Kind Attention:

The postings in this blog are purely my personal views, and have nothing to do any commitment from Government, organization and other persons. The views in general respect all sections of society irrespective of class, race, religion, group, country or region, and are dedicated to pan-humanity. I sincerely apologize if any of my writing has hurt someone's sentiments even in the slightest way. Suggestions and comments are welcome.

Thursday, 14 November 2024

पूर्व दिशा चिंतन


पूर्व दिशा चिंतन  

 

पूर्व दिशा में दृष्टि करना, योग का है एक मुख्य नियम,

यदि पूर्ण उचित नहीं भी लगे, तो भी प्रयास हो अनुपम।

 

सूर्य प्रातः उदित होता, पूर्व से भू को देता ऊर्जा अपार,

शुभ दिशा मानी जाती, भास्कर से सीधा संबंध साकार।

मस्तिष्क का संयोग उचित ही, ध्यान का होता है संगम,

महद चिंतन हो जाता, शरीर की क्रियाएँ होतीं संगठित

 

वास्तु-शास्त्र है दिशा-आधारित, शुभ-अशुभ करे इंगित,

मंदिर-मुख पूर्व को, आजकल किए जाते भवन-द्वार भी।

सारे योगासन पूर्व दिशा ओर ही मुख करके किए जाते,

कारण तो अधिक न मालूम, बस शुभ-अशुभ से जुड़ते।

 

भारतवर्ष उत्तरी-पूर्वी गोलार्ध में, सूर्य यहीं उगता पहले,

यूरोप-अमेरिका को पश्चिम कहते हैं, वे पश्चिम में बसते।

हम पूर्वी, हमारी संस्कृति उनसे विलग ही बताई जाती,

दक्षिण-पूर्व का क्षेत्र कमोबेश सम विचारधारा अपनाता।

 

मस्जिद-प्रवेश पश्चिम में निर्मित, मक्का-मदीना हैं उधर,

मुस्लिम  हिन्दू संस्कृतियों में बताई जाती है भिन्नता कुछ

शैली अनगिनत बना लेते, मनुज इन्हें जीवन में अपनाता,

जो अन्य किंचित भिन्न होते, उनमें सहज विरोध हो जाता।

 

भोजन समय पूर्व को मुख करते, पूर्व-दक्षिण को सोते सिर 

दक्षिण ओर पैर न करते, दिशाओं का भी कहा जाता चरित्र।

पर कहते हैं गुरु नानक के पैर, पूर्व व पश्चिम में रख दिए थे,

किंतु वह योगी थे, जिधर देखें, मक्का की मस्जिद ही दिखे।

 

पूर्व दिशा की ओर मुख करके, मनन-चिंतन लगाया जाता,

लेखनी से कुछ बेहतर ही निकालेगा, ऐसा माना है जाता।

पृथ्वी की उत्तर-दक्षिण ध्रुवीय चुंबकीय किरणें हैं निर्धारक,

उत्तर सिर करने से सिर भारी किरणें सीधी होती हैं प्रवेश। 

                                                                 

दक्षिण में ऐसा दुष्प्रभाव न, नियम भी बनें आधार पर इसी,

दक्षिण दिशा में सिर करके सोना, प्राणी को देता है शांति।

इसलिए ध्यान-योग विषयों में, दिशाओं का विशेष स्थान,

प्राचीन नियमों में यह छिपा है, समझो इसको महा ज्ञान।

 

                                      

पवन कुमार,

14 नवंबर, २०२४, गुरुवार समय 7. 37 बजे

(मेरी महेंद्रगढ़ डायरी दिनांक 1 अप्रैल, 2015, बुधवार, समय 8.30 बजे प्रातः से)



1 comment:

  1. Bharat Sharma:
    दिशा किसी घर या वस्तु की होती है। अगर आपके घर की दिशा सही है तो आपके घर पर सकारात्मक ऊर्जा का वास होता है। धरती पर मौजूद 5 तत्व हैं जो मानव जीवन पर विशेष प्रभाव डालते हैं। मानव जीवन में इन तत्वों का संतुलित होना बहुत जरूरी है। वास्तु शास्त्र में भी इन्हीं तत्वों को संतुलित करने के बारे में बताया जाता है। अथर्ववेद से वास्तु शास्त्र का विकास हुआ है। पर ऋग्वेद में भी इसके बारे में लिखा है। जापान, कोरिया जैसे देशों में इसी तरह ही एक विधा का उपयोग किया जाता है। इन देशों में इसे फेंगशुई कहते हैं।घर का वास्तु ठीक होने से घर में सकारात्मक ऊर्जा आती है।
    आप सभी मुख्य रूप से 4 दिशाओं को जानते होंगे। पुराण और शास्त्रों में 10 दिशाओं के बारे में बताया गया है।

    ReplyDelete