मस्तिष्क भारी, पर इसका
आंदोलन तो है जारी
जीवन-सार्थकता के लिए ही,
मेहनत है ये सारी॥
यद्यपि व्यस्त रहता, चाहे
पूरा परिणाम न निकले
जीवन नाम सिर्फ गति, चाहे
क्यों न प्राण निकले॥
गर्मी-बेहाली, ऊपर से
बिजली-गुल जान सुखाती
पर बाधाऐं होती कर्मों में,
हमें तो मंजिल दिखे ही॥
पर 'मंज़िल' क्या नाम है,
प्रश्न यही बड़ा विशाल
उसी हेतु ही तो हुआ, जीवन का
यह तंग हाल॥
एक सहज अभिव्यक्ति आसान नहीं होती , बधाई आपको !
ReplyDeleteसतीश जी , आपके प्रोत्साहन एवं मार्गदर्शन लिए आभारी हूँ।
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