सृजन-पथ
जीवन के वर्तमान रिक्त पलों में, क्या अनुपम कृति बना सकते
कब तक अल्प प्रयासों में ही अटकेंगे, औरों से पीछे रह जाएंगे।
माना मनन-काव्य सार्थक है, पर क्या यही एक पूर्ण उद्देश्य?
हर चिंतन-साधना में लाभ, पर नर-परियोजना है अति
वृहद।
जीवन में कुछ उच्च लक्ष्य हो, जिसके संग
हर प्रयास जुड़ा हो,
अल्प रस भी तब अमृत बने, जब कदम बढ़ें
व दृष्टि अडिग हो।
मनीषी कहते, "हीरा जन्म अमोल है,
कौड़ी सा नहीं करो मोल"
जो तम से निकले, साहसी बने, उनका ही नव-विश्व
से आत्मसात।
आत्म-केंद्रित रहना भी श्लाघ्य, पर कर्म
समर्पित हो जब जगत में,
स्तुति सजती उसी कृति पर सदा, जो अपने स्वार्थ
से बढ़कर हो।
दैनंदिन जीवन निर्वाह तो सरल, आजीविका से सहजता आए,
पर सदुपयोग रिक्त काल का ही, सत्य
मनुज-कसौटी कहलाए।
सुस्वास्थ्य, स्वाध्याय, समरस शैली, हर
जीवन-दिशा में दें गति,
किन्तु ये तो साधन मात्र लक्ष्य हेतु,
क्या इनसे राहें तय बनेंगी?
जीवन तो आधा बीत चुका, किंतु मन-देह यौवन
की सीमा पर
असीम ऊर्जा व समय अपार, पर लक्ष्य अभी
तक भी अज्ञात?
बारात सजी, पर दूल्हा न दिखे, यह बाह्य
दिखावा भर लगता,
जीवन तो सार्थक तब ही बने, जब कर्म से
पथ सच्चा बनता।
महानरों ने देखा गुरु स्वप्न, व जीवन को सुलक्ष्य
दिया हर पल
मुफ्त में न यश मिला किसी को, तप से ही
सब सृजन सफल।
संभव किसी कृति में जीवन भी लगे, पर सृजन का न छूटे मर्म,
स्वयं को एक परियोजना मानो, व सुप्रबंधन से हों कर्म प्रबल।
आत्मा में निहित है जो एक दिव्यता, उसे चेतना
से जागृत करें
लक्ष्य स्वयं आकार ही लेगा, जब आत्मा के
स्वर को सुन सकें।
कल्पना से ही सुकृति बनती है, पर श्रम से
वह सजीव दिखेगी,
प्रारूप रखो और जुट जाओ, तभी अनेकों सत्य-परतें
खुलेंगी।
प्रकृति या देव-चित्र के अनुपम अनुभव, हृदय में प्रेरणा जगाएं
लक्ष्य तय होंगी तो राहें बनेंगी, वरना भटकाव
ही कदम गिराएं।
अनिश्चतता से तो यात्रा व्यर्थ, बस भाग्य-सहारे लक्ष्य पूरा न होगा,
गंतव्य साधना पहला कदम है, तभी प्रत्येक
पथ सच्चा बनेगा।
एक राह चुनो रुपरेखा बनेगी, फिर उसी में
मन को रमाओ
लेखन, सेवा, विज्ञान-कला, जो रुचता हो,
उसमें लग जाओ।
माना सर्वत्र निपुण होना संभव न, श्रेष्ठता
वहाँ जहाँ है लगन,
एक राह पकड़ो और बढ़ते चलो, लक्ष्य में
हो संपूर्ण मगन।
माना वर्तमान रूचि लेखन में, किंतु अन्य
विषयों में हो चिंतन
एक विधा में निपुण बनो, और जीवन का स्वर
बनाए सजीव।
चयन दुष्कर प्रक्रिया, क्योंकि सब अच्छे पर चिह्नन
आवश्यक
महानता का आधार वही, स्वरुचि कृति से श्रेय सजेगा जब।
अतः रिक्त समय कदापि न व्यर्थ करो,
उसमें बहु स्वप्न गढ़ो
उपलब्धि माना दूर सही, पर चलने से, हर
गंतव्य समीप हो।
इस जीवन के पाँसे कहाँ पड़ेंगे, यह तो
भविष्य ही बताएगा,
पर शीर्षक खोज कर बढ़ते चलो, लक्ष्य ही
मार्ग दिखाएगा।
प्राण दुर्लभ, हर पल नूतन जन्म, व्यर्थ
मूढ़ता से तो न लाभ
जो अभी पास, उसे सँजो लो, उससे ही बनाओ अग्रिम
राह।
वर्तमान-एकत्रण अग्र की भूमिका बनता,
अतः साधना ही पथ
परम जिज्ञासा से हल खोजो, और सुलझने से
मिलेg मंजिल।
पवन कुमार,
22 नवंबर 2024, शुक्रवार, समय 11:30 बजे रात्रि