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Sunday, 3 August 2014

कुछ टूटे स्वर

कुछ टूटे स्वर 


टूटे स्वरों को गीत बना, फिर से जीवन की बगिया महका॥

 

अति प्रतीक्षा- आलम हो गया मौला, जरा प्रसन्नता-गीत गवा

प्रिया-आंसू तो पौंछ जरा, बेचारी के अधरों पर मुस्कान ला।

मुझे चाह नहीं धन-यश-बल की, चाहता प्रियतम से मिलना

अब और सहा न जाता ईश्वर, आकर जरा ग़म ही सहला जा॥

 

मुस्कान-काल था मेरे जीवन में भी, फिर इक बार समय ला

तेरे लिए मुमकिन सब कुछ, बस थोड़ी सी रहमत बरसा जा।

बौद्धिक रूप से पिछड़ सा गया, मुझको सद्बुद्धि दिलवा जा

कैसे विचारूँ- बोलूँ व चलूँ, कुछ जीवन के अध्याय पढ़ा जा॥

 

उसकी पीड़ा से कुछ घबरा गया, उसको तू कुछ ढ़ाढ़स बँधा

उसको दे सहने की हिम्मत, हरी-भरी ज़िन्दगी फिर से बना।

बिटिया मेरी का ध्यान रखना, बहुत कमी महसूस वह करती

उसकी परवरिश-जिम्मेवारी मेरी, कैसे करूँ, मार्ग बता जा॥

 

सुना है तू सुनता तो बहुत ही, दर्द-ए-दिलों की भाषा भी जाने

सहला गम दिल के मारों का, करुणा-मरहम लगाता ही जा।

कोई कहता राह बड़ी कठिन है, जब चल दिए घबराना कैसा

इतना कटा है आगे भी गुजरे, हिम्मत-दवा पिलाता चला जा॥

 

बरबस मैंने सोचा था एकदा, किस्मत को न दोष कभी दूँगा

जीवन तो रोने-हँसने का नाम, किसी से गिला न करता जा।

अन्य-आलोचनाओं में यदि सुख है मिलता, स्थिति सच-गंभीर

 सुयत्न से खोजो अपने शत्रु, निज-सुधार हेतु घिसता चला जा॥

 

अंतः मन को कर तू पावन-पवित्र, दूर कर व्यर्थ प्रवंचनाओं से

लेकर उज्ज्वलता का तू दीपक, चहुँ ओर प्रकाश ही फैला जा

तू इस अंधे की लाठी बन जा, लक्ष्य प्राप्ति हेतु राह दिखा जा॥

 

अँधेरा मार्ग बहुत है डराता, लगा सब्र-हिम्मत टूटी व मैं डूबा

पर ध्यान आया तू साहस-पुँज निकट ही, मन क्यों क्षीण बना?

कल्याणक, जगत अर्चना करता, बहु विषाद पर तुझे सब पता

मैं सब तेरा ही अंश, प्रार्थना मन-स्वच्छता का झाड़ू चला जा॥

 

सुंदरता फिर क्यों मलिन पाता, अहसास दे हूँ पात्र सुधरने का

 तेरी कृपा बिन कुछ न सूझे, प्रार्थना चरण-कमल दास बना जा।

कठोर-कर्कश हूँ, जान से न कोई ममता, निर्मल-तनय उर बना

स्थिति में असहाय सा पाता, करुणाकरण रूप-ज्ञान करा जा॥

 

तुझे पता क्या आगे, तभी मुस्काता, छोटी बातों में समय गँवाते नर

कितने नासमझ-भोले सब, बरबस ही कुछ तो सिखाता चला जा।

प्राण-बगिया महका, कृपा-दास बना, न्याय-विश्वास दे कर्त्तव्य निभा

प्रभु, उषा-सौम्या को ध्यान-कृपा-स्नेह वरदान दो, व सहन-हौंसला।

 

धन्यवाद॥


पवन कुमार,
3 अगस्त, 2014 समय 18 :28 सांय 
(मेरी शिलोंग डायरी 14 जनवरी 2002 समय 11: 25 रात्रि से)

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