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Wednesday, 27 August 2014

अपना - गणतन्त्र

अपना - गणतन्त्र 

भारतवर्ष में सामान्य, सहज प्रजाजन-अधिकार

आज ही के दिन प्रयोगार्थ किए गए थे स्वीकार॥

 

अनेक बेड़ियों के दौर से ही गुजरा यह आदमी

किसी रहम-दिल ने सोचा कि ये भी हैं आदमी।

वरन कुछ नितांत स्वामी थे, ईश्वर सा स्तर लब्ध

और अनेक तो बस थे, बेबस दशा में ही त्रस्त॥

 

किसी ने सोचा, आदमी-आदमी में क्यों है अंतर

क्यों कुछ को निम्न अथवा समझा जाता है उच्च?

क्यों न होते सबको उपलब्ध सभी अधिकार सम

क्यों निज को कुछ मानते ज्यादा ही बरखुरदार?

 

सम समाज से असमता का दौर ज्यों सबने देखा

तो कर्कशता से यूँ मानवता-कलेजा फटने लगा।

फिर श्रेष्ठ-अश्रेष्ठ भेदभाव का होने लगा अवमूल्यन

कुछ लगे बढ़ने आगे, कुछ पीछे करते हाहाकार॥

 

फिर कुछ में निज-स्थिति से उबरने की इच्छा प्रबल

और चल पड़ा संघर्ष-रोष-अभिव्यक्ति का दौर तब।

सब घटित अत्याचारों को मिटाने का यूँ मंसूबा प्रखर

ताकि सबको मिले समुचित-समतामूलक व्यवहार॥

 

यह 'गणतन्त्र' नाम है, आम आदमी का उबार-नाम

सार्वजनिक उन्नति चाहे अल्प, किंतु तो भी अभ्रांत।

और फिर सर्वत्र हो, हर होनहार में प्रतिभा-विकास

 दूर रुढ़िता, अपढ़ता-निर्धनता, व अज्ञान-अंधकार।।


पवन कुमार,
27 अगस्त, 2014 समय 23:21 रात्रि      
( मेरी शिलोंग डायरी दि०  26 जनवरी, 2002 समय 10:40 से )  

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