसी अन्य ग्रह-उपग्रह पर घर बना
ले, पृथ्वी शनै लघु पड़ती रही जा।
पर अनेक अखिल-घटनाऐं प्रतिक्षण, Black Holes पूरी आकाशगंगाऐं लेते निगल
हम बस रक्षा-उपाय सोचते, प्रयास
अवश्य पर अभी संसाधन-ज्ञान अति सीमित।
स्व विषय में
क्या मानें, वसुधा-जीवन आदर
हो, प्राणों में पूर्ण चेतनानुभूति
कर लें
एक विज्ञानभिक्षु सा
सुजान-बुद्धियुत व्यवहार, जो भी
समय मिला, सार्थक कर लें।
पवन कुमार,
१० अप्रैल, २०२३ समय ९:२६ बजे प्रातः
(मेरी चेन्नई डायरी दि० ११ दिसंबर, २०२२ समय ४:३४ बजे ब्रह्म-मुहूर्त से )
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